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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
स च पर्यायः
शुद्धपारिणामिकभावलक्षणशुद्धात्मद्रव्यात्कथं
- चिद्भिन्नः । कस्मात् भावनारूपत्वात् । शुद्धपारिणामिकस्तु भावनारूपो न भवति । यद्येकांतेन शुद्धपारिणामिकादभिन्नो भवति तदास्य भावनारूपस्य मोक्षकारणभूतस्य मोक्ष प्रस्तावे विनाशे जाते सति शुद्धपारिणामिकभावस्यापि विनाशः प्राप्नोति; न च तथा ।
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ततः स्थितं - शुद्धपारिणामिकभावविषये या भावना तद्रूपं यदौपशमिकादिभावत्रयं तत्समस्तरागादिरहितत्वेन शुद्धोपादानकारणत्वात् मोक्षकारणं भवति, न च शुद्धपारिणामिकः ।
यस्तु शक्तिरूपो मोक्षः स शुद्धपारिणामिकपूर्वमेव तिष्ठति ।
वह पर्याय, शुद्धपारिणामिकभावलक्षण शुद्धात्मद्रव्य से कथंचित् भिन्न है । किसलिए ? भावनारूप होने से। शुद्धपारिणामिक (भाव) तो भावनारूप नहीं है । यदि ( वह पर्याय) एकान्तरूप से शुद्धपारिणामिक से अभिन्न हो, तो मोक्ष का प्रसंग आने पर इस भावनारूप मोक्षकारणभूत (पर्याय) का विनाश होने से शुद्धपारिणामिकभाव भी विनाश को प्राप्त हो, परन्तु ऐसा तो होता नहीं है (क्योंकि शुद्धपारिणामिकभाव तो अविनाशी है) ।
इसलिए ऐसा सिद्ध हुआ - शुद्धपारिणामिकभावविषयक (शुद्धपारिणामिकभाव का अवलम्बन लेनेवाली) जो भावना, उस रूप जो औपशमिकादि तीन भाव वे समस्त रागादि से रहित होने के कारण शुद्ध-उपादानकारणभूत होने से मोक्षकारण (नोक्ष के कारण) हैं परन्तु शुद्धपारिणामिक नहीं (अर्थात्, शुद्धपारिणामिक-भाव, मोक्ष का कारण नहीं है) ।