Book Title: Gyanchakshu Bhagwan Atma
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 14
________________ ज्ञानचक्षुः भगवान आत्मा भावेन मोक्षो भवतीति विचार्यते। तत्रौपशमिकक्षायोपशमिकक्षायिकौदयिकभावचतुष्टयं पर्यायरूपं भवति, शुद्धपारिणामिकस्तु द्रव्यरूप इति। तच्च परस्परसापेक्षं द्रव्यपर्यायव्यात्मा पदार्थो भण्यते। तत्र तावज्जीवत्वभव्यत्वाभव्यत्वत्रिविधपरिणामिकभावमध्ये शुद्धजीवत्व शक्तिलक्षणं यत्पारिणामिकत्वं, तच्छुद्धद्रव्यार्थिक-नयाश्रितत्वान्निरावरणं शुद्धपारिणामिकभावसंज्ञं ज्ञातव्यं तत्तु बंधमोक्ष-पर्यायपरिणतिरहितं । यत्पुनर्दशप्राणरूपं जीवत्वं भव्याभव्यत्वद्वयं तत्पर्यायार्थिकनयाश्रितत्वादशुद्धपारिणामिकभावसंज्ञमिति।कथम-शुद्धमिति औपशमिकादि पाँच भावों में किस भाव से मोक्ष होता है, वह विचारते हैं। - वहाँ औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक तथा औदयिक - ये चार भाव, पर्यायरूप हैं और शुद्धपारिणामिक (भाव), द्रव्यरूप है। वह परस्पर सापेक्ष, ऐसा द्रव्यपर्यायद्वय (द्रव्य और पर्याय का युगल) सो आत्मा-पदार्थ है। .. वहाँ, प्रथम तो जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व - ऐसे तीन प्रकार के पारिणामिकभावों में, शुद्धजीवत्व - ऐसा जो शक्तिलक्षण पारिणामिकपना, वह शुद्धद्रव्यार्थिकनयाश्रित होने से निरावरण और 'शुद्धपारिणामिकभाव' - ऐसी संज्ञावाला जानना; वह तो बन्धमोक्षपर्यायपरिणतिरहित है परन्तु जो दस-प्राणरूप जीवत्व और भव्यत्व अभव्यत्वद्वय, वे पर्यायार्थिकनयाश्रित होने से 'अशुद्धपारिणामिकभाव' संज्ञावाले हैं। प्रश्न - 'अशुद्ध' क्यों? उत्तर

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