Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शानप्रदीपिका के सम्बन्ध में पण्डित जी के प्रतिपादित उक्त विचारों के अतिरिक्त "जैन मित्र" वर्ष २४ अङ्क १२ में प्रकाशित 'केरल प्रश्नशास्त्र" शीर्षक लेख का कुछ अंश भी अन्वेषक विद्वानों के लाभार्थ निम्नाहित किया जाता है : इस लेख में लेखक ने सम्बत् १९३१ में काशी से मद्रित "केरल प्रश्नशास्त्र" नामक एक पुस्तक के कुछ वाक्यों को उद्ध त कर लिखा है कि ये वाक्य उमास्वामिकृत तत्त्वार्थ-सूत्र के हैं; अतः यह ग्रन्थ किसी जेनाचार्य का ही प्रणीत होना चाहिये। बल्कि अपनी इस धारणा को पुष्ट करने के लिये लेखक लिखते हैं कि इसी नाम का ( केरल प्रश्नशास्त्र ) एक और पुस्तक सम्वत् १९८० में वेंकटेश्वर रेस बम्बई में प्रकाशित हुआ है। इसके रचयिता पं० नन्दराम हैं। पण्डित जी ने अपनी कृति के प्रारंभ में लिखा है कि "यद्यपि मिथ्या पण्डिताभिमानी श्वेताम्बरों के द्वारा एतद्विषयक बहुत से प्रबन्ध रचे गये हैं, परन्तु छन्द व्याकरणादि दोषों से दूषित वे प्रबन्ध अरम्य हैं। इसी लिये संक्षिप्त रूप में मैं इस प्रन्य की रचना करता है।” यही पण्डित जी आगे फिर लिखते हैं कि "श्वेतवस्त्रधारी एवं बद्धास्य ( मुंहढके हुए ) ऐसे नास्तिक, कुन, अन्ध, बधिर, बन्ध्या, विकलांग एवं कुष्ठादि रोगप्रस्त!आदि व्यक्तियों को छोड़ कर ही अन्यान्य लोगों से पण्डित प्रश्न कहे।" बल्कि इन्होंने एक जगह यह भी लिखा है कि "श्वेताम्बर जेनों ने जो चन्द्रोन्मीलन नामक ग्रन्थ रचा है वह छन्द व्याकरणादि से दूषित है, अतः यह विद्वन्मान्य नहीं हो सकता है" इस ग्रन्थ को समाप्ति इन्होंने १८२४ आश्विन शक सप्तमी को की है। जैन मित्र के लेखक अन्त में लिखते हैं कि उपर्युक्त कथन से इस 'केरल प्रश्न शास्त्र" के मूल लेखक श्वेताम्बर स्थानकवासो ही स्पष्ट सिद्ध होते हैं। मैंने इस बात का उल्लेख यहाँ पर इसलिये कर दिया है कि इस ज्ञानप्रदीपिकाको मैसोर की प्रति के प्रारम्भिक पृष्ठ में 'ज्ञानप्रदोपिका' इस नाम के नीचे कोष्ठक में "केरलप्रश्नप्रन्थ" स्पष्ट मुद्रित है। परन्तु ज्ञानप्रदीपिका और जैनमित्र के उक्त लेखक के द्वारा प्रतिपादित केरल प्रश्न-शास्त्र ये दोनों एक नहीं कहे जा सकते, क्योंकि इस मुद्रित भवन की 'ज्ञानप्रदीपिका' में कहीं भी तत्वार्थ-सूत्र के सूत्र या उनके भाग नहीं पाये जाते। हाँ, इससे इतना अवश्य ज्ञात होता है कि जैन विद्वानों ने केरल प्रश्नशास्त्र के नाम से भी एतद्विषयक ग्रन्थ रचा है। उल्लिखित कथन से यह भी ज्ञात होता है कि भारतीय अन्यान्य ज्योतिर्विदों के द्वारा केरेल प्रश्न शास्त्र के नाम से कई ग्रन्थ रचे गये हैं। उक्त लेख से यह भी मालूम होता है कि ज्ञानप्रदीपिका और चन्द्रोन्मोलन इन दानों के कर्ता श्वेताम्बर जैन हैं। किन्तु इस सम्बन्ध में जब तक कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता तब तक इसे श्वेताम्बर कृत निर्धान्त नहीं कहा जा सकता। क्योंकि दिगम्बर विद्वान् इसे दिगम्बर रचित ही मानते हैं। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 159