Book Title: Gyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 9
________________ (ख) अनुमान, उपमान, शब्द अर्थापत्ति एवं अनुपलब्धि के द्वारा प्राप्त ज्ञान अनिश्चित होता है-चार्वाक का कहना है कि प्रत्यक्ष को छोड़कर अन्य प्रयाणों के द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिकतर संदिग्ध एवं अनिश्चित होता है। (ग) व्यावहारिक जीवन की सफलताओं अथवा सफलताओं के आधार पर अनुमान को यथार्थ ज्ञान का साधन नहीं कहा जा सकता है-चार्वाक की ज्ञानमीमांसा पर कभी-कभी यह आक्षेप लगाया जाता है कि अगर अनुमान यथार्थ ज्ञान नहीं देता तो फिर इससे हमारे दैनिक जीवन में सहायता कैसे मिलती है? किसान अच्छी फसल काटने का अनुमान करके ही खेत पर कठिन परिश्रम करता है। इसी तरह छात्र एवं छात्राएँ अनुमान करके कठोर मेहनत करते हैं कि उन्हें परीक्षा में सफलता मिलेगी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि अनुमान व्यावहारिक जीवन में सहायक है। इस तर्क अथवा युक्ति के विरूद्ध चार्वाक का कहना है कि व्यावहारिक जीवन में सहायक होने के कारण इसे (अनुमान को) यथार्थ ज्ञान का साधन नहीं माना जा सकता है। क्योंकि व्यक्ति कभी-कभी अनुमान के चलते संकट में भी फँस जाता है। अनुमान के द्वारा प्राप्त ज्ञान के सत्य होने की मात्र संभावना रहती है, निश्चित्तता नहीं। संभावना और यथार्थ ज्ञान में अन्तर है। यह कहना अनुचित है कि संभावना से यथार्थ ज्ञान मिलता है। अतः चार्वाक ने अनुमान को यथार्थ ज्ञान का साधन नहीं माना है। __शब्द को भी यथार्थ ज्ञान का साधन नहीं माना जा सकता है-चार्वाक ने शब्द के विरुद्ध निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किया है (क) शब्द आप्त पुरुष या विश्वसनीय व्यक्ति के वचन हैं। अब प्रश्न उठता है कि विश्वसनीय व्यक्ति कैसे उपलब्ध होंगे? चार्वाक का कहना है कि सर्वप्रथम ऐसे व्यक्ति को पाना कठिन है। अगर ऐसे व्यक्ति (आप्त पुरुष) मिल भी जाएँ तो पर भी प्रश्न उठेगा कि इनके कथन को सत्य क्यों मान लिया जाय। इसके लिए अनुमान का सहारा लेना पड़ता है-“सभी विश्वसनीय व्यक्तियों के कथन सत्य होते हैं, यह कथन एक विश्वसनीय व्यक्ति का है, इसलिए यह कथन सत्य है।" इस अनुमान के आधार पर किसी विश्वसनीय व्यक्ति के कथन को सत्य माना जा सकता है। चार्वाक ने अनुमान को पहले ही ज्ञान के साधन के रूप में अयोग्य एवं अप्रामाणिक सिद्ध कर दिया है। इसलिए अनुमान पर आश्रित शब्द स्वतः अप्रामाणिक सिद्ध हो जाता है। (ख) शब्द को स्वतंत्र प्रमाण नहीं कहा जा सकता है। अनुमान की तरह यह भी प्रत्यक्ष पर निर्भर है। (ग) शब्द द्वारा प्राप्त ज्ञान हमेशा सत्य नहीं होता है। यानी सत्य ज्ञान देना शब्द का अनिवार्य गुण न होकर आकस्मिक गुण है। इसलिए इसे यथार्थ ज्ञान का साधन नहीं माना जा सकता है। अधिकांश चिन्तकों ने आध्यात्मिक व वैदिक वाक्य को अकाट्य बतलाया है किन्तु चार्वाक ने वेदों की औथॉरिटी एवं ब्राह्मणों की सुपरमेशी को पहले ही

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