Book Title: Granthraj Shri Pacchadhyayi
Author(s): Amrutchandracharya, 
Publisher: Digambar Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 14
________________ सूत्र संख्या ११५५ से ११७७ ११५५ से ११७७ १९७८ से ११९१ ११७८ से ११९१ ११९२ से १२४८ ११९२ से १२४८ ११९२ ११९३ से ११९८ १९९९ से १२१३ १२१४ से १२१९ १२२० से १२३४ १२३५ १२३६ से १२३९ १२४० से १२४४ १२४५ से १२४८ १२४९ से १३१४ १२४९ से १३१४ १२४९ से १२७३ पृष्ठ संख्या ३४४ से ३४९ ३४४ से ३४९ ३४९ से ३५२ ३४९ से ३५२ ३५२ से ३६२ ३५२ से ३६२ ३५२ ३५२ से ३५३ ३५४ से ३५६ ३५६ से ३५७ ३५७ से ३६० विषय दूसरा अवान्तर अधिकार सम्यक्त्व का लक्षण 'स्वात्मानुभूति' तीसरा अवान्तर अधिकार सम्यक्त्व के सहचर लक्षण - श्रद्धा-रुचि-प्रतीति-चरण चौथा अतान्तर अधिकार सम्यक्त्व के लक्षण प्रशम-संवेग (निर्वेद)-अनुकम्पा-आस्तिक्य सहचर लक्षण प्रशम का निरूपण संवेग का निरूपण अनुकम्पा का निरूपण आस्तिक्य का निरूपण आगम प्रमाण तथा अगले कथन की भूमिका सम्यक्त्व के उपलक्षण भक्ति, वात्सल्यता सम्यक्त्व के उपलक्षण गर्दा, निन्दा सम्यग्दर्शन के लक्षणभूत ८ अंगों का निरूपण पाँचताँ अवान्तर अधिकार नि:शङ्कित अंग का स्वरूप सामान्य निशङ्कित अंग का निरूपण मय शंका समाधान विशेष वर्णन निशङ्कित अंग (क) सम्यग्दर्शन में इह लोक भय नहीं (ख) सम्यग्दर्शन में पर लोक भय नहीं (ग) सम्यग्दर्शन में वेदना भय नहीं (घ) सम्यग्दर्शन में अरक्षा भय नहीं (च) सम्यग्दर्शन में अगुप्ति भय नहीं , (छ) सम्यग्दर्शन में मरण भय नहीं (ज) सम्यग्दर्शन में अकस्मात भय नहीं छठा अतान्तर अधिकार नि:कांक्षित अंग सातवाँ अवान्तर अधिकार निर्विचिकित्सा अंग आठवाँ अवान्तर अधिकार अमूढ़ दृष्टि अंग (क) तत्व मूढ़ता (ख) लोक मूढ़ता ३६० से ३६१ ३६१ से ३६२ ३६२ से ३७३ ३६२ से ३७३ ३६२ से ३६५ १२७४ से १२८३ १२८४ से १२९१ १२९२ से १२९८ १२९९ से १३०३ १३०४ से १३०६ १३०७ से १३१० १३११ से १३१४ १३१५ से १३४४ १३१५ से १३४४ १३४५ से १३५५ १३४५ से १३५५ १३५६ से १५४२ १३५६ से १५४२ १३५७ से १३६० १३६१ से १३६२ ३६५ से ३६६ ३६६ से ३६८ ३६८ से ३६९ ३६१ से ३७० ३७० से ३७१ ३७१ से ३७२ ३७२ से ३७३ ३७४ से ३७९ ३७४ से ३७९ ३८० से ३८२ ३८० से ३८२ ३८२ से ४०८ ३८२ से ४०८ ३८२ ३८२ से ३८३

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