Book Title: Granthraj Shri Pacchadhyayi
Author(s): Amrutchandracharya, 
Publisher: Digambar Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 13
________________ (१९) विषय पृष्ठ संख्या २६९ से २७४ २७५ से २१९ २७५ से २१९ २७६ २७६ २७७ २७७ २७७ २७८ से २८१ २८१ से २८४ ९६२ ९६३ २८४ से २८५ २८५ २८६ से २८८ सूत्र संख्या शंका - समाधान ९४९ से १५७ छठा अतान्तर अधिकार पर्याय दृष्टि से जीवतत्व का निरूपण ९५८ से १००५ प्रतिज्ञा ९५८ से १५९ जीव का लक्षण'चेतना' ९६० चेतना के भेद तथा उन भेदों का स्वरूप ९६१ शुद्ध चेतना में भेद नहीं है इसकी सहेतुक सिद्धि अशुद्ध चेतना के दो भेद हैं इसकी सहेतुक सिद्धि शुद्ध चेतना का निरूपण ९६४ से ९७३ अशुद्ध चेतना का निरूपण ९७४ से ९८२ सम्यग्दृष्टि के शुद्ध चेतना ही है तथा अबन्धफल वाली ही है तथा मिथ्यादृष्टि के अशुद्ध चेतना ही है तथा बन्ध फलवाली ही है। ९८३ से ९८५ यह नियम है। सम्यग्दृष्टि के सामान्य का ही संवेदन है ९८६ से ९८७ समाधान ९८८ से १९६ ज्ञान वैराग्य की शक्ति के कारण ज्ञानियों की कोई भी क्रिया बन्ध का कारण नहीं है ९९७ से १००५ सातता अवान्तर अधिकार से ११४२ सम्यग्दृष्टि के ऐन्द्रिय सुख तथा ऐन्ट्रिय ज्ञान में हेय बुद्धि है और अतीन्द्रिय ज्ञान तथा अतीन्द्रिय सुख में उपादेय बुद्धि है १००६ से ११४२ विषय परिचय ऐन्द्रिय सुखाभास का वर्णन १००६ से १०२५ सम्यग्दृष्टि के विषय सुख की अभिलाषा नहीं है १०२६ से १०४४ सुख और ज्ञान के भेद तथा उनमें हेय-उपादेयता १०४५ ऐन्द्रिय ज्ञान का वर्णन १०४६ से १०७५ अबुद्धिपूर्वक दुःख की सिद्धि १०७६ से १११२ सिद्धों के अतीन्द्रिय सुख और अतीन्द्रिय ज्ञान की सिद्धि १११३ से ११३८ इस अवान्तर अधिकार का सार रूप उपसंहार सूत्र ११३९ से १९४२ परिशिष्ट व प्रश्नोत्तर द्वितीय खण्ड/पञ्चम पुस्तक सम्यग्दर्शन का निरूपण ११४३ से १५८८ विषय अनुसंधान पहला अवान्तर अधिकार ११४३ से ११५३ शुद्ध सम्यक्व का निरूपण ११४३ से ११५३ विषय परिचय सूत्र २८८ से २९९ २९९ से ३३१ २९९ से ३३१ २९९ से ३०१ ३०१ से ३०६ ३०६ से ३११ ३१२ ३१२ से ३१८ ३१८ से ३२५ ३२५ से ३३० ३३० से ३३१ ३३१ से ३३६ ३३७ से ४३० ३३७ ३३७ से ३४४ ३३७ से ३४२ ३४३ से ३४४

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