Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan Author(s): Shashikala Chhajed Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan View full book textPage 9
________________ तृतीय परिवर्त 'ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण' का है। इसमें देश, नगर, पर्वत, नदी, उद्यान व वृक्षादि वनस्पति का चित्रण किया गया है। चतुर्थ परिवर्त 'ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन' में तत्कालीन सामाजिक स्थिति का वर्णन, परिवार, आचार-व्यहार, वेशभूषा, उत्सव-महोत्सव, लोकविश्वास, कुरीतियाँ व बुराइयाँ, वर्ण व्यवस्था तथा आश्रम व्यवस्था के संदर्भ में विवेचन किया गया है। पंचम परिवर्त 'ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन' में कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार, मुद्रा व माप-तौल आदि उपशीर्षकों के माध्यम से तत्कालीन आर्थिक स्थिति का वर्णन किया गया है। षष्ठम परिवर्त 'ज्ञाताधर्मकथांग में राजनैतिक स्थिति' से संबंधित है। इसमें राजा, राजा का स्वरूप, गुण, अधिकार, कर्त्तव्य, राज्य का स्वरूप, राज व्यवस्था, राज्य के अधिकारी, आय-व्यय के स्रोत, सैन्य संगठन व युद्धकला तथा शस्त्रास्त्रों का वर्णन किया गया है। सप्तम परिवर्त 'ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा' में शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप, लक्ष्य, अध्ययन-अध्यापन, विषय, गुरु, शिष्ट, गुरु-शिष्य सम्बन्ध, अनुशासन व्यवस्था व शिक्षालयों आदि के संदर्भ में तत्कालीन शिक्षा-व्यवस्था का विश्लेषण किया गया है। अष्टम परिवर्त 'ज्ञाताधर्मकथांग में कला' में तत्कालीन कलाओं की झांकी प्रस्तुत करने के लिए कला शब्द की व्युत्पति, अर्थ, परिभाषाएँ, तत्त्व व प्रकारों को बतलाते हुए तत्कालीन जीवन पर कला के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। नवम परिवर्त ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन' में तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा, आचारमीमांसा व कर्ममीमांसा के आलोक में ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन का सांगोपांग विश्लेषण करते हुए तत्कालीन समय में प्रचलित जैनेतर धर्मदर्शन का भी परिचय प्रस्तुत किया गया है। ___ 'उपसंहार' में ग्रंथ की महत्ता व उपयोगिता को उजागर करने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत कृति के लेखन में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी रहे सभी महानुभावों के प्रति आभार ज्ञापित करने हेतु मेरे पास उतने शब्द नहीं है, फिरPage Navigation
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