Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 12
________________ सभी सदस्य साथ रहते हैं और एक ही चूल्हे का भोजन करते हैं, यह उस घर का पुण्य है किन्तु जब एक ही माता-पिता की संतानें अलग-अलग घर बना लेती हैं और एक दूसरे का मुँह देखना भी पसन्द नहीं करतीं तो यही कारण उनके पारिवारिक पाप' का बीज बन जाता है। माता-पिता के रहते हुए अगर बेटे अलग हो जाएँ तो यह माँबाप के पाप का उदय है, और उनका साथ रहना दोनों के पुण्यों का उदय है। त्याग परिवार की एक सूत्रता का मूलमंत्र है। बचपन में आपने वह कहानी जरूर सुनी होगी जिसका शीर्षक था सूखी डाली। वह कहानी यह थी कि एक परिवार जो प्राचीन परम्पराओं का संवाहक था, उसमें एक आधुनिक पढ़ी-लिखी लड़की बहू बनकर आती है। घर के संस्कार और वहाँ का वातावरण कुछ इस तरह का होता है कि बह उसमें ढल नहीं पाती। वह अपने पति को समझा-बुझा कर अपना घर, अपना मकान अलग बनाने का निर्णय कर लेती है। जब वे दम्पति अपना सामान बाँधकर जाने के लिए तैयार होते हैं तो घर के बुजुर्ग दादाजी पूछते हैं, क्या बात है बेटा, कहीं बाहर जारहे हो?' ___ बहू आधुनिक थी, पर मर्यादित थी। उसे घर के पुराने सोफे, पुरानी टेबल, कुर्सियाँ, दीवारों का रंग-रोगन आदि पसन्द नहीं था। वह तो दादा के सामने कुछ न बोली, पर उसकी ननद ने कहा, 'भाभी अपना घर अलग बसा रही है।' दादाजी चौंक पड़े, 'अरे, ऐसी क्या बात हो गई? मेरे जीते जी घर का कोई सदस्य क्या अलग घर बसाएगा? मेरे होते हुए इस वटवृक्ष की डाली क्या अलग हो जाएगी? आखिर क्या कारण है कि बहू को इस घर से अलग होने का सोचना पड़ा?' ननद ने बताया कि भाभी को दीवारों का रंग, पुरानी शैली के सोफे, टेबल-कुर्सी आदि अच्छे नहीं लगते। दादा ने सोचा और तत्काल निर्णय लेते हुए अपने बेटे से कहा, 'बेटा, क्या तुम इतनी छोटी-सी बात के लिए वटवृक्ष से अलग हुई डाली बनना चाहते हो? उन्होंने अपने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, 'बेटा, मेरे पास इतना धन तो नहीं है कि मैं घर का पूरा परिवर्तन कर सकूँ फिर भी तुम यह चाबी लो और मेरे पास जो थोड़ा-सा सोना है उसे बेचकर जैसा बहरानी को पसंद हो, वैसा घर में परिवर्तन कर लो पर कम-से-कम घर को तो टूटने मत दो।' घर का अभिभावक होने के कारण बुजुर्ग का यह दायित्व बनता है कि वह बड़े-से-बड़ा त्याग करके भी घर को हमेशा प्रेम, आत्मीयता, भाईचारा और सहभागिता से एक बनाए रखे। घर के बुजुर्गों के रहते हुए भी अगर घर टूट रहा है तो इसमें नई पीढ़ी से अधिक बुजुर्गवार दोषी हैं। पुरानी पीढ़ी को भी नई पीढ़ी के |11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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