Book Title: Gandharwad Author(s): Bhanuvijay Publisher: Jain Sahitya Mandal Prakashan View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईश्वर जगत्कर्ता नहीं, सर्वशून्यता व 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' यह असंगत कैसे; अनेकान्तवाद क्या; पुनर्जन्म समान ही क्यों नहीं, संसार का अन्त क्यों नहीं, स्वर्ग-नरक कैसे वास्तविक है, पुण्य व पाप क्यों स्वतन्त्र, परलोक क्यों, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य व मोक्ष क्या, मोक्ष से पुनरागमन क्यों नहीं, विषयसुख दुःखरूप क्यों ?.."इत्यादि विषयों का तर्कपूर्ण विवेचन इस पुस्तिका में किया गया है। जिनागम-शास्त्र 'श्री विशेषावश्यक भाष्य', 'श्री नंदीसूत्र टीका', 'श्री रत्नाकरावतारिका' आदि शास्त्रों से इस पुस्तक की रचना की गई है। ग्रीष्मावकाश में बम्बई समिति द्वारा जगह-जगह प्रायोजित 'श्री जैन धार्मिक शिक्षण शिविर' में उच्च शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों को पढ़ाने हेतु इसका गुजराती संस्करण तो हो चुका किंतु इसकी हिन्दो-भाषी देशों में कमी महसूस की जा रही थी अतः इस कमी की पूर्ति हेतु इसका हिन्दी भाषा में रूपान्तर किया गया है । गुर्जर भाषा में जैन धर्म का विपुल साहित्य है परन्तु हिंदी भाषा में इसका प्रभाव सा है। इसकी पूर्ति हेतु 'जैनसाहित्य प्रकाशन मण्डल' की स्थापना की गई है। इसका उद्देश्य जैन धर्म के तत्वज्ञान, नैतिक-धार्मिक जीवन, मोक्ष-मार्ग, कहानियां, रंगीन चित्रावलि आदि प्रकाशित करना है। इसकी एक शाखा 'श्री दिव्य दर्शन प्रकाशन' है जिसका यह पहला पुष्प आपके हाथ में आ रहा है। आशा है कि इसके सौरभ से आप सुवासित होंगे और इसकी पंच वर्षीय योजना से लाभ उठायेंगे। निवेदक मात्मानन्व सभा भवन, धनरूपमल नागोरी एम. ए. साहित्य रत्न जयपुर। प्रकाशन मंत्री: विजयादशमी वि.सं.२०२६॥ जैन साहित्य प्रकाशन मंडल, जयपुर For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 128