Book Title: Gandharwad Author(s): Bhanuvijay Publisher: Jain Sahitya Mandal Prakashan View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना आर्यसंस्कृति की नींव प्रात्मा व कर्म के सिद्धान्त पर आधारित है, परन्तु पाश्चात्य संस्कृति एवं भौतिकवाद से प्रभावित कई मानव, प्रात्मा के पुनर्जन्म के अनेक दृष्टांत प्राप्त होने पर भी, प्रात्मा व कर्म को मानने से इनकार करते है । इसके फलस्वरूप में प्रात्महित-साधना, पापत्याग, एवं हृदय की शान्ति से वे मानव वंचित रहते हैं । अतः आत्मा एवं कर्म के सिद्धान्त को श्रद्ध य कराने हेतु एवं प्रात्मोन्नति के लक्ष्य से यह पुस्तक प्रकाशित की गई है । इसमें प्रात्मा कर्म, पंचभूत, स्वर्ग, नरक, मोक्ष प्रादि पर ठोस युक्ति पूर्वक चितन, परामर्श, विश्लेषण किया गया है । परमात्मा श्री महावीर प्रभू के ११ गणधरों ने दीक्षा स्वीकार के पहले जो प्रभू के साथ प्रात्मा कर्म आदि पर वाद प्रतिवाद किया था उस पर आधारित होने से इसका नाम 'गणधरवाद' रक्खा गया है । विद्वान् लेखक पूज्य पन्यास श्री भानविजय जी महाराज साहब ने इस पुस्तिका में मानों गागर में सागर भर दिया है । इन्द्रभूति एक-महान् विद्वान ब्राह्मण किस अभिमान से प्रभु के पास पाते है कैसे तर्क से प्रात्मा को इन्कार करते हैं; इसके उत्तर में प्रात्मा एक स्वतन्त्र द्रव्य है उस पर प्रभु कौन कौन अकाटय तर्क प्रस्तुत करते हैं. इसी तरह अग्नि भति आदि अन्य विद्वानों के साथ हुई चर्चा में अतीन्द्रिय कर्म की सिद्धि, रागद्वष-हिंसा से कर्म-निष्पत्ति, 'अकस्मात्' का विश्लेषण, पुण्यानुबंधी आदि चतुर्मगी, अमूर्त जीव पर मूर्त कर्म का कैसे सम्बंध, शरीर यही आत्मा क्यों नहीं, बौद्धों के क्षणिकवाद की न्यूनता, For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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