Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ = इन पृथ्वी आदि पंचभूत में से ही, 'समुत्थाय' = प्रकट-उत्पन्न होकर 'तान्येवानुविनश्यति' - इन भूतों के बिखरने के साथ ही वह चेतना भी नष्ट हो जाती है । 'न प्रेत्यसंज्ञा अस्तीति = अन्यत्र जाना होता नहीं' । दूसरी ओर तुम्हें इन्हीं वेद में से 'स्वर्ग कामोऽग्नि होत्रं जुहुयात् = स्वर्ग चाहने वाले को अग्निहोत्र यज्ञ करना चाहिए' ऐसा कथन मिला, जिससे तुम्हें संदेह हुआ कि 'यहाँ से चेतना का अन्यत्र जाना न हो तो अग्निहोत्र करके स्वर्ग जाना जैसी वस्तु क्या है ? इस जीवन में तो कुछ है नहीं, अन्यत्र हो सकती है कि जहाँ जीव जाये । तो फिर क्या जीव जैसी कोई वस्तु होगी ?' समझाने की सुन्दर रीति :- विरोधी को भी तत्त्व समझाने की जगत् कृपालु की यह कैसी सुन्दर पद्धति ! पहले तो आप विपक्षी के हृदय के भाव तथा उसकी शंकापूर्ण आंतरिक परिस्थिति का अनावरण कर देते हैं, अर्थात् स्पष्ट कर के बताते हैं । इसके लिए भी अत्यन्त वात्सल्यपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हैं। शत्रु के गले में भी अपनी बात उतारने का यह अपूर्व मार्ग है। इससे विपक्षी स्नेही बन कर आकर्षित होता है तथा इससे उसका कदाग्रह मिट जाता है कि जिससे वह अब सही तर्कों पर सोचता है; अन्यथा जब तक कदाग्रही बना रहता है तब तक अच्छी से अच्छी युक्ति को भी नहीं गिनता । श्री विशेषावश्यक-भाष्य नामक महान् ग्रंथ में पूज्यपाद श्री श्रुतमहोदधि जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण महाराज ने विस्तार पूर्वक गणधर वाद का आलेखन किया है। इसमें ११ गणधरों के जीव कर्म आदि के संबंधित संदेहों का भगवान श्री महावीरदेव ने तर्क, युक्ति, प्रमाण से जो निवारण किया है उसका आलेखन है। 'जीव नहीं है' इसकी पुष्टि की दलीलें और 'जीव है' इसके प्रमाण की दलीलें संक्षिप्त में यहाँ दी जाती हैं। 'जीव नहीं है' इसकी सिद्धि प्रमाण बिना 'जीव' असिद्ध :- भगवान अब जीव को अलग न मानने वालों की युक्ति बताते हैं ; - पृथ्वी आदि तत्त्वों से जीव जैसा भिन्न तत्त्व (भिन्न पदार्थ) सिद्ध करने में कोई प्रमाण होना चाहिए जो मिलता नहीं; और प्रमाण के बिना कोई भी वस्तु मान्य हो नहीं सकती । बड़े बड़े वादी प्रमाण पर जूझते हैं । किसी के द्वारा प्रस्तुत प्रमाण यदि गलत सिद्ध हो जाय तो उस प्रमाण पर आधारित प्रतिपादन और उस प्रमाण का विषय टिक नहीं सकता । प्रमाण अनेक हैं जैसे प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, संभव, आगम आदि । इनमें से किसी एक प्रमाण से भी भिन्न जीव सिद्ध होता हो तो 'जीव है'-ऐसा प्रामाणिक निर्णय लिया जा सकता है; परन्तु सिद्ध करनेवाला प्रमाण ही तो मिलता नहीं । वह इस प्रकार : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98