Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ उत्पन्न, कुछ अनुत्पन्न, उभय भी और कुछ उत्पद्यमान जन्म लेता है । घड़ा मिट्टी के रूप में पहिले उत्पन्न रह कर जन्मता है और विशिष्ट आकृति के रूप में पहिले अनुत्पन्न रह कर जन्म लेता है; क्योंकि मिट्टी रूप व तुम्बाकार आकृति से घड़ा अभिन्न है। मिट्टी रूप से पहिले है अत: घड़ा है ही । वहाँ आकृति नहीं तो इस रूप में तब घड़ा नहीं । रूप, आकृति उभय अपेक्षा से उत्पन्न-अनुत्पन्न है ; और वर्तमान समय की अपेक्षा से उत्पद्यमान उत्पन्न है । अन्यथा क्रिया निष्फल जाए । (ii) जब कि पूर्व उत्पन्न हो चुका घड़ा अब घटरूप में चारों विकल्पों से अर्थात् उत्पन्न, अनुत्पन्न, उभय अथवा उत्पद्यमान नहीं होता, क्योंकि स्व द्रव्य घटरूप से या स्वपर्याय लाल, बड़ा, हल्का इत्यादि रूप से तो हो ही चुका है, तो बनने का क्या? और परद्रव्य पटादि स्वरूप से या पर पर्याय से कभी भी नहीं हो सकता, अन्यथा पररूप ही हो जाये । सारांश, उत्पन्न हो चूके घड़े आदि के संबंध में अब उत्पन्न का प्रश्न फजूल है। वैसे यह पूछना भी फजूल है कि उत्पन्न वस्तु, अनुत्पन्न, उभय अथवा वर्तमान समय में उत्पद्यमान है या नहीं ? और उत्पद्यमान के लिए. वे ही चार प्रश्न यदि करें तो हम कहेंगे की वह पररूप में उत्पन्न नहीं होता । इस प्रकार सदा विद्यमान आकाश तो आकाश रूप में चारों में से एक भी विकल्प से उत्पन्न नहीं होता । इस प्रकार अनुत्पन्न भी घट स्व द्रव्यरूप में सदा अवस्थित है। इसलिए वह उस रूप में नया उत्पन्न होने का नहीं । यह तो मूल स्व द्रव्यरूप में घट-आकाश की बात हुई। पर्याय-चिन्ता में, परपर्याय-रूप में चारों विकल्पों से कभी उत्पन्न नहीं हो सकता । स्वपर्याय में भी जो उत्पन्न हो चुका है वह उसी स्व-पर्याय रूप में भी अब नया उत्पन्न नहीं होता है; और अनुत्पन्न स्व पर्यायरूप में उत्पन्न हो सकता है। (४) उत्पादक सामग्री घटित हो सकती हैं : (१) 'सर्व ही नहीं होने से सामग्री जैसा कुछ भी है नहीं' यह आपका कथन बाधित है, क्यों कि पहले तो यह कथन स्वयं ही कंठ-ओष्ठ-तालु आदि सामग्री से हुआ प्रत्यक्ष दीखता है; तब सामग्री जैसा कुछ नहीं है यह कहां रहा ? प्रश्न - यह तो अविद्यावशात् दीखता है क्योंकि कहा है - काम-स्वप्न- भयोन्मादैरविद्योपप्लवात् तथा । पश्यन्त्यसन्तमप्यर्थं जनः केशेन्दुकादिवत् ॥ काम-प्राबल्य, स्वप्न, भय, उन्माद और अविद्या (मतिभ्रम) से लोग आँख के आगे केश तंतु की भाँति असत् भी वस्तु देखते है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98