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उत्तर - जैसे ध्वंस उत्पन्न होने के पश्चात् नष्ट नहीं होता, वैसे ही मोक्ष भी नष्ट नहीं होता है । अथवा मोक्ष उत्पन्न होने जैसा क्या है ? आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रगट हुआ, यही मोक्ष है । घड़ा फूटने से घटाकाश नष्ट हुआ, परन्तु उससे आकाश में कोई नयी वृद्धि नहीं हुई । इस प्रकार इस कर्मक्षय से शरीरी आत्मा न रही, बाकी आत्मा में कोई नई वृद्धि नहीं होती कि जो बाद में नष्ट हो ।
मोक्ष होने के पश्चात् ये जीव और कर्म-पुद्गल लोक में ही रहते हुए भी मुक्त हुई आत्मा पर कर्म बन्ध होने के कारण भूत मन-वचन-काय-योगादि अब कभी न मिलने से कर्म-बन्ध नहीं होता । वैसे जब कर्म बीज ही नहीं, तो भवांकुर भी नहीं। आत्मा द्रव्य रूप से नित्य और संसार-पर्याय रूप से अनित्य एवं उन संसार पर्यायों के नष्ट होते ही अविनाशी मोक्षपर्याय रूप में उत्पन्न होती है ।
इस प्रकार आत्मा नित्यानित्य होने से आप ऐसा नहीं कह सकते कि 'नित्य और अमूर्त होने से आत्मा आकाश की भाँति सर्वगत है।' क्यों कि आत्मा एकांतनित्य है ही नहीं; इस प्रकार कर्तृत्व-भोक्ततृत्व-दृष्टुत्वादि से भी सर्वगतता बाधित है। इसीलिए सर्व कर्मक्षय होने पर अपूर्व सिद्धत्व परिणाम की भाँति उर्ध्व गति परिणाम प्राप्त होने से ऊंची लोकान्त में जा सकती है। सर्वगत में तो 'जाना' क्या? लोकान्त में जाने के पश्चात् पतन के कारण कर्म, प्रयत्न, आकर्षण-विकर्षण-गुरुत्वादि वहाँ नहीं, अतः कभी भी पतन नहीं ।
प्रश्न - अमूर्त आत्मा आकाशवत् अक्रिय क्यो नहीं ?
उत्तर - आकाश की अपेक्षा आत्मा में जैसे चेतनत्व कर्तृत्वादि विशेष धर्म है, इसी तरह सक्रियत्व भी एक विशेष धर्म है । यद्यपि देह-क्रिया में कर्मविशिष्ट आत्मा कारण है और इस देह-क्रिया के साथ आत्मा सक्रिय होती है। सर्वकर्म क्षय होने पर पूर्व प्रयोग से आत्मा, पानी के नीचे रही तुम्बी, उसे लगी हुई मिट्टी धुल जाने पर जैसे स्वयं ही सक्रिय होती ऊंचे आती है, उसी तरह जीव कर्मरूपी बोझ नष्ट होते ही ऊर्ध्वगतिक बनता है, किन्तु वह सिद्धशिला तक ही । आगे अलोक में गति-सहायक धर्मास्तिकाय पदार्थ न होने से गति नहीं होती । लोकान्ते जहाँ रहा वहाँ कर्म देह व देह-क्रिया नहीं, अतः आत्मा में गमनादि क्रिया नहीं ।
प्रश्न - अलोक, धर्मा. अधर्मा. आदि होने के प्रमाण क्या ?
उत्तर - 'लोक' व्युत्पत्ति वाला शुद्ध पद होने से, इसका जो प्रतिपक्ष हो, वही अलोक; जैसे कि चेतन का प्रतिपक्ष अचेतन ।
प्रश्न - घड़ा, वस्त्र आदि ही अलोक है ऐसा मानतें हो न ?
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