Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 68
________________ उत्तर - यदि सभी सामग्री असत् होकर ही दीखती हो, तो कछुए के रोम की, गधे के सींग इत्यादि की, सामग्री क्यों नहीं दीखती ? असत् है वास्ते न ? अतः कहिये जो सामग्री दिखती है यह सत् है । (२) छाती, मस्तक, कंठ आदि सामग्रीमय वक्ताव शब्दमय वचन और प्रतिपाद्य विषय है या नहीं ? यदि है, तो सर्व शून्य कहाँ रहा ? यदि नहीं तो 'सर्वशून्य' किसने सुना ? इसी तरह प्रतिपाद्य विषय बिना का कथन वंध्या माता जैसा है। माता अर्थ ही है पुत्रवती; वह वंध्या कैसी ? कथन अर्थात् जो कुछ कहना है, यह कथनीय रहित ? (३) प्रश्न - वक्ता, वचन, कुछ भी सत् है ही नहीं, इसीलिए वाच्यवस्तु नहीं । यही सर्व शून्यता बन सके न ? उत्तर - कुछ नहीं । यह बताइये कि ऐसा कहने वाला वचन सत्य या मिथ्या ? यदि सत्य, तो यही सत् ! यदि मिथ्या तो वह अप्रमाण होने से इससे कथित सर्व-शून्यता असिद्ध ठहरती है। (४) यदि कहते हो 'चाहे जैसे हमने यह वचन स्वीकार कर लिया है' तो यह स्वीकार सत्य अथवा मिथ्या ? अपरंच सर्व शून्यता में तो स्वीकारकर्ता स्वीकार, स्वीकार्य तत्त्व इत्यादि भी क्या ? (५) यदि सभी असत् है, तो नियत व्यवहार का उच्छेद हो जायेगा या अनुपपत्ति, अघटमानता होगी । तेल यह तिल आदि सामग्री में से ही क्यों ? बालू में से क्यों नहीं ? गगनारविंद में से कार्य क्यों न हों ? अमुक अमुक के ही कार्यकारण भाव दीखते है, दूसरों के नहीं, यह कार्य शून्य सामग्री में से नहीं, किन्तु वैसे वैसे स्वभाव वाली सत् सामग्री में से ही होते हैं तभी बन सकता है। (४) तथा सभी सामग्रीमय है सामग्रीजन्य है - ऐसा भी कहना अनुपयुक्त है; क्योंकि परमाणु किसी से उत्पाद्य नहीं, फिर भी दृश्यमान स्थूल कार्य पर से यह सिद्ध है ऐसी वस्तु स्थिति है, अन्यथा 'सभी सामग्रीजन्य' कह कर और 'अणु है ही नहीं' कहना यह तो 'सर्व वचन असत्य है' कहने जैसा स्व वचन से ही बाध्य है, क्योंकि सामग्री की अन्तर्गत तो परम्परा से अणु आएँगे ही । मूल में अणु ही बाध्य है, क्योंकि सामग्री की अन्तर्गत तो परम्परा से अणु आएँगे ही। मूल में अणु ही न हों तो सामग्री बिना द्वयणुकादि कैसे बनेंगे ? यदि अणु को भी बनता मानो, तो किस सामग्री में से ? शून्य में से सृष्टि होती नहीं, अन्यथा कोई नियम ही न रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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