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अप्रत्यक्ष वस्तु अनुमान से सिद्ध होने के उदाहरण :
वायु यह स्पर्श, शब्द, स्वास्थ्य, कंपन आदि गुण के आश्रय गुणी के रूप में गम्य है। ठंडी पवन लहरी के स्पर्श से कहते हैं 'वायु ठंडा बह रहा है।' पवन की दिशा में शब्द सुना जाता है विरूद्ध दिशा में नहीं; इससे सूचित होता है कि उस शब्द का आश्रय वायु उस दिशा में बह रहा है।
आकाश यह पृथ्वी-पानी आदि के आधार रूप में सिद्ध है । पृथ्वी आधार है, मूर्त होने से; जैसे पानी का आधार पृथ्वी, वैसे पृथ्वी का आधार आकाश ।
पंचभूत जीव - शरीर के आधार से और उपयोग से सिद्ध हैं।
वनस्पतिकाय यह मानव शरीर के भाँति जन्म, जरा, जीवन, मरण, वृद्धि, छेदने के बाद भी समान अंकुरोत्पत्ति, आहार, दोहद (कुष्मांड-बीजोरा आदि) रोग-चिकित्सा आदि से जीव रूप सिद्ध होता है । वनस्पतिकाय में विशेष जीव इस प्रकार सिद्ध है :
लजवन्ती स्पृष्ट संकोच से सिद्ध बेल
स्वरक्षार्थ बाड़, दीवार आदि के आश्रय से सिद्ध शमी आदि निद्रा-जागरण-संकोचादि से सिद्ध बकुल
शब्दाकर्षण से सिद्ध अशोक
रूपाकर्षण से सिद्ध कुरूबरू
गंधाकर्षण से सिद्ध विरहक
रसाकर्षण से सिद्ध चंपा तिलक स्पर्शाकर्षण से सिद्ध
पृथ्वीकाय जीव मांसाकुर की भाँति समान जाति के अंकुर की वृद्धि से सिद्ध हैं। खोदे हुए पर्वत, खान, कई वर्ष बीतने पर तद्रूप भर जाते हैं । बिना जीव के यह कैसे हो?
अप्काय जीव खोदी हई भूमि में से मेंढक की भाँति सजातीय स्वाभाविक प्रकट होने से सिद्ध होते हैं । मत्स्य की भाँति आकाश में से मेघादि के विकार वश होने से सिद्ध है।
वायुकाय जीव बैल की भाँति पर-प्रेरण के बिना तिर्थी अनियमित गति से सिद्ध है।
अग्निकाय जीव आहार पर जीने से, और आहार वृद्धि से विशेष विकासमयविकारमय बनने से सिद्ध है ।
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