Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 34
________________ महान् अभयदान दे सके ऐसी सहासत्त्व, महानीति, न्यायसंपन्नता, महा ब्रह्मचर्य, और महान् त्यागसेवन की अधिकारिणी आत्मा । (५) मैं अर्थात् विनय विवेक, विराग, विरति, विश्वास आदि 'वि', - (V for victory) विजय के 'वि', - की अधिकारिणी आत्मा । (६) मैं अर्थात् शांति, क्षमा, सहिष्णुता, सद् आशय, सद् विचार आदि अनेकानेक गुणों और उत्तम धर्म की अधिकारिणी आत्मा । (७) यावत् उत्तरोत्तर सुखमय सद्गति और परमपद के अनंतानंत सुख की अधिकारिणी आत्मा मैं', इत्यादि इत्यादि । क्यों सुन्दर है न ? ऐसे सुन्दर स्वरूप वाले हमें कहाँ संकुचित होने या भूलने का है। इस विचारणा में विशेष विषयान्तर तो नहीं हुआ, परन्तु अब अन्य प्रमाणों के साथ विशेषतः आगम-प्रमाण में दर्शनों के मंतव्य और उनकी समालोचना देखें । आत्म-सिद्धि के लिए उपमान प्रमाण- उपमान प्रमाण से भी आत्मा प्रमाणित होती है क्योंकि इसमें किसी के साथ तुलना करनी पड़ती है और आत्मा की तुलना वायु आदि के साथ हो सकती है। आत्मा वायु जैसी है। शरीर में सुस्ती, पेट का फूलना, नगारे जैसी आवाज, वायु छूटना आदि पर से भीतर के अदृश्य वायु का भी बल निश्चित होता है; इसी प्रकार शरीर में होती इष्ट-अनिष्ट के प्रति प्रवृत्ति-निवृत्ति, चेहरे पर दिखाई देती क्रोध-घमंड की मुद्रा, रक्त संचार, नसों का कंपन आदि से शरीर के भीतर अदृश्य आत्म-द्रव्य निश्चित होता है । वायु को हम आँख से देख नहीं सकते, परन्तु कहीं कपड़ा या कागज उड़ा हो तो कहते हैं कि वायु से उड़ा, इसी प्रकार इन्द्रियों व अंगोपांग की हलचल, मन की विचारणा, आदि हुई तो कहा जाता है कि यह आत्मा के कारण हुइ; भले हम आत्मा को आँख से न देख सकें । यदि कोई कहता है कि 'आत्मा वायु जैसी हो तो उसका स्पर्श से अनुभव होना चाहिए और यह प्राण, अपान, उदान आदि की भाँति अंगोपांग में भिन्न भिन्न होनी चाहिये'; तो उसका कथन ठीक नहीं है, क्योंकि दृष्टान्त सर्वदेशीय नहीं परंतु एक देशीय होता है। वहाँ आँख से अदृश्य तत्त्व की एकदेशीय तुलना है । अर्थापत्ति प्रमाण से भी आत्मा सिद्ध होती है क्योंकि जैसे महीनों तक दिन में बिल्कुल न खाने वाले देवदत्त का शरीर पुष्ट दीखता है वहां रात्रि भोजन के बिना शारीरिक पुष्टता घट नहीं सकती; इसी प्रकार मृत्यु के पश्चात् तुरन्त ही जरा भी हलचल करने से असमर्थ शरीर में मृत्यु से पूर्व जो हलचल दिखाई देती है वह जीव की स्थिति के बिना अर्थात् शरीर में गुप्त आत्मा की मौजूदगी के विना नहीं हो सकती। इस प्रकार अर्थापत्ति से आत्मा सिद्ध है। संभव प्रमाण - से भी आत्मा सिद्ध है ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि संभव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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