Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 44
________________ तभी धुंआं, दूध में से ही दही, दहीं हो तभी मक्खन । (२) स्वभाव के ४ अर्थ - (i) यदि सब स्वभाव से हो जैसे अग्नि की ज्वाला ऊंची ही, वाय तिरछी ही, अग्नि उष्णता दे, पानी शीतलता प्रदान करें, कांटा तीक्ष्ण ही है, तो स्वभाव का अर्थ क्या ? 'स्वभाव' = स्व का भाव, यह (i) वस्तु का कोई धर्म, (ii) वस्तु की सत्ता, (iii) वस्तु विशेष, अथवा (iv) स्व का भाव अर्थात् काल-पर्याय हो सके । अब (i) स्वभाव से यानी अपने धर्म से उत्पन्न होता है, कहो; परन्तु अभी तक जिस वस्तु का ही जन्म नहीं हुआ तो उसका धर्म ही कहां है ? बिना धर्म के यह वस्तु उत्पन्न हुई कैसे ? धर्म को भिन्न मानना हो तो वह कर्म का ही भाई हुआ न ? (ii) 'वस्तु की सत्ता' यह स्वभाव मानने में कार्य के सिवाय बाहर से तो कुछ भी लाना नहीं, कार्य ही वस्तु गिना जायगा, इसकी सत्ता अभी तक आई नहीं तो स्वयं स्वयं को किस प्रकार जन्म दे ? (ii) वस्तु विशेष क्या है - द्रव्य, गुण या क्रिया ? यदि यह भिन्न वस्तु है तब तो वस्तु भिन्न कारण से बनी ! स्वभाव से होने का क्या रहा ? (iv) स्वभाव कर के स्व का काल पर्याय लेकर काल में से कार्य वस्तु जन्म लेती है ऐसा यदि कहें, तो एक ही काल में तो अनेक वस्तुएँ उत्पन्न होती है, फिर कार्यों में भिन्नता क्यों ? कारण-भेद बिना कार्य-भेद नहीं । (३) स्वात्महेतुक - स्वयं स्वयं से ही उत्पन्न होता है यह बात बुद्धिसंगत नहीं है। अपने स्वयं से उत्पन्न होने के लिये स्वयं अपनी प्रथम उपस्थिति होनी चाहिये। यदि उपस्थिति है, तो फिर उत्पन्न होना क्या शेष रहा ? यदि शेष है अर्थात् अभी उपस्थिति ही नहीं, तो 'अपने स्वयं से' सम्भव ही कहां से ? (४) 'असत् से उत्पत्ति' यह भी गलत । असत् कोई चीच ही नहीं है, तो इससे उत्पन्न होना क्या ? एवं खरश्रृंग-सम से उत्पन्न होने वाला इसके समान असत् ही हो न? अथवा चाहे जो यदि उत्पन्न हो सके, तब तो फिर किसी को गरीब, किसी को भूखा, व किसी को रोगी रहने की क्या आवश्यकता? क्यों कि पैसा, अन्न, आरोग्य असत् से उत्पन्न हो जाऐंगे । अथवा असत् से उत्पन्न होता हो तो कार्य समान रूप के हो, किन्तु कभी बाल्यकाल, कभी युवावस्था, ऐसे विषम कार्य क्यों ? अथवा सम-विषम कार्य तब साथ होने लगे, - सर्दी-गर्मी, रोग-आरोग्य, जीवनमृत्यु आदि! इसलिए कार्य अकस्मात् उत्पन्न होता है, यह बात सर्वथा गलत सिद्ध होती है। कर्म की उत्पत्ति (i) हिंसा से, (ii) राग द्वेष से, (iii) कर्म से, इन तीनों प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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