Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 63
________________ में तो ज्ञेय क्या और अज्ञेय क्या ? प्रश्न - स्वप्न में वस्तु कुछ भी नहीं फिर भी संदेह होता है न ? (४) उत्तर - स्वप्न में भी पूर्वदृष्ट अनुभूत अथवा श्रुत पर ही संदेह होता है । अतः स्वप्न में भी संदेह का निमित्त सत् है । स्वप्न स्वयं भी ज्ञानरूप होने से सनिमित्तक ही होता है । सर्व शून्य में तो स्वप्न भी किस पर? (५) सर्व शून्य में निम्नलिखित भेद क्यों होते हैं ? : १. एक स्वप्न, दूसरा अस्वप्न, २. एक सत्य, दूसरा असत्य, ३. एक सच्चा नगर, दूसरा मायानगर, ४. एक मुख्य, दूसरा औपचारिक, ५. एक कार्य, दूसरा कारण व कर्ता, ६. एक साध्य, दूसरा साधन, ७. एक वक्ता, वाच्य, दूसरा वचन, ८. एक स्वपक्ष, दूसरा परपक्ष, ९. एक गुरु, अन्य शिष्य, १०. एक इन्द्रियां ग्राहक, दूसरा शब्दादि ग्राह्य, ११. एक ऊष्ण, दूसरा शीत, १२. एक मधुर, दूसरा कडवा, १३. पृथ्वी स्थिर, पानी प्रवाही, अग्नि उष्ण, वायु-चल आदि नियत स्वभाव क्यों ? सभी समान, जैसे कि सभी स्वप्न ही या सभी सत्य ही क्यों नहीं ? व्यवहार से विपरीत ही क्यों नहीं ? या यदि सभी असत् तो भिन्न भिन्न रूप से ज्ञान ही कैसे हो ? प्रश्न - मृगजल की भाँति इसका ज्ञान तो हो सकता है, परन्तु वह सच्चा नहीं । एक स्वप्न, दूसरा अस्वप्न, आदि ज्ञान भ्रम रूप है। उत्तर - निश्चित अमुक प्रकार के ही देश-काल-स्वभावादि के साथ संबद्ध रूप में विषय का ज्ञान होने से इसे भ्रम नहीं कह सकते, जैसे कि, यहाँ तो चांदी है और वहाँ चांदी नहीं, कलई है। कल वाला घड़ा अभी नहीं है। ... इत्यादि सच्चे ज्ञान। (६) भ्रम भी स्वयं सत् है अथवा असत् ? यदि भ्रम सत् है तो उतना सत् होने से 'सब शून्य असत्' इस सिद्धान्त का भंग हो गया ! अगर भ्रम असत् है तो 'यह स्वप्न, वह अस्वप्न' इसका विषय सत् ही हुआ ! भ्रान्ति को असत् स्वरूप जानने वाला ज्ञान सत् सिद्ध होगा। इस प्रकार शून्यता सत् अथवा असत् ? यहाँ भी यही आपत्ति । (७) शून्यता प्रमाण से सिद्ध करनी होती है। अब वहाँ लगाया प्रमाण यदि सत् तो उतना सत् रहने से सर्व-शून्यता नहीं, प्रमाण यदि असत् तो वैसे प्रमाण से शून्यता सिद्ध नहीं होगी। अब पूर्व पक्ष के प्रथम पांच विकल्पों की समीक्षा करें :(१) पहिले मानना कि 'वस्तु की सिद्धि सापेक्ष है' और फिर कहना हि 'सिद्धि *५२ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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