Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 54
________________ वर्ष होता है यह अनुवाद वचन है; यह मात्र वस्तुस्थिति प्रस्तुत करता है । प्रस्तुतमें 'पुरुषवेदं ग्निं सर्वं' यह वचन उपर कहा वैसे पुरुष-आत्मा की स्तुति का सूचक है, परन्तु कर्म की वस्तुस्थिति का निषेधक नहीं । अन्यथा कर्म-प्रतिपादक 'पुण्यं पुण्येन कर्मणा, पापः पापेन' आदि अन्य वेद-वाक्य गलत सिद्ध होंगे। इसी तरह जैसा पूर्व में कहा गया वैसे बिना कर्म अकेला पुरुष-तत्त्व कहने से पदार्थ-संगति नहीं होती। महावीर प्रभु की इस समझाइश से अग्निभूति गौतम भी प्रतिबोधित हुये और उन्होंने ५०० विद्यार्थियों के साथ प्रभु की शरण में दीक्षा ग्रहण की । * तीसरे गणधर: वायुभूति : शरीर ही जीव है ? दो बड़े भाई इन्द्रभूति और अग्निभूति भगवान के शिष्य बनें, ऐसा समाचार सुन कर तीसरे भाई वायुभूति और अन्य विद्वान ब्राह्मण तो ऐसा ही सोचने लगे कि 'महावीर भगवान वस्तुतः सर्वज्ञ है; तो हम अपनी विद्वता का गर्व क्या रक्खें ? हम भी जाएँ महावीर प्रभु के पास, और उनको वंदन कर उनकी उपासना करें । इन्द्रभूति और अग्निभूति जैसे समर्थ विद्वान् भी जिनके चरण-सेवक बने ऐसे इन त्रिभुवन जन से वंदित महापुरूष के विनय-वंदना से हम भी पापरहित बनें और अपने संशय का निवारण करें।' बस चलें ६ प्रमुख विद्वान अपने अपने परिवार के साथ प्रभु के प्रति । कैसे श्रद्धालु व तत्त्वरसिक ? 'अपने दो प्रधान अग्रणीने अगर प्रभु का शरण ले लिया, तो चलो हम भी यही करें,' यह श्रद्धा; व 'यदि सत्यतत्त्व का जीवन मिलता है' तो छोडो यह मिथ्या जीवन', यह तत्त्वरसिकता। सब से आगे अपने ५०० विद्यार्थियों के साथ वायुभूति प्रभु के पास जा खड़े हुए । उस काल में आत्मविद्या का, धर्म-शास्त्रों की विद्या का कितना प्रेम होगा कि एक एक के पास सैंकड़ों विद्यार्थी विद्याभ्यास कर रहे थे। इन ग्यारह में से पत्येक के पास सेंकड़ों विद्यार्थी थे, घर परिवार छोड़ कर वे लोग विद्यागुरु के साथ घूमते थे । वे विनीत और विवेकी भी ऐसे थे कि गुरू यदि किसी महान् की शरण में जीवन अर्पित कर दें तो वे भी उसी का अनुसरण करते थे। मानव जीवन का पराग क्या ? उसका पशुजीवन से ऊंचा आचरण कौन सा ? संशय का कारण : वायुभृति भगवान के पास आये । प्रभु ने उसी प्रकार नाम-गोत्र के संबोधन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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