Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 51
________________ प्रश्न - ठीक हो, तो फिर आत्मा में कर्म के विकार स्वाभाविक मानो । उत्तर - कारण बिना कभी कार्य नहीं बनता। स्वभाव भी एक आवश्यक कारण है किन्तु उसके साथ काल, पुरूषार्थ, निमित्त-साधनादि कारण भी आवश्यक हैं । प्रश्न - आकाश में सीधे सीधे विचित्र विकार होते हैं, वैसे ही शरीर में सीधे सीधे सुख-दुःखादि विकार हो । अर्थात् सुख-दुःखादि का कारण सीधा शरीर ही कहो, बीच में कर्म को लाने की क्या आवश्यकता हैं ? उत्तर - शरीर कारण रूप से स्वीकृत है, परन्तु इतना लिख लो कि कर्म-दल भी शरीर (कार्मण) ही है। यदि इसे न मानें तो वर्तमान शरीर को छोड़ कर गई हुई आत्मा बाद के भव में कारणाभाव में स्थूल शरीर कैसे ग्रहण करे? और वह भी विशेष प्रकार का ही कैसे ग्रहण करती है ? अर्थात् ऐसा नहीं होना चाहिये । इससे तो यहाँ की मृत्यु से ही संसार का अन्त और मुक्ति ही हो जाय ! दूसरी आपत्ति यह कि यदि अशरीरी के लिए भी संसार हो तब तो मोक्षगत आत्माओं को भी यह हो और इससे तो मोक्ष की आस्था ही उठ जाय । प्रश्न - मूर्त कर्म का अमूर्त कर्म के साथ सम्बन्ध कैसे हो सकता है ? उत्तर - (१) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अमूर्त होने पर भी उनका मूर्त पुद्गल के साथ संबंध हो सकता है तभी तो वह गति स्थिति में उपकारक बनता है । संबंध बिना कैसे बन सकता है ? (२) स्थूल शरीर भी आत्मा के साथ संबंध हुआ है ऐसा अनुभव है; अन्यथा जीवित और मृत शरीर के बीच भेद कैसे हो? इसी प्रकार मूर्त कर्म का आत्मा के साथ संबंध हो सकता है। अथवा संसारी आत्मा सर्वथा अमूर्त नहीं, किन्तु अनादि कर्मप्रवाह के परिणाम में पतित आत्मा पूर्व कर्म के क्षीरनीरवत् संबंध में हो कथंचित् मूर्त भी है, इससे उस पर नये मूर्त कर्म का संबंध हो सकता है। इसीलिए तो सर्वथा कर्मरहित बनी हुई मुक्त आत्मा अब सर्वथा अरूपी होने से उस पर कर्म संबंध होता नहीं । प्रश्न - चंदन के विलेपन और तलवार के प्रहार से अरूपी आकाश पर जैसे कोई अनुग्रह-उपघात नहीं होता, उसी तरह अरूपी आत्मा पर शुभाशुभ मूर्त कर्म के अनुग्रह-उपग्रह कैसे हो? उत्तर - (१) दृष्टांत विषम है; क्योंकि आकाश में उन वस्तुओं का, आत्मा में कर्म की भाँति, संबंध नहीं है । (२) आत्मा में भले बुरे आहारादि के अनुग्रहउपधात प्रत्यक्ष सिद्ध है । (३) अमूर्त बुद्धि पर ब्राह्मी-मदिरा के अनुग्रह-उपघात होते ही है । वैसे ही आत्मा पर कर्म के अनुग्रह-उपघात हो सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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