Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 26
________________ (२) व्यतिरेक व्याप्ति : अन्वय व्याप्ति - यह वहां गिनी जाती है जहां ऐसा संबंध मिले, 'जहां जहां हेतु वहाँ वहाँ साध्य' जैसे धुंआ और अग्नि । व्यतिरेक व्याप्ति - वहां गिनी जाती है जहां अन्वय से विपरीत संबंध हो, - 'जहां जहां साध्य नही, वहां वहां हेतु नहीं ।' जैसे-सरोवर में अग्नि नहीं तो धुंआ भी नहीं । इतर दर्शनों में जिनेन्द्र देव को इष्टदेव मानने का नहीं, तो जैनत्व नहीं । अब देखो कि ऐसे भी अनुमान होते हैं जहां अन्वय-व्याप्ति नहीं किन्तु मात्र व्यतिरेक-व्याप्ति संबंध ही मिलता है तो उससे अनुमान नहीं होता है; जैसे, - मनुष्य की विलक्षण चेष्टा से उसे भूत लगने का अनुमान होता है; वहां वहां अन्वय व्याप्ति संबंध कहां मिलता है, कि 'जहां जहां विलक्षण चेष्टा, वहां वहां भूत का लगना ?' ऐसा पूर्व में प्रत्यक्ष कहीं नहीं देखा है; क्योंकि भूत दिखाई देने वाली वस्तु ही नहीं है। फिर भी जहां भूत का लगना न हो वहां विलक्षण चेष्टा नहीं, - ऐसा व्यतिरेकव्याप्ति संबंध मिलता है; तो इस पर भूत-प्रवेश का अनुमान हो सकता है। ठीक इसी प्रकार मृत शरीर में नहीं, पर जीवित शरीर में चेष्टा प्रवृत्ति-निवृत्ति दिखाई देती है, इस पर उपरोक्त उदाहरण भूतसंबंध की भाँति इसमें आत्म-संबंध का अनुमान होता है । कह सकते हैं कि जहां जहां आत्म-संबंध नहीं वहां वहां स्वतन्त्र चेष्टा नहीं ।' (२) यंत्र तो नियत-नियमित प्रवृत्ति वाला होता है, परन्तु शरीर तो यंत्र की अपेक्षा विचित्र विचित्र प्रवृत्ति वाला है अतः इसका कारण है किसी का अंत:प्रवेश; जैसे-भूत प्रवेश वाला शरीर । (३) काया एक सुन्दर दो स्तम्भमय महल जैसा है, तो इसका बनाने तथा संचालन करने वाला कोई चाहिये; जैसे - वन में दिखाई देता कोई मकान अथवा कुटिया । काया में मशीनरी है। मस्तक में संदेश कार्यालय, संदेशवाहक ज्ञानतंतु अर्थात् तार, कार्यालय के नीचे आत्माराम को सृष्टि का मजा चखाने के लिए आँख, कान, नाक, जीभ और स्पर्शेन्द्रिय रूपी पांच झरोखें हैं । वहाँ इन प्रत्येक के माध्यम से ग्राह्य वस्तुएँ नाटक, संगीत, बागबगीचे, मिठाइयां तथा सुकोमल वस्तुएँ आदि जब उपस्थित हो जाती हैं तब इनका अनुभव कर राजा आत्माराम आनंदविभोर होता है। इसी प्रकार शरीर-महल में गले में वाद्य यन्त्र, हृदय में जीवन शक्तियां, उसके नीचे भंडार और रसोईघर तथा नीचे पेशाबघर और पाखाना है। ऐसा विचित्र कारखाना किसने बनाया ? और सबका संचालक कौन ? तो उत्तर में आत्मा ही कहना पड़ेगा । ईश्वर को अगर कर्ता कहें तो वह अपूर्ण इन्जिनियर सिद्ध होगा! क्योंकि खाने-पीने की लिप्सा हो, और मल मूत्र का बोझ उठा कर फिरना पड़े, ऐसा शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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