Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 31
________________ है' यह देवदत्त के संयोग का निषेध है । (२) 'गर्दभ श्रृंग नहीं' - इसमें गर्दभ में श्रृंग के समवाय का निषेध है, परन्तु पूरे गर्दभ श्रृंग का नहीं। (३) 'दूसरा चन्द्र नहीं', इसमें एक चन्द्र के समान अन्य चन्द्र का निषेध है । विद्यमान चन्द्र में अन्य की समानता अर्थात् सामान्य नहीं । (४) 'घड़े जितने मोती नहीं' - इसमें प्रमाणविशेष का निषेध है अर्थात् पूरे घटप्रमाण मोती का नहीं, किन्तु सिद्ध मोती में मात्र घट - प्रमाणत्व का निषेध है । ठीक इसी प्रकार यहाँ पूरे जगत्कर्ता ईश्वर का नहीं किन्तु सिद्ध वीतराग ईश्वर में जगत्कर्तृत्व का निषेध, जो कर्तृत्व कर्म आदि कारणों में प्रसिद्ध है । I प्रश्न - खैर, फिर भी 'ईश्वर नहीं' इस निषेध से तो ईश्वर सिद्ध होता है न ? उत्तर भले हो, ईश्वर के नाम से श्रीमन्त, राजादिऐश्वर्य वाले सिद्ध ही है और परम ऐश्वर्यशाली परमात्मा भी सिद्ध है । ( २० ) जो व्युत्पत्तिमान शुद्ध पद है उसका वाच्य होता ही है; जैसे अश्व, 'आशु' शीघ्र जाए वह अश्व | वैसे यह जीव पद है तो इसका वाच्य जीव सिद्ध होता है 'जीता है' यही जीव । 'अतति इति' विभिन्न पदार्थों में जाता है, यह आत्मा । ( २१ ) जिसके स्वतन्त्र पर्याय होते हैं उसका वाच्य स्वतन्त्र होता है, जैसे शरीरदेह-काया- कलेवर आदि शरीर के पर्यायों (other words ) का वाच्य शरीर स्वतन्त्र है इसी तरह जीव - चेतन - आत्मा - ज्ञानवान् आदि जीव के स्वन्त्र पर्याय होने से स्वतंत्र जीवद्रव्य सिद्ध होता है । काल्पनिक शब्दों पर यह बात घटित नहीं होती, जैसे- पटेल भाई के 'ट र र र' शब्द पर कोई अनुरूप पर्याय नहीं मिलती है । (२२) अंतिम प्रिय जगत में ऐसा पाया जाता है कि कोई अवसर आने पर अधिक प्रिय के खातिर कम प्रिय वस्तु का त्याग किया जाता है, जैसे व्यापार के खातिर इतने ऐशआराम का परित्याग किया जाता है, क्योंकि व्यापार अधिक प्रिय है। परन्तु पैसे के लिए हानिप्रद व्यापार बंद किया जाता है, क्योंकि उसकी अपेक्षा पैसा अधिक प्रिय होता है । किन्तु ऐसे प्रिय भी पैसे रोगी के पुत्र के लिए खर्चे जाते हैं, क्यों कि पैसों की अपेक्षा पुत्र अधिक प्रिय है । परन्तु पुत्र की अपेक्षा पत्नी अधिक प्रिय होने से यदि उसे पुत्र अथवा पुत्रवधू की ओर से क्लेश हो तो पुत्र को तुरन्त अलग किया जाता | पर सोचो यदि मकान में भयंकर अग्नि लग जाए, पति पहली मंजिल पर हो, पत्नी चौथी मंजिल पर हो और पति जरा भी रुके तो जलकर भस्म होने का भय हो, तो क्या पति पत्नी को लेने के लिए ऊपर जाएगा ? नहीं, बाहर कूद पड़ेगा, क्योंकि पत्नी अति प्रिय तो है परन्तु उसकी अपेक्षा अपना शरीर अधिक प्रिय है । इससे भी आगे बढ़ते हैं । बहू सास की यातनाओं से उकता कर वह अपने शरीर को भी जलाकर भस्म कर देती हैं, तब वह अपना शरीर भी जाने देना किसके लिये ? शरीर Jain Education International — * २०० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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