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भी जिनचंद्रमुरिजी के समय में निर्माण हुई हैं। प्रस्तुतः प्रकाशन:
प्रस्तुतः वृत्ति आजतक अंधकार में थी. किसीको पता नहीं था कि. यह श्री पद्ममंदिर ने भी गणधरसार्धशतक पर वृत्ति लिखी है. पर हमारे परम पूज्य गुरुदेव श्री १००८ मुनि उपाध्याय सुखसागरजी महाराज वृद्धृति की हस्तलिखित पुरातन प्रतियों की खोज में थे, चारों ओर से अनेक पुरातन प्रतियें प्राप्त की, और सुंदर प्रेस कापी बनाई, इसी प्रेसकापिका से अन्य हस्तलिखित प्रतियों द्वारा संशोधन किया, जिसमें जैपुर ज्ञानभंडार से प्राप्त इस लघुवृत्ति से अवलोकन के पूर्व वृहद्वृत्ति, समझी गयी थी, पर देखने से वह सर्वथा नूतन कृति मालूम हुई, इसे देखने से मालूम हुआ कि यह संभवतः ग्रन्थप्रणेता के समय में ही लिखि गई है. क्यों कि, स्थान स्थान पर नूतन वाक्य, कहीं कहीं तो कई पंक्तिये नूतन उल्लिखित है, क्या ही अच्छा होता यदि इसमें 2 लेखनकाल भी निर्दिष्ट होता, प्रति लेखनशैली को देखते हुए यह १७ वीं शताब्दी की अवश्य होनी चाहिये । ग्रन्थान्तर्गत महापुरुषों का ऐतिहासिक परिचय:
हम ऊपर लिख चुके हैं कि प्रस्तुतः ग्रन्थ यद्यपि धार्मिकवृत्ति पोषणार्थ लिखा गया है, तथापि इसमें ऐतिहासिक तत्त्व काफी रूप से उपलब्ध होता है, जिसके परिचय कराने का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता । आशा है कि पुरातत्त्वान्वेषी भाइ बहनों
को पथप्रदर्शक सिद्ध होगा। सर्वप्रथम मूल ग्रन्थकार महाराजा युगादिदेवादि २४ तीर्थंकरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण कर अत्यन्त I भक्ति के साथ नमस्कार करते है, पुंडरीक गणधर का भी उल्लेख है।
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