Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh Author(s): Tarachandra Jain Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot View full book textPage 9
________________ होती है न कोई युद्ध लड़ाई लड़नी पड़ती है ( २५८ ) । ज्ञानी कहता है कि हमें यह ज्ञान हो गया है कि सभी जीव हमारे समान ही हैं, हम ज्ञाता द्रष्टारूप होकर सब ही जीवों को जानते हैं (१४५) । ____ गुरु द्वारा संबोधन जीवों के कल्याण के लिए और ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु भव्यजनों को जो संबोधन करते हैं उसी का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं - हे भव्य ! सद्गुरु सीख देते हैं उसे मानो (१०५ } | गुरु समझाते हैं कि हे प्राणी ! आत्मा का अनुभव कर (७५) । आत्मा का रूप अनुपम है, पर से सर्वथा भिना है (११७) । हे भव्य ! अपनी आत्मा की संभार कर ( १२१)। हे भाई ! अपने कल्याण के लिए परमार्थ का मार्ग पकड़ा ( २४१ ! हे चेतन ! तुम चतुर हो इसलिए अपना हित करो (१०२) (१०३) । हे प्राणी ! तू पूरक कुंभक रेचक की विधि द्वारा मन साधकर आत्मा का ध्यान कर (८५) । तृ स्थिर होकर ध्यान कर जिससे पवन/साँस स्थिर हो जाए और मन इधर-उधर कहीं न जाये (९१) । हे प्राणी ! तु 'सोहं ' का ध्यान कर इससे तृ त्रिभुवन का ज्ञाता बन जायेगा। तू जिनेन्द्र का नाम जप (१७४), जिनेन्द्र का भजन कर (१७३) । हे भव्य ! तू मन-वंच-काय जिनेन्द्र की पूजा कर । २१)। बंदे ! तू भगवान की बंदगो मत भूल (२१५) (२१६) । हे भाई ! जिनेन्द्र की स्तुति से सब कष्ट दूर हो जाते हैं ( १७१) । हे भाई ! तू जिनेन्द्र का भजन कर, जिस समय तेरा कोई अन्य सहायक नहीं होगा उस समय जिनेन्द्र ही तेरा सहायक होगा ( १८२)। __ हे प्राणी ! तू सजनों की संगति कर ( २२६ ।। तू मिथ्यात्व का त्याग कर, इसके समान दुःख देने वाला अन्य कोई नहीं है ( २४१) । हे प्राणी ! सुगुरु तुझे सुहित की भावना से समझाते हैं (२७७) । तू मन को चंचलता छोड़ ( २५०) । विचार कर कि हमें कौनसा धर्म पालन करना चाहिए (१२५) ! विषय-भोग की निस्सारता - विषय- भोगों की निस्सारता समझाते हुए कवि कहते हैं - हे चेतन ! ये विषय-भोग पत्थर की नाव के समान हैं, ये तुझे भव-सागर में डुबा देंगे, इसलिए इन्द्रिय-विषयों का त्याग कर और जिनेन्द्र का भजन कर (२०९) । विषय-भोग को तजो (७८ } { २९९)। विषय भोग सर्प के समान हैं (७७) । ये विषय विष के समान हैं ( २५९), ये प्राराम्भ में सुखकारी लगते हैं पर अन्त में क्षयकारी होते हैं (२४०)। इनका फल अपार दु:ख हैं [ix)Page Navigation
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