Book Title: Dwadash Parvkatha Sangraha Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar Gani Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir conomocrpercenacance तेओश्रीए अंतिम समय सुधी साहित्यनी खूब खूब सेवा करी हती. मृत्युथी महिना पहेला पण तेओश्री पोतानाथी बनती साहित्यनी सेवा करता हता. आटली नादुरस्त तबियत, खांसीनो सख्त उपद्रव तथा ताव आदि अनेक जातना शरीरमा रोग होवा छतां पण क्यारे पण मनमां कंटाळो लावता ज नहिं अने आ कारणने लइने तेमने आरंभेल सुयगडांग सूत्र द्वितीय भाग कल्पसूत्र (गुजराती टीका) तथा श्री जिनचन्द्रसूरीजी महाराजन चरित्र आदि कार्य तेमना स्वर्गवासथी थोडा दिवस पहेला ज पोतानी हाजरीमा पर्ण करी गया छे. तेमना देह विलयथी जैन समाजे एक महान आगमप्रभावक क्रियापात्र अने अध्यात्मिक पुरुष गुमावेल छे. तेमनी खोट क्यारे पण पूराय तेम नथी. आजना आ नामना महत्ता अने भौतिक सुखोनी पाछळ भान भूलेला आत्माओथी तेओ तदन निरालाज हता. संघे तेमने घणी वखत आचार्यपदवी आपवानी ईच्छा दर्शावी हती पण तेओश्रीनो एक ज उत्तर हतो के आचार्य थईने हुं जे सेवा शासननी करवानो छ तेटली ज सेवा पंचम पदमां स्थित साधुपणे रहीने करी शकीश अने मारामां आचार्य जेटली योग्यता पण नथी. मार्क साधुपणं पण बराबर सचवाई रहे तो घणुं छे। अस्तु । प्रस्तुत ग्रंथमा जे अंतिम सुव्रतशेठनी प्राकृत कथा आपेली छे ते पूर्वाचार्य रचित छ । अंतमां तेओश्रीना स्वर्गगमनथी आ प्रस्तावना आदि लखवानुं कार्य मारा उपर आवी पडेल छे तो तेमां कांइपण क्षति होय तो ते सुधारीने वांचवा सुज्ञ वांचकोने मारी नम्र प्रार्थना छे. इतिशम् ।। संवत २०१८ संशोधनकार, श्रा. वद २ शुक्रवार गणिवर्य श्री बुद्धिमुनिजीना शिष्यकल्याण भुवन, पालीताणा जयानंद मुनि. creezczaCapezCORPORATESe For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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