Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 6
________________ द्विपृष्ट ||| अर्थः-जेनी सेना घोडाओना पगोथी उडेली रजवडे, तथा हाथीओना झरता मदजलवडे महासागरनो पण ( अनुक्रमे ) वि- / / / सान्वय चरित्रं नाश अने उत्पत्ति करतीथकी शोभे छे. // 12 // भाषांतर राज्यश्रीभाग्यसारं तं दृशैव भृशमीदृशम् / दोनयन्ती प्रिया तस्य वेश्यास्ति गुणमञ्जरी // 13 // .. ___ अन्वयः-राज्य श्री भाग्य सारं ईदृशं तं दृशा एव भृशं दीनयंती गुणमंजरी वेश्या तस्य प्रिया अस्ति. // 13 // अर्थः-राज्यलक्ष्मीना भाग्यथी उत्तम एवा पण ते राजाने, फक्त चक्षुना कटाक्षथीज अत्यंत घायल करती, एवी गुणमंजरीनामनी वेश्या तेने प्रिय छे. // 13 // यां विधाय विधिः पाणी क्षालयामास वारिधी / तन्मलं तत्र जानामि नानामणिगणच्छलात् // 14 // ___ अन्वयः-यां विधाय विधिः वारिधौ पाणी क्षालयामास, तत्र नाना मणि गण च्छलात् तन्मलं, जानामि. // 14 // अर्थः-जेणीने बनावीने ब्रह्माए महासागरमा पोताना हाथ धोया छे, अने ते महासागरमा विविध प्रकारना मणिओना समूहना मिषथी तेनो मेल पडेलो छे, एम हुं जाणुं छु. // 14 // ईहन्ते हन्त यत्कान्तिविलोकस्मितविस्मयाः / अपि दिक्पतयः सर्वे पर्वतीभावमात्मनि // 15 // अन्वयः-हंत यत्कांति विलोक स्मित विस्मयाः सर्वे दिक् पतयः अपि आत्मनि पर्वतीभावं इहते. // 15 // अर्थः-अहो! जेनी कांतिने जोवाथी आश्चर्य पामेला सघळा दिक्पालो पण पोतानेविषे पर्वतपणाने (निश्चलपणाने) इच्छे छे. P.P.AC.Gurramasur M.S. Jun Gun Anak Trust

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