Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 35
________________ सान्वय भाषांतर *e // 34 // द्विपृष्ट || बनेलो ते रणसंग्राम यमराजने पण भयानक थइ पड्यो. // 13 // चरित्रं प्रकम्पितासयो हस्ता मौलयः सिंहनादिनः / अमर्षिणां द्विषत्खड्गोरिक्षप्ताःखेऽत्रासयन्सुरान् // 14 // ___अन्वयः-द्विषत् खड्ग उत्क्षिप्ताः अमर्पिणां प्रकंपित असयः हस्ताः, सिंह नादिनः मौलयः खे सुरान् अत्रासयन्. // 14 // // 34 // अर्थः-शत्रुओना खड्गोवडे उंचे उडेला शूरवीरोना, कंपती तलवारोवाळा हाथ, तथा सिंहनाद करनारां मस्तको आकाशमां रल हेला देवोने पण त्रास पमाडवा लाग्या. // 14 // युध्यमानमहावीरः क्षीणवीरगणः क्षणम् / व्यक्तोऽजनि रणः कामं कालकान्तादृगुत्सवः // 15 // ___ अन्वयः-युध्यमान महावीरः, क्षीण वीर गणः, काल कांता दृग उत्सवः, क्षणं कामं व्यक्तः रणः अजनि. // 15 // अर्धः-युद्ध करता छ महान् सुभटो जेमां, नाश पाम्या छे वीरोना समूहो जेमां, तथा यमनी स्त्रीनी (चंडिकानी) आंखोने आनंद आपनारो, क्षणवारसुधी सारीरीते (जोरथी) प्रगटपणे संग्राम थयो. // 15 // क्षीणास्त्रो बाहुमेव स्वमस्त्रीकृत्य द्विषत्कृतम् / चक्रे कश्चन पीठाब्जमागताया जयश्रियः // 16 // ____ अन्वयः-क्षीण अखः कश्चन स्वं बाहुं एव अस्वीकृत्य ओगतायाः जयश्रियः द्विपत् कृतं पीठ अब्ज चक्रे. // 16 // अर्थः-खूटी गयेलां शस्त्रोवाळा कोइक सुभटे पोताना हाथनेज शस्त्ररूप करीने, आवेली जयलक्ष्मीने (बेसवामाटे) शत्रुए आपे|| ली पीठनेज कमलरूप करी. // 16 // * ARRISHRA MARRESERVEhEOS PPA G MS Jun Bun Arda Trust

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