Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं // 32 // CREARRORRECTE अन्वयः-अत्र इष्टः, चिर इप्सितः, परिरब्धं आगच्छन् मृत्युः मा मा परांमुखः भूत, इति के अपि कंचुकान् न अगृह्णन्. || सान्वय अर्थः-अहीं व्हालुं तथा घणा काळथी इच्छेलु, भेटवाने आवतुं मरण पार्छ न बळी जाय तो ठीक, एम विचारीने केटलाक सु | भाषांतर भटोए तो बख्तरो पण पेहेर्या नही. // 7 // ततः पारापतयूतकारा इव घनत्वराः / उभयेऽप्यमिलन्वीरा वपुर्नीरागचेतसः // 8 // // 32 // अन्वयः-ततः पारापत द्यूतकाराः इव घन त्वराः उभये अपि वीराः, वपुः नीराग चेतसः अमिलन्. // 8 // अर्थः-पछी पारेवां अने जुगारीओनीपेठे अति उतावळथी बन्ने सैन्योना सुभटो हृदयथी पण शरीरनी दरकार राख्याविना | (सामसामा) आवी मळ्या. // 8 // असयोऽन्तर्वसद्भर्तृप्रतापज्वलिता इव / परस्पराभिपातेन स्फुलिङ्गान्मुमुचुर्मुहुः // 9 // ___ अन्वयः-अंतः वसत् भर्तृ प्रताप ज्वलिताः इव, असयः परस्पर अभिपातेन मुहुः स्फुलिंगान् मुमुचुः // 9 // अर्थः-हृदयमां वसता स्वामिना प्रतापथी जाणे सळगी उठी होय नही! तेम तलवारो परस्पर अथडावाथी वारंवार तणखाओने झरवा लागी. // 9 // द्विषत्तेजोऽग्निमेघेषु गजेषु मदवर्षिषु / खद्योतकल्पैरद्योति स्फुलिङ्गैर्दन्तघातजैः // 10 // ___ अन्वयः-द्विषत् तेजः अग्नि मेघेषु गजेषु मद वर्षिषु खद्योत कल्पैः दंत घात जैः स्फुलिंगः अयोति. // 10 // PAHADRAGANAGAR PPA Jun Gun Arda Trust

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