Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 47
________________ सान्वय चरित्रं भाषांतर // 46 // द्विपृष्ट र अर्थः-ते तारकर्नु चक्र, अने राजाओनो समूह, हवे हुं शुं करूं ? एम विचारता विष्णुना हाथमां अने पगमां आवी पड्यां, ए आश्चर्य छे ! // 53 // भरतार्धजयारम्भससंरम्भहृदो हरेः / चक्रमेवाभवजेयदेशमागोंपदेशकम् // 54 // // 46 // अन्वयः-भरत अर्थ जय आरंभ ससंभ हृदः हरेः, चक्रं एव जेय देश माग उपदेश अभवत् // 54 // अर्थः-अर्थ भरतना विजयना आरंभनी उत्सुकतावाळु छे हृदय जेजें, एवा ते विष्णुने ते चक्रज जीतवाना देशोनो मार्ग देखाडनारुं थयु.॥५४॥ दक्षिणं भरताधं स सार्धं सर्वैर्धराधवैः / तयैव यात्रया जैत्रः साधयामास माधवः // 55 // / अन्वयः-जैत्रः सः माधवः तया एव यात्रया सर्वैः धरा धवैः सार्धे दक्षिणं भरत अर्ध साधयामास. // 55 // अर्थः-विजय पामेला ते विष्णुए तेज प्रयाणथी सर्व राजाओनी साथे दक्षिण भरतार्धने जीती लीधो. // 55 // जनवन्मागधाधीशं वरदामेश्वरं च सः। प्रभासप्रभुमप्येतान्देवान्सेवागिरोऽकरोत् // 56 // अन्वयः-च सः मागध अधीशं, च वरदाम ईश्वरं, प्रभास प्रभुं अपि, एतान् देवान् जनवत् सेवा गिरः अकरोत्. // 56 // अर्थः-पछी तेणे मागधतीर्थना स्वामीने, तथा वरदामतीर्थना स्वामीने, अने प्रभासतीर्थना स्वामीने, एम ते देवोने पण माण| सनीपेठे सेवानां वचनो बोलनारा कर्या, (अर्थात् तेओने पोताना सेवको कर्या.) // 56 // ALEGACADRAGARHGAR

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