Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ द्विपृष्ट सान्वय A चरित्रं भाषांतर 147|| // 47 // आगमन्मगधान्यात्राविनिवृत्तोऽच्युतस्ततः / तत्र व्यलोकयत्कोटिनरोत्पाट्यां महाशिलाम् // 57 // अन्वयः-ततः यात्रा विनिवृत्तः अच्युतः मगधान् आगमत्, तत्र कोटि नर उत्पाट्यां महाशिलां व्यलोकयत् / / 57 // अर्थः-पछी ते प्रयाणयात्राथी पाछा फरेला विष्णु मगधदेशमां आव्या, अने त्यां तेमणे क्रोड माणसो उपाडे एवी ( एक) म्होटी शीला जोइ. // 57 // दूरावलोककुतुको नरः करमिवाच्युतः / लीलयोत्पाटयामास तां ललाटतटावधि // 58 // अन्वयः-दर अवलोक कुतुकी नरः करं इव, अच्युतः, तां ललाट तट अवधि लीलया उत्पाटयामास. // 58 // अर्थः-दूर जोवानी इच्छावाळो मनुष्य जेम (पोतानो)हाथ ललाटने अडाडे छे, तेम ते विष्णुए ते शीलाने छेक पोताना ललाटसुधी क्रीडामात्रमांज उपाडी. // 58 // स्थापयित्वा यथास्थानं तामथाङ्गरथाङ्गभृत् / उत्तोरणपुरागारद्वारिका द्वारिकां ययो // 59 // ___अन्वयः-अथ अंग तां यथास्थानं स्थापयित्वा रथांगभृत् उत्तोरण पुर आगार द्वारिका द्वारिका ययौ. // 59 // अर्थः-पछी आनंदथी ते शिलाने तेनां योग्य स्थानके पाछी मूकीने ते विष्णु नगरनां घरोना दरवाजाओपर ज्यां तोरणो लट| कावेलां छे, एवी द्वारिकानगरीमां गया. // 59 // 18 हरिः सिंहासनेऽध्यास्य जनकेनाग्रजेन च / सर्वैरुवीधवेश्वार्थचक्रित्वे सोऽभ्यषिच्यत // 60 // NDERLOROSGUST P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50