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________________ // श्रीजिनाय नमः // मान्वयं गूर्जरभापांतरसहितं च) // श्रीपृष्टवासुदेव चरित्रं // (मूलकर्ता श्रीवर्धमानसूरिः) अन्वय सहित भाषांतर करनार तथा छपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज. (आ ग्रंथना अन्वय तथा भाषांतरना प्रसिद्ध कर्ताए सर्व हक स्वाधिन राख्या छे) / विक्रम संवत् 1984 किमत रु. 1-8-0 सने 1929 PP. Ac Gunnarsson MS Jun Gun Aaradha Trust
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्रं // श्रीजिनाय नमः // (श्रीचारित्रविजयगुरुभ्यो नमः) (सान्वयं गूर्जरभाषांतरसहितं घ) भाषांतर // 1 // // अथ श्रीद्विपृष्टवासुदेव चरित्रं प्रारभ्यते // .* ( मूलकर्ता श्रीवर्धमानसूरिः) अन्वय तथा गुजराती भाषांतर कर्ता-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज-जामनगरवाळा इतश्चारितृणस्तोमे वेगं पवनवद्वहन् / नाम्ना पवनवेगोऽभूद् भूपः पृथ्वोपुरे पुरे // 1 // ___ अन्वयः-इतश्च अरि तृण स्तोमे पवनवत् वेगं वहन् पृथ्वीपुरे पुरे पवनवेगः नान्ना भूपः अभूत् // 1 // अर्थ:-हवे शत्रुओरूपी तृणोनो समूह उडाडी देवामां वायुलीपेठे वेगने धारण करनारो पृथ्वीपुरनामना नगरमां पवनवेगनामे ॐ राजा हतो. // 1 // HALAKAALGARCAALA P.P.AC.Gurramanur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषांतर // 2 // द्विपृष्ट 6 अखण्डसुकृतः खण्डमिलायाः परिपालयन् / मित्राणामप्यमित्राणामप्यानन्दमदत्त सः // 2 // चरित्रं ___ अन्वयः-अखंड सुकृतः सः फलायाः खंड परिपालयन् मित्राणां अपि, अमित्राणां अपि आनंदं अदत्त. // 2 // अर्थः-अखंड पुण्यशाली एवो ते राजा, पृथ्वीखंडनु पालन करतोथको मित्रोने तथा शत्रुओने पण आनंद आपवा लाग्यो. // 2 // समये व्रतमादाय मुनेः श्रमणसिंहतः / तप्त्वा तीनं तपः प्राप स विमानमनुत्तरम् // 3 // ___ अन्वयः-समये श्रमणसिंहतः मुनेः व्रतं आदाय, तीनं तपः तप्त्वा सः अनुत्तरं विमानं प्राप. // 3 // अर्थः-समय आव्ये श्रमणसिंह नामना मुनिपासे चारित्र लेइने, तथा आकरो तप तपीने ते अनुत्तरविमानमा गयो. // 3 // इतश्च निश्चलश्रीकं जम्बूद्वीपविभूषणे / दक्षिणे भरतार्थेऽस्मिन्नस्ति विन्ध्यपुरं पुरम् // 4 // __ अन्वयः-इतश्च जंबीद्वीप विभूषणे अस्मिन् दक्षिणे भरतार्थे निश्चल श्रीकं विंध्यपुरं पुरं अस्ति. // 4 // अर्थः-हवे जंबूद्वीपना आभूषणसरखा आ दक्षिण भरतार्धमा निश्चल लक्ष्मीवाळु विंध्यपुरनामनगर छे. // 4 // अवन्ध्यशक्तिस्तत्राभूद्विन्ध्यशक्तिरिति प्रभुः / चापं यस्मिन्विशद्विश्वजयश्रीद्वारतां दधौ // 5 // - अन्वयः-तत्र अवंध्य शक्तिः विंध्यशक्तिः इति प्रभुः अभूत. यस्मिन् विशत् जय श्री द्वारतां चापं दधौ. // 5 // अर्थः-त्यां सफल शक्तिवाळो विध्यशक्तिनामे राजा हतो, के जेनुं धनुष प्रवेश करती विजयलक्ष्मीना दरवाजापणाने धारण %ANASSCRTA Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AL Gunranasur M.S.
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________________ सान्वय || भाषांतर // 3 // करतुं हतुं. // 5 // | गम्भीरनीरभ्रमतो यत्प्रतापभरातुराः / उपेत्य यत्कृपाणान्तर्नृपाणां ततयोऽपतन् // 6 // ___ अन्वयः-यत्प्रताप भर आतुराः नृपाणां ततपः, यत् कृपाणांतः गंभीर नीर भ्रमतः उपेत्य अपतन्. // 6 // अर्थः-जेना प्रतापना समूहथी पीडित थयेली राजाओनी श्रेणिओ, जेनी तलवारनी अंदर जलनी भ्रांतिथी आवीने पडती हती. रणनश्यदरिश्रेणित्वराभरतिरस्कृतैः / व्यराजि वाजिभिर्यस्य ह्रियेव विनमन्मुखैः // 7 // __ अन्वयः-रण नश्यत् अरिश्रेणि त्वरा भर तिरस्कृतैः, हिया इव विनमत् मुखैः यस्य वाजिभिः व्यराजि. // 7 // अर्थः-रणसंग्राममांथी नाशी जता शत्रुओना वेगना समूहथी तिरस्कार पामेला, अने तेथी जाणे लज्जावडे नमी जता मखोबाळा जेना घोडाओ शोभता हता. // 7 // अमुं कदाचिदास्थानिस्थितं वेत्रिनिवेदितः / समुपेत्य चरः कश्चिन्नरनाथमजिज्ञपत् // 8 // अन्वयः-कदाचित् आस्थानी स्थितं अमुं नरनाथं वेत्रि निवेदितः कश्चित् चरः समुपेत्य अजिज्ञपत्. // 8 // अर्थ:-फोइक दिवसे सभामां बेठेला ते राजाने छडीदारे निवेदन करेलो कोइक दत पासे आवीने कडेवा लाग्यो के टा इहैव भरतार्थेऽस्ति नाथ जानासि विश्रुतम् / जातं भूपुण्यपाकेन साकेतमिति पत्तनम् // 9 // PERMAHARA Jun Sun Aaradhak Trust PP.AC.Gunvamaaur M.S.
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्रं भाषांतर // 4 // SARSUSAGARA - अन्वयः-(हे) नाथ! जानासि, इह एव भरतार्थ भू पुण्य पाकेन जातं साकेतं इति विश्रुतं पत्तनं अस्ति. // 9 // . अर्थः-हे स्वामी !.आप जाणो छोके, आज भरतार्धमां, जाणे पृथ्वीना पुण्यना उदयथी उत्पन्न थयेलं, साकेतनामनुं प्रख्यात नगर छे. // 9 // तत्रास्ति राजा शौर्यश्रीकेलिजङ्गमपर्वतः। पर्वतो नाम संग्रामयशःप्रसरनिर्झरः // 10 // अन्वयः-तत्र संग्राम यशः प्रसर निर्झरः, शौर्य श्री केलि जंगम पर्वतः पर्वतः नाम राजा अस्ति. // 10 // अर्थः-ते नगरमां संग्राममां मळेला यशना विस्ताररूपी झरणाओवाळो, अने शौर्य लक्ष्मीने क्रीडा करवाना जंगम पर्वत सरखो पर्वत नामे राजा छे. // 10 // यममृत्युद्वयीधारः कालो यत्खङ्गतां दध / स्वेच्छया हन्त हन्त्येव हन्तव्यानहतोदयः // 11 // ___ अन्वय-पम मृत्यु द्वनी धार' काल. यत् खड्गतां दधत्, अहत उदयः हंत हंतव्यान् स्वेच्छया हंति एव. // 11 // अर्थ.-यम अने मृत्युरूपी बेधारवाळो क.ल, जे राजाना खड्गपणाने धारण करीने, अटकाव रहित उदयवाळो थयो थको हणवालायक शत्रुओने स्वेच्छापूर्वक हणेज छे. // 11 // रजोभिरश्वपादोत्थैर्गजोत्थैश्च मदाम्बुभिः / यत्सेना भाति संहारसृष्टिकृद्वारिधेरपि // 12 // अन्वयः यत् सेना अश्व पाद उत्थैः रजोभिः, च गजोत्यैः मद अंबुभिः वारिधेः अपि संहार सृष्टिकृत् भाति. // 12 // SOSORUSAUGO BOSS P.P.AC.Gurramasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ द्विपृष्ट ||| अर्थः-जेनी सेना घोडाओना पगोथी उडेली रजवडे, तथा हाथीओना झरता मदजलवडे महासागरनो पण ( अनुक्रमे ) वि- / / / सान्वय चरित्रं नाश अने उत्पत्ति करतीथकी शोभे छे. // 12 // भाषांतर राज्यश्रीभाग्यसारं तं दृशैव भृशमीदृशम् / दोनयन्ती प्रिया तस्य वेश्यास्ति गुणमञ्जरी // 13 // .. ___ अन्वयः-राज्य श्री भाग्य सारं ईदृशं तं दृशा एव भृशं दीनयंती गुणमंजरी वेश्या तस्य प्रिया अस्ति. // 13 // अर्थः-राज्यलक्ष्मीना भाग्यथी उत्तम एवा पण ते राजाने, फक्त चक्षुना कटाक्षथीज अत्यंत घायल करती, एवी गुणमंजरीनामनी वेश्या तेने प्रिय छे. // 13 // यां विधाय विधिः पाणी क्षालयामास वारिधी / तन्मलं तत्र जानामि नानामणिगणच्छलात् // 14 // ___ अन्वयः-यां विधाय विधिः वारिधौ पाणी क्षालयामास, तत्र नाना मणि गण च्छलात् तन्मलं, जानामि. // 14 // अर्थः-जेणीने बनावीने ब्रह्माए महासागरमा पोताना हाथ धोया छे, अने ते महासागरमा विविध प्रकारना मणिओना समूहना मिषथी तेनो मेल पडेलो छे, एम हुं जाणुं छु. // 14 // ईहन्ते हन्त यत्कान्तिविलोकस्मितविस्मयाः / अपि दिक्पतयः सर्वे पर्वतीभावमात्मनि // 15 // अन्वयः-हंत यत्कांति विलोक स्मित विस्मयाः सर्वे दिक् पतयः अपि आत्मनि पर्वतीभावं इहते. // 15 // अर्थः-अहो! जेनी कांतिने जोवाथी आश्चर्य पामेला सघळा दिक्पालो पण पोतानेविषे पर्वतपणाने (निश्चलपणाने) इच्छे छे. P.P.AC.Gurramasur M.S. Jun Gun Anak Trust
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________________ द्विपृष्ट का निर्दम्भतत्परीरम्भसंभवत्पुलका मुदम् / तदलंकारसाराधिष्टानदेव्योऽपि बिभ्रति // 16 // सान्वय चरित्रं ___ अन्वयः-निर्दभ तत् परीरंभ संभवत् पुलकाः, तत् अलंकार सार अधिष्ठान देव्यः अपि मुदं विभ्रति. // 16 // भाषांतर अर्थ:-कपटरहित एवां तेणीना आलिंगनथी रोमांचित थयेली, तेणीना मनोहर आभूषणोनी अधिष्टायिका देवीओ पण आनंद पामे छे. // 16 // तयैव कान्तया देव त्वत्तः पर्वतकोऽधिकः / श्रिया सैन्येन रूपायैर्गुणैस्तु त्वं ततोऽधिकः // 17 // अन्वयः-(हे) देव ! तपा कांतया एव पर्वतकः त्वत्तः अधिकः, तु श्रिया सैन्येन रूप आयैः गुणैः त्वं ततः अधिकः // 17 // || अर्थ. हे स्वामी! ते स्त्रीथीज ते पर्वतराजा तमाराथी चडीयातो छे, परंतु लक्ष्मी, सैन्य, अने रूप आदिक गुगोवडे तो तम तेनाथी चडीयाता छो. // 17 // तयातीव भवान्भाति भवतातीव भाति सा / पृथग्भावेन भवतोर्न श्रीरिन्दुनिशोरिव // 18 // __अन्वयः-तया भवान् अतीव भाति, सा भवता अतीव भाति, इन्दु निशोः इव भवतोः पृथग्भावेन श्रोः न. // 18 // अर्थ. तेणीथी तमो अत्यंत शोभो एम छो, अने ते तमाराथी अत्यंत शोभे एम छे, परंतु चंद्र अने रात्रिनीपेठे तमो बन्नेवच्चेनी (ज्यांसुधी) जूदाइ छे, (त्यांसुधो) शोभा थाय तेम नथी. // 18 // नरेन्द्रवृन्दवन्द्योऽसि स्वामिन् शक्त्या कयापि तत् / सर्पादिव मणिं तस्मात्तां ग्रहीतुं भवोद्यतः // 19 // ||2|| CAREER -9640S P.P.AC.Gunratnasur M.S. un G A T
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________________ द्विपृष्ट - चरित्र // 7 // RECRUAE अन्वयः-(हे) स्वामिन् ! नरेंद्र वृंद वंद्यः असि, तत् कया :अपि शक्त्या, सात् मणि इव, तस्मात् तां ग्रहीतुं उद्यतः भव? | सान्वय अर्थः-हे स्वामी! आप तो राजाओना समूहोने नमवालायक छो, माटे कोइ पण शक्तिथी सर्पपासेथी मणिनीपेठे तेनीपासेथी | भाषांतर तेणीने लेवाने प्रयत्नवान थाओ? // 19 // इति श्रुत्वाथ हृष्टेन तं सन्मान्य महीभुजा / दौत्याय प्रहितो मन्त्री सभान्तः पर्वतं जगौ // 20 // // 7 // ___ अन्वयः-अथ इति श्रुत्वा हृऐन महीभुजा तं सन्मान्य दौत्याय प्रहितः मंत्री सभांतः पर्वतं जगौ. // 20 // अर्थः-पछी एम सांभळीने खुशी थयेला ते विध्यशक्तिराजाए तेनो सत्कार करीने, ते (स्त्री मेळववानी) विष्टिमाटे मोकलेलो मंत्री सभानी अंदर बेठेला ते पर्वतराजाने कहेवा लाग्यो के, // 20 // कालकूटममित्राणां मित्राणां तु सुधारसः / विन्ध्यशक्तिब्रवीति त्वां मन्मुखेन सखा तव // 21 // ___ अन्वयः-अमित्राणां कालकूटं, मित्राणां तु सुधा रसः, तव सखा विध्यशक्तिः मन्मुखेन त्वां ब्रवीति. // 21 // अर्थः-शत्रुओने झेरसमान, तथा मित्रोने अमृतरससमान तमारा मित्र विध्यशक्तिराजा मारां मुखथी तमोने कहेवरावे छे के, यस्ते वैरी स मे वैरी यः सुहृन्मे स ते सुहृत् / या ते श्रोः सा ममापि श्रीर्या मे भूः सा तवापि भूः अन्वयः-यः ते वैरी, स मे वैरी, यः मे सुहृत्, स ते सुहृत्, या ते श्रीः, सा मम अपि श्रीः, या मे भूः, सा तव अपि भूः | अर्थ:-जे तमारो शत्र, ते मारो पण शत्रु, जे मारो मित्र, ते तमारो पण मित्र, जे तमारी लक्ष्मी, ते मारी पण लक्ष्मी, अने || PPA G MS Jun Gun Andris
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं // 8 // N550% / जे मारी भूमि, ते तमारी पण भूमि छे. // 22 // सान्वय एवं सौहार्दसंबन्धभासमानकभावयोः / नैव श्रियि क्रियायां वा विभेदो भृशमावयोः // 23 // भाषांतर अन्वयः-एवं सौहार्द संबंध भासमान एक भावयोः आवयोः श्रियि क्रियायां वा भृशं विभेदः न एव. // 23 // अर्थः-एरीते मित्राइना संबंधथी शोभती औक्यतावाळा आपण बन्ने वच्चे लक्ष्मी अथवा कार्यना संबंधमां पण विलकुल जू-18| // 8 // दाइ नथीज. // 23 // भेदं यदि न देहेऽपि धत्से तच्छेमुषीप्रिय / मह्यं प्रेषय वेगेन गणिकां गुणमञ्जरीम् // 24 // ___ अन्वयः-(हे) तत् शेमुपी प्रिय ! यदि देहे अपि भेदं न धत्से, मह्यं वेगेन गुणमंजरीं गणिकां प्रेपय ? // 24 // अर्थ:-तेवी रीतनीज बुद्धिथी प्रिय एवा हे पर्वतमित्र! जो (आपण बन्नेनां) शरीरमां पण तमो जूदाइ न राखता हो तो, मने | (जरा पण) विलंबविना ते गुणमंजरी वेश्याने मोकली आपो ? // 24 // इत्यस्य वचसा दीप्तः पवनेनेव पावकः। ततान पर्वतस्तीवामक्षर ___ अन्वयः-इति अस्य वचसा, पवनेन पावकः इव, पर्वतः स्फुलिंगवत् तीवां अक्षर आलिं ततान. // 25 // अर्थः-एवीरीतनां तेनां वचनथी वायुथी जेम अग्नि, तेम ते पर्वतराजा तणखाओसरखी तीन अक्षरोनी श्रेणि विस्तारवा लाग्यो. D] साधु सख्यं चिरादद्य दर्शितं विन्ध्यशक्तिना। याचिता जीवितव्यं मे यदसौ गुणमञ्जरी // 26 // BHAGRUTHEATRA- DAG
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं . सान्वय भाषांतर // 9 // // 9 // GANESHWECAUSE अन्ववः-अद्य विध्यशक्तिना चिरात् सख्यं साधु दर्शितं, यत मे जीवितव्यं असौ गुणमंजरी याचिता. // 26 // अर्थः-आजे विंध्यशक्तिए घणे काळे मित्राइ तो सारी देखाडी ! केमके मारां जीवनसरखी आ गुणमंजरीनी तेणे मागणी करी . खमुखेनैव यद्येतदणिष्यत्स मे पुरः / अदास्यमुत्तरं तस्य स्वकृपाणमुखेन तत् // 27 // अन्वयः-यदि सः मे पुरः स्व मुखेन एच एतत् अभणिष्यत्, तत् तस्य स्व कृपाण मुखेन उत्तरं अदास्थ. // 27 // अर्थः-कदाच तेणे मारीपासे पाताना मुखथीज आ हकीकत कही होत, तो तेने मारी तलवारनी अणीथीज उत्तर आपत. क्रोधाग्निर्वर्धमानो मे धक्ष्यति त्वामपि ध्रुवम् / तत्तूर्णं गच्छ मा यच्छ दूतदारणदुयेशः // 28 // अन्वयः-मे वर्धमानः क्रोध अग्निः खां अपि ध्रुवं धक्ष्यति, तत् तूर्णं गच्छ! दूत दारण दुर्यशः मा यच्छ ? // 28 // अर्थः-मारो वृद्धि पामतो क्रोधरूपी अग्नि तने पण खरेखर बाळी नाखशे, माटे तुं तुरत चाल्यो जा? अने दुतने मारीनाखवानो अपजश मने नही आप? // 28 // इति कोपिनि भूपेऽसौ वण्ठैः कण्ठे धृतः पुमान् / अपमानात्समधिकं गत्वाख्यद्विन्ध्यशक्तये // 29 // अन्वयः-इति भूपे कोपिनि वैठैः कंठे धृतः असौ पुमान्, गत्वा अपमानात् समधिकं विंध्यशक्तये आख्यत् // 29 // अर्थः-एरीते ते राजा कोपा मान थवाथी लुच्चा नोकरोए गर्छ पकडीने (कहाडी मेलेला) ते दूते (त्यांथी) निकळीने ते अपमानथी पण अधिक वर्णन ते विध्यशक्तिराजाने कही संभळाव्यं. // 29 // ESO COSAS P.P.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषांतर // 10 // द्विपृष्ट | तदैव दैवमप्याशु दुर्बलं गणयन्बलात् / चक्रे प्रयाणं राजासौ रजसावरितांम्बरम् // 30 // __ अन्वयः-बलात् दैवं अपि आशु दुर्बलं गणयन् असौ राजा तदा एव रजसा आवरित अंवरं प्रयाणं चक्रे. // 30 // अर्थः-पछी बलथी दैवने पण तुरत दुर्बल गणतो एवो ते राजा ते समये धूलिथी आकाशने आच्छादित करनारुं (त्यांथी) प्रयाण करवा लाग्यो. // 30 // पर्वतोऽपि चमूचारचूर्णीभृताध्वपर्वतः / प्रतिप्रयाणमकरोडैर्याब्धिमकरो रयात् // 31 // अन्वयः-चमू चार चूर्णीभूत अध्व पर्वतः, धैर्य अब्धि मकरः पर्वतः अपि रयात् प्रतिप्रयाणं अकरोत् // 31 // अर्थ:-पछी सैन्यना प्रयाणथी चूरेचूरा थइ गया छे पर्वतो जेनाथी, अने धैर्परूपी महासागरमा मगरसरखा ते पर्वतराजाए पण वेगथी तेनी सामे प्रयाण कर्यु. // 31 // चलद्भिः केतुचीराप्रैस्तर्जयन्तौ मिथोऽप्यथ / यो मुत्सङ्गितोत्साहौ तौ सैन्याब्धी समीयतुः // 32 // अन्वयः-अथ चलद्भिः केतु चीर अप्रैः मिथः अपि तर्जयंती, उत्संगित उत्साहौ तौ सैन्य अब्धी योध्धुं समीयतुः // 32 // अर्थः-पछी उडती धजाओना वस्त्रोना अग्र भागोथी परस्पर तिरस्कार करता, अने अति उत्साहमां आवेला, ते बन्ने सैन्योरूपी समुद्रो युद्ध माटे आवी पहोंच्यां // 32 // USSAGESSAALOECORE
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्रं || भाषांतर // 11 // // 11 // %A4%AALCRICRORGGIE%99 अजातजयभङ्गानि क्षणं क्षोणिपयोस्तयोः / अश्वेभरथपत्तीनां द्वन्द्वयुद्धानि जज्ञिरे // 33 // * अन्वयः-क्षणं तयोः क्षोणि पतयोः अजात जय भंगानि, अश्व इभ रथ पत्तीनां द्वंद्व युद्धानि जज्ञिरे. // 33 // अर्थः-पछी क्षण वारसुधी ते वन्ने राजाओनां हारजीतविनानां घोडा, हाथी, रथ, तथा पायदळनां द्वंद्वयुद्धो थयां. // 33 // चिरेप्सितायां समरश्रियि संजातसंगतौ। अदर्शि क्षतजं वीरश्चिरसंचितरागवत // 34 // अन्वयः-चिर इप्सितायां समर थियि संजात संगतौ वीरैः चिर संचित रागवत् क्षतजं अदर्शि. // 34 // अर्थः-घणा काळथी इच्छेली संग्रामलक्ष्मीनो समागम थतां शूरवीरोए घणा काळथी एकठा करेला रागसरखं रुधिर देखाडी आप्यु. शरीररिवाराणामभ्युत्पत्य मुहुर्मुहुः / प्रहाराणां गणः काममापतन्कवलीकृतः // 35 // __ अन्वयः–वीर वाराणां शरीरैः मुहुः मुहुः अभ्युत्पत्य प्रहाराणां आपतन् गणः कामं कवलीकृतः / / 35 / / अर्थः-शूरवीरोना समूहोना शरीरोए वारंवार सामे उछळीने प्रहारोना आवी पडता समूहने खुशीथी कोळीआरूप करी लीधो, अर्थात् झीलीने सहन को. // 35 // अन्येष्वपि द्विषद्वारप्रहारान्परिपातिनः / स्वस्मिन्नेव भटा ऐच्छल्लुब्धा इव धनोच्चयान् // 36 // अन्वयः-लुब्धाः धनोच्चयान् इव, अन्येषु परिपातिनः द्विपत् वार प्रहारान् अपि भटाः स्वस्मिन् एव ऐच्छन्, // 36 // अर्थः-लोभी माणसो जेम धनना समूहोने इच्छे, तेम वीजाओपर पडता शत्रुसमूहना प्रहारोने पण शूरवीरो पोतापर पडे तो P.P.AC.Gunramanun M.S. Jun Gun And Trust
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्र भाषांतर // 12 // // 12 // Rॐॐॐॐ 4 ठीक, एम इच्छवा लाग्या. / / 36 / / .. अपमृत्यापमृत्याशु प्रधावद्भिर्विरोधिषु / वीरैर्जयश्रियोऽपूरि दोलाकेलिकुतूहलम् // 37 // .. अन्वयः-अपसत्य अपमृत्य आशु विरोधिपु प्रधावद्भिः वीरैः जय श्रियः दोला केलि कुतूहलं अपूरि. // 37 // अर्थः-पाछा हठीने हठीने एकदम शत्रुओपर त्रुटी पडता शूरवीरो जयलक्ष्मीनी हीडोलापर झूलवानी क्रीडाना कुतुहलने संपूर्ण करवा लाग्या. // 37 // तुल्य एव प्रबलयोरित्यभूद्दलयोर्जयः / बाह्वोर्बाहुधनस्येव मिथः संधृत्य कर्षतोः 38 // ___ अन्वयः-बाहु धनस्य मिथः संधृत्य कर्पतोः वाहोः इव, प्रबलयोः बलयोः इति तुल्यः एव जयः अभूत. // 38 // अर्थः–बाहुबलने धारण करनारा योद्धाना परस्पर पकडीने खेंचाता बन्ने हाथनीपेठे ते वन्ने बलवान सैन्योनो एरीते सरखोज विजय थयो. // 38 // गर्वात्सर्वाभिसारेण प्रतेने पर्वतस्ततः / उत्तिष्ठमानो मानोमिमुक्तमेवारिवारिधिम् // 39 // .. अन्वयः-ततः गर्वात् सर्व अभिसारेण उत्तिष्ठमानः पर्वतः अरि वारिधि मान ऊर्मि मुक्तं एव प्रतेने. // 39 // अर्थः-पछी गर्वथी सर्व प्रकारना धसाराथी उठेलो पर्वत राजाए शत्रुओरूपी महासागरने अभिमानरूपी मोजांओथी रहित कयों. रेजेऽस्त्रैः खण्डशः कुर्वन्वैरिवीरान्पशूनिव / तेजोऽग्निं ज्वालयन्कालः स्वयंपाकव्रतीव सः // 40 // P.P.AC.Gunvatmasur.M.S. Alun Gun Aaradhia Trust
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________________ सान्वय भाषांतर चरित्रं // 13 // // 13 // अन्वयः-तेजः अग्नि ज्वालयन् स्वयंपाक व्रती कालः इव, सः अवैः पशून इवं वैरि वीरान् खंडशः कुर्बग्रेजे. // 41 // अर्थ:-तेजरूपी अग्निने बालता स्वयंपाक व्रतवाळा कालनीपेठे ते पर्वतराजा शस्त्रोवडे पशुओनीपेठे शत्रु ओना सुभटोना टुकडेal टुकडा करतोथको शोभवा लाग्यो. // 41 // कुर्वन्संकीर्णकीनाशवदनं कदनं द्विषाम् / अधावत ततः क्रुद्धो युद्धोव्यां विन्ध्यराडपि // 42 // अन्वयः-ततः संकीर्ण कीनाश वदनं द्विपां कदनं कुर्वन् क्रुद्धः विध्यराट् अपि युद्ध उा अधावत. // 42 // अर्थः-पछी जेथी यमराजना मुखमां पण संकडामण थाय, एवो शत्रुओनो संहार करतोथको क्रोध पामेलो विध्यराजा पण युद्धभूमिमां दोडी आव्यो. // 42 // मिथः प्रमथिताशेषबलौ प्रबलदोर्बलौ / तर्जयन्तौ श्रृंवैवैतौ गजन्तावभिजग्मतुः // 43 // ___ अन्वयः-प्रमथित अशेष वलौ, प्रबल दोर्बलौ, भुवा एव मिथः तर्जयतौ एतौ गर्जतौ अभिजग्मतुः // 43 // अर्थः-कचरी नाखेल छे सर्व सैन्य जेओए एवा, प्रचंड भुजवलवाळा, तथा भृकुटिथीज परस्पर एक बोजानो तिरस्कार करनारा, ते बन्ने राजाओ गर्जना करताथका सामसामे आवी गया. // 44 // रथसारथिरथ्यानां मियो मन्थममन्थरम् / प्रथयित्वा स्थितौ पृथ्व्यां पृथू पृथ्वीधरौ यथा // 44 // ___ अन्वयः-यथा पृथू पृथ्वीधरौ, (तथा तौ) मिथः रथ सारथि रथ्यानां अमंथरं मंथं प्रथयिखा पृथ्व्यां स्थितो. // 45 // P.P.ALGunratnasuMS Jun Gun Arda Trust
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________________ सान्वय चरित्रं भाषांतर // 14 // द्विपृष्ट / / अर्थः-पछी वे महान् पर्वतोनीपेठे तेओ बन्ने परस्पर रथ, सारथि तथा घोडाओनो घणो कच्चरघाण वाळीने जमीन पर ! आवीने उभा. // 44 // रथान्तरपरिस्पन्दावमन्दानन्दविक्रमो। युयुधाते क्रुधा तेजस्तेजयन्ती जयाय तौ॥ 45 // // 14 // अन्वयः-रथ अंतर परिस्पंदौ, अमंद आनंद विक्रमौ, ऋषा तेजः तेजयंतौ तौ जयाय युयुधाते. // 45 // अर्थ.-बीजा रथमां बेठेला, तथा अति आनंदयुक्त पराक्रमवाळा, अने क्रोधथी तेजने वधारता एवा तेओ बन्ने विजय माटे || लडवा // 45 // युक्तं पर्वतको विन्ध्यशक्तिना युधि निर्जितः / चित्रं पलायमानोऽपि स जिगाय प्रभञ्जनम् // 46 // अन्वयः-विंध्यशक्तिना युधि पर्वतकः निर्जितः युक्तं, चित्रं पलायमानः अपि सः प्रभंजनं जिगाय. // 46 / / अर्थः-विध्यशक्ति राजाए युद्धमां ते पर्वतने जे जीत्यो, ते युक्तज छे, परंतु आश्चर्यनी विना तो एछे के, (त्यांथी) नाशता एवा तेणे वायुने पण जीती लीधोः // 46 // जगृहेऽथ महाकुम्भिकुम्भकान्तकुचोज्ज्वला / तस्य श्रीरिव सा विन्ध्यशक्तिना गुणमञ्जरी // 47 // -- अन्वयः-अथ महाकुंभि कुंभकांत कुच उज्ज्वला तस्य श्रीः इव सा गुणमंजरी विध्यशक्तिना जगृहे. // 47 / अर्थः-पछी महान् हाथीना कुंभस्थलसरखी मनोहर स्तनोथी शाभिती एवी ते राजानी लक्ष्मीसरखी ते गुण जरीने ते विध्यश UNIA 515 P.P.AC.Gunvatmatur M.S. un Gun Anda Trust
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं सान्वय 6 भाषांतर // 15 / / 5 क्तिराजए ग्रहण करी. // 47 // / सर्वतः पर्वतः सोऽथ गर्वतः प्रच्युतः कृती। भेजे संभवसूरिभ्यो भवसौरभ्यमुग्नतम् // 48 // . अन्वयः-अथ सर्वतः गर्वतः प्रच्युतः सः कृती पर्वतः संभवमूरिभ्यः भव सारभ्यमुक् व्रतं भेजे. // 48 // अर्थः-पछी सर्व प्रकारना गर्वथी रहित थयेला ते कृतार्थ पर्वतराजाए संभवनामना आचार्यपासे संसारजी वासनाने तजनारं द चारित्र ग्रहण कयु.॥४८॥ विन्ध्यशक्तिवधे शक्तिर्भवतान्मे भवान्तरे / ईग्निदानध्यानेन तेने तेनातुलं तपः // 49 // ___ अन्वयः-भवांतरे विध्यशक्ति वधे मे शक्तिः भवतात् ? ईग् निदान ध्यानेन तेन अतुलं तपः तेने. // 49 / / अर्थः-भवांतरमा आ विंध्यशक्तिराजानो वध करवामां मारी शक्ति थाओ? एवी रीतना नियाणायुक्त ध्यानथी ते पर्वतराजा अनुपम तप तपवा लाग्यो. // 49 // एवं तपः स विक्रीय तक्रैः कामगवीमिव / गृहीत्वानशनं मृत्वा प्रप्रेदे प्राणतं दिवम् // 50 // ___ अन्वयः-एवं तत्रैः काम गवीं इव, तपः विक्रीय सः अनशनं गृहीखा, मृखा प्राणतं दिवं प्रपेदे. // 50 // Pil अर्थः-एरीते छाशसाटे कामधेनुनीपेठे तप वेंचीने, ते अनशन लेइ, मृत्यु पामीने प्राणत देवलोकमां गयो. // 50 // 3 विन्ध्यशक्तिरपि भ्राम्यन्भवाञ्जन्मनि कुत्रचित् / जिनलिङ्गधरो मृत्वा कल्पवृन्दारकोऽभवत् // 51 // 28GANESS P.P.AC.Gunramasur M.S. Jun Gun Aaradhak.Trust
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्र भाषांतर __ अन्वयः-विध्यशक्तिः अपि भवान् भ्राम्यन् कुत्रचित जन्मनि जिन लिंगधरः मृखा कल्प वृंदारकः अभवत् // 52 // . अर्थः-पछी ते विध्यशक्ति राजा पण भवोमां भमतोथको, कोइक जन्ममां जैनलिंग (दीक्षा) धारण करीने, मरण पामी देवलो|| कमां देव थयो. // 52 // च्युत्वा च श्रीमतीकुक्षिजन्मा श्रीधरभूपभूः / पुरेऽभूद्विजयपुरे कुमारस्तारकाभिधः // 52 // अन्वयः-च्युत्वा च विजयपुरे पुरे श्रीमती कुक्षि जन्मा श्रीधर भूप भूः तारक अभिधः कुमारः अभूत्. // 53 // // 16 // ॐॐॐॐॐ 3 मनो कुमार थयो. // 53 // स सप्ततिधनुर्मात्रगात्रः पात्रं मषीविषाम् / द्विसप्तत्यब्दलक्षायुरभूदक्षामपौरुषः // 53 // ___ अन्वयः-सः सप्तति धनुर्मात्र गात्रः, मपी त्विषां पात्रं, द्विसप्तति अब्द लक्ष आयुः, अक्षाम पौरुपः अभूत् // 54 // अर्थः-ते सीत्तेर धनुषना शरीरप्रमाणवाळो, मपीसरखी श्याम कांतिवाळो, वहोतेर लाख वर्षांना आयुवाळो, अने अतिशय बळवाळो हतो. // 54 // अन्ते पितुः प्रतापश्रीताडङ्कं चक्रमाप्य सः। प्रत्यर्धचक्री भूचक्रखण्डत्रयमसाधयत् // 54 // ___ अन्वयः-अंते पितुः प्रताप श्री ताडकं चक्रं आप्य सः प्रत्यर्थ चक्री भू चक्र खंड त्रयं असाधयत् // 55 //
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं सान्वय भाषांतर // 17 // // 17 // USARSHANSAR / / अर्थः-छेवटे ( पोताना ) पितानी प्रतापलक्ष्मीना कुंडलसरखं चक्र मेळघीने तेणे प्रतिवासुदेव थइने पृथ्वीपरना त्रण खंडोने जीती लीधा. // 55 // . इतश्चास्ति चतुर्वर्गश्रीनिरर्गलनागरा / मध्येऽब्धि स्वर्गसौभाग्यदारिका द्वारिका पुरी // 56 // अन्वयः-इतश्च मध्ये अब्धि चतुर्वर्ग श्री निरर्मल नागरा, स्वर्ग सौभाग्य दारिका द्वारिकापुरी अस्ति. // 56 // अर्थः-हवे महासागरनी अंदर चारे वर्गोनी लक्ष्माथी भरपूर नागरिकोवाकी, तथा स्वर्गनी शोभानो पण तिस्कार करनारी द्वारिकानामनी नगरी छे. // 56 // यपरैरपराभूता सुराष्ट्रमुखमण्डनम् / पश्चिमाम्भोधिनीरेभनराश्वेरेव वेष्टयते // 57 // अन्वयः-परैः अपराभूता, सुराष्ट्र मुख मंडनं या पश्चिम अंभोधि नीर इभ नर अश्वैः एव वेष्टयते. / / 57 // अर्थः-शत्रुओथी पराभव न पामेली, तथा सौरष्ट्रदेशना मुखने शोभावनारी, एवी जे नगरीने पश्चिम महासागरमां वसनाराज जलचर हाथीओ, मनुष्यो तथा घोडाओ वींटीने रहेला छे. / / 57 // अगोचरचरित्रश्रीब्रह्मविद्वचसामपि / ब्रह्मचारी परस्त्रीषु ब्रह्माभूदिह भूपतिः // 58 // ___अन्वयः-ब्रह्म विद् वचसां अपि अगोचर चरित्र श्रीः, पर स्त्रीपु ब्रह्मचारी ब्रह्मा इह भूपतिः अभूत् // 58 // अर्थः-ब्रह्मने जाणनारा योगीओनां वचनोने पण अगोचर छे आचरणनी लक्ष्मी जेनी, तथा परस्त्रीपते ब्रह्मचर्यने धारण करनारो PPA Gunnan MS Jun Sun Aaradhak Trust
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________________ 6 द्विपृष्ट चरित्रं 2- भाषांतर // 18 // // 18 // 08 SAUCERROCCESSAG || ब्रह्मानामनो ते नगरीमां राजा हतो. // 58 // . तस्याभूतां शुभे कान्ते सुभद्रोमे शुभयुती / धारे इव कृपाणस्य सतीव्रतगुणनिते // 59 // अन्वयः-तस्य शुभे, शुभद्युती, कृपाणस्य धारे इव सतीव्रत गुण श्रिते सुभद्रा उमे कांते अभूतां. // 59 // अर्थः-ते राजाने उत्तम, तथा मनोहर कांतिवाळी तलवारनी धारनीपेठे सतीव्रतरूपी गुणवाळी सुभद्रा अने उमानामनी वे स्वीओ हती ताभ्यां नरेन्दुः कान्ताभ्यां शुशुभे मुमुदे च सः / रजनीश इव ज्योत्स्नारजनीभ्यां कलोज्ज्वलः // अन्वयः-कला उज्ज्वलः सः नर इंदुः, ज्योत्स्ना रजनीभा रजनी ईशः इव, ताभ्यां कांताम्यां शुशुभे च मुमुदे. // 60 // अर्थ:-कलाओथी शोभतो एवो ते राजेंद्र, चांदनी तथा रात्रिवडे जेम चंद्र शोभे, तेम ते बन्ने स्त्रीओथी शोभतो हतो, तथा आनंद पामतो हतो,. // 6 // इतश्चोत्तरतश्च्युत्वा सुभद्रागर्भमासदत् / जीवः पवनवेगस्य शृङ्गासिंहो गुहामिव // 61 // __ अन्वयः-इतश्च शृगात् सिंहः गुहां इव, पवनवेगस्थ जीवः उत्तरतः च्युत्वा सुभद्रा गर्भ आसादत् // 61 // अर्थः-एवामां सिंह जेम शिखरपरथी गुफामां जाय छे, तेम पवनवेगनो जीव उत्तरमाथी चवीने ते सुभद्रा राणीना गर्भमां आव्यो. | द्विपसिंहवृषादित्या इति स्वप्नचतुष्टयम् / सुभद्रासौ तदाद्राक्षीद्रामजन्माभिसूचकम् // 62 // अन्वयः-तदा असौ सुभद्रा राम जन्म अभिमूचकं द्विप सिंह तृप आदित्याः इति स्वम चतुष्टयं अद्राक्षीत. // 62 // PPAS Jun Gun A Trust
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________________ // 19 // / / 19 // द्विपृष्ट / / अर्थः-ते वखते ते सुभद्राए वलभद्रना जन्मने सूचवनारां हाथी, सिंह, वृषभ तथा सूर्यनामना चार स्वमो जोयां. // 62 // | सान्वय चरित्रं सूते स्म समये सूनुमिमिन्दुसमद्युतिम् / शुक्तिर्मुक्ताकणमिव क्षितिभूषणतां गतम् // 63 // भाषांतर __ अन्वयः-शुक्तिः मुक्ता कणं इव, इयं समये इंदु सम धर्ति, क्षिति भूपणतां गतं मनुं सूतेस्म. // 63 // अर्थ-पछी छीप जेम मोतीना दाणाने जन्म आपे, तेम तेगीए योग्य समये चंद्रसरखो कांतिवाला, तथा पृथ्वीने शोभावनारा 8 पुत्रने जन्म आप्यो. // 63 // कारामुक्त्यादिभिर्व्यक्तं द्विषामपि ददन्मुदम् / ब्रह्मा विजय इत्यस्य सुतस्य विदधेऽभिधाम् // 64 // अन्वयः-कारा मुक्ति आदिभिः द्विषां अपि व्यक्तं मुदं ददत ब्रह्मा अस्य सुतस्य विजय इति अभिधां विदधे.॥ 64 / / अर्थः-केदीओने छोडवाआदिकथी शत्रुओने पण प्रगटपणे हर्ष आपनारा ते बह्माराजाए ते पुत्रनुं "विजय" नाम पाडयु. इन्द्रियश्रीभिरात्मेव पृथप्रथितकर्मभिः / धात्रीभिः पञ्चभिर्लाल्यमानोऽयं ववृधे श्रिया // 65 // - अन्वयः-इंद्रिय श्रीभिः आत्मा इव, पृथक् प्रथित कर्मभिः पंचभिः धात्रीभिः लाल्यमानः अयं श्रिया ववृधे.॥६५॥ अर्थः-इंद्रियोनी शोभाथी आत्मानीपेठे, जूदां जूदां कार्यों करनारी पांच धावोवडे लाड लडावातो ते विजय शोभाथी वृद्धि पामवा लाग्यो. // 65 // . || वर्धमानः क्रमादेष स्मितैः कुसुमयन्दिशः / वसन्तदिवसव्यूह इव कस्य न तुष्टये // 66 // P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्रं भाषांतर // 20 // ARRA अन्वयः-क्रमात वर्धमानः एपः स्मितेः दिशः कुसुमयन् वसंत दिवस व्यूहः इव कस्य तुष्टये न?॥६६॥ अर्थः-अनुक्रमे वृद्धि पामतो एवो ते विजयकुमार हास्पथी दिशाओने पुष्पित करतोथको वसंतऋतुना दिवसोना समूहनीपेठे | कोना आनंदमाटे न थयो ? // 66 // अथोदरमुमादेव्याः प्राणतात्पर्वतश्च्युतः / अवाप पुण्यकृन्मुष्टिं चिन्तामणिरिवार्णवात् // 67 // अन्वयः-अथ अर्णवात् चिंतामणिः पुण्यकृत् मुष्टिं इव, प्राणतात् च्युतः पर्वतः उमादेव्याः उदरं अवाप. // 67 // अर्थः-पछी महासागरमांथी निकळेलु चिंतामणि रत्न जेम पुण्यशालीनी मुष्टिने प्राप्त थाय, तेम प्राणतदेवलोकमांथी चवेलो ते पर्वतनो जीव उमादेवीना उदरमा आव्यो. // 67 // करी सिंहो वृषश्चन्द्रो भानुर्वैश्वानरोऽम्बुधिः / इति स्वप्नानुमापश्यदच्युतोत्पत्तिसूचकान // 68 // __ अन्वयः-उमा करी सिंहः वृपः चंद्रः भानुः वैश्वानरः अंबुधिः इति अच्युत उत्पत्ति सूचकान् स्वप्नान् अपश्यत् . // 68 // अर्थः-पछी ते उमाराणीए हाथी, सिंह, तृपभ, चंद्र, सूर्य, अग्नि तथा क्षीरसमुद्र नामनां वासुदेवना जन्मने सूचवनारां स्वप्नो जोयां. 18 ततः सुतमसौ बालतमालदलदीधितिम् / विन्ध्यभूरिव भद्रेभं समये समजीजनत् // 69 // अन्वयः-ततः विंध्य भूः भद्र इभं इव, असौ समये वाल तमाल दल दीधिति सुतं मसजीजनत्. / / 69 // अर्थः-पछी विंध्याचलनी भूमि जेम भद्रजातिना हाथीनो जन्म आपे, तेम आ उमाराणीए योग्य समये उगता तमालपत्र SOCIALISTOPAISES un GATE P.P.AC.Gunratnasur M.S.
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________________ 78915 सान्वय द्विपृष्ट चरित्रं भापांतर // 21 // // 21 // B%ESSॐॐ || सरखी (श्याम) कांतिवाळा पुत्रने जन्म आप्पा. // 69 // सुतोत्पत्तिं कथयता दानमानन्दितो ददत् / रचयामास न ब्रह्मा भेदमाद्यान्तयोरपि // 70 // ___ अन्वयः-आनंदितः ब्रह्मा सुत उत्पत्तिं कथयतां दानं ददत् आद्य अंतयोः अपि भेदं न रचयामास. // 70 // अर्थः-आनंद पामेला ते ब्रह्माराजाए पुत्रनो जन्म कहेनारा मनुष्योने दान आपतथिका पेहेला अने आ छेल्ला पुत्रवच्चे (कई पण) भिन्नपणु कयु नही. // 70 // नित्योत्सवानपि सुरानुत्सवेनापि लोभयन् / सूनोढिपृष्ठ इत्याख्यां सत्यामदित भूपतिः // 71 // _ अन्वयः-नित्य उत्सवान् अपि सुरान् उत्सवेन लोभयन् भूपतिः मूनोः द्विपृष्ठ इति सत्यां आख्यां अदित. // 71 // अर्थ:-हमेशा उत्सववाळा एवा पण देवोने महोत्सवथी ललचावता एवा ते ब्रह्माराजाए ते पुत्रनुं "द्विपृष्ठ" ए, सत्य नाम पाडयु. अवर्धत स धात्रीभिः पुष्यमाणो यथाक्रमम / नमस्क्रियाभिर्धमों वा पञ्चभिः परमेष्टिनाम् // 72 // अन्वयः-परमेष्टिनां नमस्क्रियाभिः धर्मः वा पंचभिः धात्रीभिः पुष्यमाणः सः यथाक्रम अवर्धत. // 72 // अर्थः-पंच परमेष्टिना नमस्कारथी धर्मनीपेठे पांच धावमाताओवडे पोपातो ते द्विपृष्ठ पण अनुक्रमे वृद्धि पामवा लाग्यो. // 72 // मध्ये दशानां धात्रीणां तौ क्रीडन्तो विरेजतुः / दिशामिव निशाधीशदिनाधीशौ वरोदयौ // 73 // ____अन्वयः-वर उदयौ निशा अधीश दिन अधीशौ दिशां इव, तौ दशानां धात्रीणां मध्ये क्रीडतौ विरेजतुः // 73 // BRESSER P.P.AC.Gunvanasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // 22 // द्विपृष्ट 6 अर्थः-उत्तम उदयवाळा चंद्र अने सूर्य जेम दशे दिशाओमां क्रीडा करता शोभे छे, तेम तेओ बन्ने दश धावमाताओनीवच्चे |||| सान्वय 4] क्रीडा करताथका शोभता हता. // 73 // "चरित्रं भाषांतर नीलपीताम्बरो तालशङ्खाको तौ सितासितौ / धरित्रीजननेत्राणां मुदं चित्रेण चक्रतुः // 74 // ___ अन्वयः-नील पीत अंबरी, ताल शंख अंको, सित असितौ तौ धरित्री जन नेत्राणां चित्रेण मुदं चक्रतुः // 74 // | // 22 // अर्थः-श्याम तथा पीळां वस्रोने धारण करनारा, ताल तथा शंखना चिह्नवाळा, अने श्वेत तथा श्याम कांतिवाळा तेओ बन्ने पृथ्वी परना लोकोनां चक्षुओने आश्चर्यथी आनंद करता हता. // 74 // दोभूषणं शस्त्रकलाः शास्त्राणि मुखभूषणम् / जगृहाते गुरुभ्यस्तो मञ्जूषाभ्य इव स्वयम् // 75 // ___ अन्वयः-तौ स्वयं मंजूपाभ्यः इव गुरुभ्यः दोभूषणं शस्त्र कलाः, मुख भूपणं शास्त्राणि जगृहाते. // 75 // अर्थः-पछी तेओए पोते जेम पेटीमांथी, तेम गुरुपासेथी हाथना आभूपणसरखी शस्त्रकला, अने मुखना आभूषणसरखी शास्रोनी विद्या ग्रहण करी. // 75 // एकपात्रदशायुग्मदीप्तौ दीपाविवोज्ज्वलौ / तौ दुःखसुखयोस्तुल्यौ तुल्यस्नेहो विलेसतुः // 76 // अन्वयः-एक पात्र दशा युग्म दीप्तौ दीपौ इव उज्ज्वलौ, सुख दुःखयोः तुल्यौ, तुल्य स्नेहौ तौ विलेसतुः // 76 // अर्थः-एक पात्रमा रहेली चे वाटोथी प्रगट थयेला दीपकनी पेठे कांतिवाळा, सुखदुःखमां सरखा, अने तुल्य प्रीतिवाळा (पक्षे. CAREERROR RECASSOCESSORRENREGS IES P.P.AC.Ganrainamar M.S.
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________________ सान्वय भापांतर // 23 // द्विपृष्ट तुल्य तैलवाला) एवा तेओ बन्ने विलास करता हता. // 76 / / : चरित्रं / || तौ शस्त्रतोऽधिकं शश्वत्क्रीडयैवार्धचक्रिणः / अशस्त्रमाज्ञाभङ्गाख्यं वधं वध्यस्य चक्रतुः // 77 // अन्वयः-तौ शश्वत् क्रीडया एव वध्यस्य अर्थ चक्रिणः, शस्त्रतः अधिक आज्ञा भंग आख्यं वधं चक्रतुः // 77 // // 23 // अर्थः-तेओ बन्ने हमेशां क्रीडामात्रमांज वधकरवालायक प्रतिवासुदेवना, शस्त्रथी पण अधिक, आज्ञाभंगनामनो वध करवा लाग्या. परिज्ञाय तयोर्दूरादाज्ञातिक्रमविक्रमं / स्पृशो गत्वा त्वरातारास्तारकं प्रत्यदोऽवदन् // 78 // अन्वयः-स्पृशः दूरात् तयोः आज्ञा अतिक्रम विक्रमं परिज्ञाय, त्वराताराः तार कंपति गत्वा अदः अवदन्, // 78 / / अर्थः-(त्यारे) गुप्त चरोए दूरथीज तेओ बन्नेना आज्ञाना उल्लंघनरूप पराक्रमने जाणीने, एकदम जइने ते तारकनामना प्रतिवासुदेवने ते हकीकत जणावी के, // 78 // देव त्वत्सेवकस्यापि दारको द्वारिकापतेः / आज्ञां तव न मन्येते धुयौँ रश्मिमिवोद्धतौ // 79 // ___ अन्वयः-(हे) देव! त्वत् सेवकस्य अपि द्वारिकापतेः दारको, उद्धतौ धुर्यो रश्मिं इव तव आज्ञा न मन्येते. // 79 // अर्थः-हे स्वामी ? आपना सेवक एवा पण द्वारिकाधीशना वन्ने पुत्रो, उद्धत वळदो जेम रासने गणकारता नथी, तेम आपनी आज्ञा मानता नथी. // 79 // गतः स कालस्तेजोऽस्तु तारकस्य व संप्रति / शूरौ यदुदितावेतावित्याहुः सेवकास्तयोः // 8 // KARAOSALUSOARER Jun Sun And Trust
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं // 24 // NROERREARSARAN 6 अन्वयः-सः कालः गतः, संपति तारकस्य तेजः क अस्तु ? यत् एतौ शूरौ उदिती, इति तयोः सेवकाः आहुः // 80 // || सान्वयं अर्थः-ते समय हवे चाल्यो गयो छे, हवे ते तारकनुं तेज क्या रह्यु छ ? केमके आ बन्ने सूर्यो ( शूरवीरो) उदय पाम्या छे, भाषांतर एम तेओ बन्नेना सेवको कहेवा लाग्या छे. // 8 // अखर्वदोलौ सर्वशस्त्रज्ञो गर्वपर्वतौ / त्वां प्रति प्रतिभातस्तौ न शुभौ शोभनं कुरु // 81 // / / 24 // अन्वयः-अखर्व दोर्बलौ, सर्व शस्त्रज्ञौ, गर्व पर्वतौ तौ त्वां प्रति प्रतिभातः, शुभौ न, शोभनं कुरु ? / / 81 // अर्थः-न अटकावी शकाय एवा भुजबलवाला, सर्व शस्त्रकला जाणनारा, तथा गर्वथी पर्वतसरखा, एवा तेओ बन्ने तमारा सामोबडीया थइने जे उभा छे, ते ठीक नथी, माटे योग्य (उपाय) करो? // 81 // इति श्रुत्वोद्धतक्रोधो यमयोधोध्धुरस्वरः / ऊचेऽर्धचक्री सेनान्यं सेनान्यश्चितसागरः // 8 // ' अन्वयः-इति श्रुत्वा उद्धत क्रोधः, यम योध उधुर स्वरः, सेना न्यंचित सागरः अर्धचक्री सेनान्यं ऊचे. // 82 // अर्थः–एम सांभळीने, क्रोधातुर थयेलो, यमना योधासरखा उद्धत नादवाळो, तथा सैन्यथी महासागरने पण भरी देनारो ते पतिवासुदेव (पोताना) सेनापतिने कहेवा लाग्यो के, // 82 // सपुत्रद्वारिकाधीशवधप्रधनसंधया / प्रपञ्चय चमूवीचीींचीकृतकुलाचलाः // 83 // अन्वय, सपुत्र द्वारिका अधीश वध प्रधन संधया, नीचीकृत कुल अचलाः चमूवीचीः प्रपंचय? // 83 // KARNAGAVRSARA CTEREOGA PPAGS
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________________ booct मा श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र P:/E13 / अर्थः-पुत्रोसहित द्वारिकाना राजानो वध करवाना संग्रामनी प्रतिज्ञाथी कूलपर्वतोने पण नीचां करे, एवी सेनानी तैयारी करो? ! सान्वय न चाटुवचनैर्नाग्रेलुण्ठनैनाधिसेवनैः / न चाननतृणादास्ते मोक्तव्याः कथंचन // 84 // त भाषांतर ___ अन्वयः-चाटु वचनैः न, अग्रे लुंठनैः न, अंघ्रि सेवनैः न, च आनन तृण आदानैः ते कथंचन न मोक्तव्याः . // 84 // 18 // 25 // अर्थः-नही मीठां वचनोथी, नही आगळ लोटवाथी, नही पगे पडवाथी, के नही मुखमां तृण लेवाथी, तेओने कोइपण रीते छोडवा नही. // 84 // अधुनैवाधिकोत्साहैर्वाहैः सज्जय मे रथम् / मास्तु कालविलम्बस्ते भम्भां संभावय द्रुतम् // 85 // ___ अन्वयः-अधुना एव अधिक उत्साहैः वाहैः मे रथं सज्जय? काल विलंबः मा अस्तु ? ते भंभां द्रुतं संभावय ? // 85 // अर्थः-हमणाज अधिक उत्साहवाळा घोडाओवडे मारो रथ तैयार कर? तेमां जरा पण वखतनो विलंब थवो न जोइये, अने | तारां रणशींगांनी तुरत संभाळ ले ? // 85 // अथामात्यपतिर्भूपमजल्पन्नयकल्पवित् / देव सेवक एवाद्य यावदस्ति स ते नृपः // 86 // अन्वयः-अथ नय कल्पवित् अमात्यपतिः भूपं अजल्पत्, (हे) देव ! सः नृपः अद्य यावत् ते सेवकः अस्ति. // 86 / / अर्थः-त्यारे नीतिआचारने जाणनारा मंत्रीश्वरे राजाने कर्बु के, हे स्वामी ! ते राजा आजदनसुधी आपनो सेवक छे. // 86 // ||3|| SUGEROPLAST (realls) MAN PP A Guns
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________________ सान्वय द्विपृष्ट चरित्रं भाषांतर // 26 // निदेशवर्तिनं चैनं मानयोग्यं निगृह्णतः / परिवारेऽपि पुनाग विरागस्ते भविष्यति // 87 // अन्वयः-हे पुनाग ! निदेश वतिनं, च मानयोग्य एनं निगृहातः ते परिवारे अपि विरागः भविष्यति. // 87 // II..."| अर्थ:-हे पुरुषोत्तम! आज्ञामा रहेला, अने सन्मानयोग्य एवा ते राजाने मारवाथी आपना परिवारमा पण विखवाद थशे. तदुत्पादयितुं दोषं दूतस्तं प्रति युज्यताम् / मृत्युरप्यङ्गिनं हन्ति नान्नदोषादिना विना // 88. // अन्वयः-तत् दोषं उत्पादयितुं तंपति दूतः युज्यता ? मृत्युः अपि अन्न दोप आदिना विना अंगिनं न हंति. // 88 // अर्थ:-माटे तेनापर आरोप मकवामाटे तेनीपासे इतने मोकलवो जोइये, केमके मृत्यु पण अनाजना दोषआदिकविना पाणीनेमारतो नथी. // 88 // दूतेनाश्वेभरत्नानि याच्योऽसौ चेन्न दास्यति / तदोषी दोषवान्सवों विभौ हि च्छलवीक्षके // 89 // __ अन्वयः-दूतेन अश्व इभ रत्नानि असौ याच्यः, चेत् न दास्यति, तत् दोषी, हि छल वीक्षके विभौ सर्वः दोषवान्. // 89 // अर्थः-दूतमारफते घोडा, हाथी तथा रत्नोनी तेनी पासे मागणी करवी, जो न आपे, तो तेने गुन्हेगार जाणवो, केमके छल | जोनारा स्वामीपासे सर्व कोइ गुन्हेगार छे. // 89 // राज्ञाथ तदगिरि प्रीतिं वहता प्रहितश्चरः / पार्श्वस्थितसुतद्वन्द्वं ब्रह्माणं स्माह संसदि // 90 // ___ अन्वयः-अथ तगिरि प्रीतिं वहता राज्ञा प्रहितः चरः, संसदि पार्श्व स्थित सुत द्वंद्वं ब्रह्माणं स्माह. // 90 // SCUOLA PROSLAGSISES CURREVEA%ARA P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ द्विष्ट चरित्रं // 27 // | अर्थः-पछी ते मंत्रीना वचनमां प्रीति धारण करनारा ते राजाए मोकलेलो दूत सभामां जइने, पासे बेठेला वन्ने पुत्रोवाळा ते !|| सान्वय ब्रह्माराजाने कहेवा लाग्यो के, // 9 // भाषांतर भूप त्वां तारको वक्ति भक्तिमान्सेवकोऽसि मे / तत्पाल्योऽसि ममैव त्वं किं ते हस्तिहयादिना // 11 // BI अन्वयः-(हे) भूप! त्वां तारकः वक्ति, वं मे भक्तिमान् सेवकः असि, तत् मम एव पाल्यः असि, ते हस्ति हय आदिना किं? 18 // 27 // अर्थ:-हे राजन् ! तने तारक राजा एम कहे छे के, तुं मारो भक्तिवंत सेवक छो, अने तेथी मारेज तारुं रक्षण करवानुं छे, माटे तारे हाथी घोडाआदिकनी शी जरुर छ ? // 91 // यच्छ तत्सर्वमस्मभ्यं यन्न लभ्यं तवास्ति यत् / यद्वस्तु भरतार्धे स्याद् भरतार्धपतेर्हि तत् // 92 // ___. अन्वयः-तत् सर्व अस्मभ्यं यच्छ ? यत् तव लभ्यं न अस्ति, हि भरत अर्धे यत् वस्तु स्यात्, तत् भरत अर्धपतेः. // 92 // अर्थः-माटे ते सघळं अमोने आपी दीओ? तमारे कंइं पण राखवातुं नथी, कारणके आ भरतार्धमां जे कई वस्तु छे, ते सघकी भरताना स्वामीनी छे. // 92 // जल्पन्तमित्यमुं कोपस्वल्पकल्पान्तपावकः / दूतं भ्रतन्तुतेजोभिर्वघ्नन्निव जगौ हरिः // 93 // ___ अन्वयः-इति जल्पतं अमुं, दूतं कोप स्वल्प कल्पांत पावकः हरिः 5 तंतु तेजोभिः वघ्नन् इव जगौ. // 93 // | अर्थः-एरीते बोलता एवा ते दूतने, क्रोधथी कल्पांत कालना अग्निने पण स्वल्प करनारा वासुदेव, भृकुटिना तंतुओना तेजथी ||3 P.P.AC.Gunramaaur M.S. Jun Gun Annada Trust
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________________ सान्वय विष्ट चति भाषांतर // 28 // 28 / PRASHISRUASERRORE | जाणे बांधता होय नही ! तेम बोलवा लाग्या के, / / 93 // कुलक्रमागते राज्ये वयं स्मः स च विद्यते / स चेन्न सेवकोऽस्माकं तत्किं तत्सेवका वयम् // 94 // ___ अन्वयः-कुल क्रम आगते राज्ये व स्मः, च सः विद्यते, सः चेत् अस्माकं सेवकः न, तत् वयं तत् सेवकाः किं? // 94 // ___ अर्थः–कुलपरंपराथी आवेलुं राज्य अमो भोगवीये छीये, अने ते पण भोगवे छे, अने जो ते अमारो सेवक नथी, तो अमो तेना शाना सेवको होइ शकीये? // 94 // सोऽस्माकं पालको भूत्वा मुढो रत्नानि याचते / यदा प्रत्युत याचिष्ये कस्तं पालयिता तदा // 95 // अन्वयः-सः मूढः अस्माकं पालकः भूत्वा यदा रत्नानि याचते, प्रत्युत याचिष्ये, तदा तं का पालपिता? / / 95 // . अर्थः-ते मृों अमारो रक्षक थईने ज्यारे रत्नोनी मागणी करे छे, परंतु कदाच हुं तेनीपासेथी तेवी मागणी करीश, त्यारे तेनुं रक्षण कोण करशे? // 95 // माय स्थिते हरौ क्रोष्टा भरतार्धपतिः क्व सः / गच्छ तच्छिरसा साधु रत्नान्यादातुमेम्यहम् // 96 // / अन्वयः-मयि हरौ स्थिते सः क्रोटा भरत अर्थ पतिः क? गच्छ? अहं तत शिरसा साध रत्नानि आदातुं एमि, // 96 // . अर्थः-हुँ सिंह (पक्षे-विष्णु ) वेठां ते शीयालसरखो भरतार्धनो स्वामी (पक्षे-प्रतिविष्णु ) शुं वीसातमा छे. माटे तुं चाल्यो हुं तेनां मस्तकसहित रत्नो लेवाने आQ छं. // 96 // KIRANGALORECAREER P.P.AC.Gunratnasur.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रं द्विपृष्ट 6 इत्युक्त्वा विष्णुनोत्खात इव भूशिखयासनात् / स गत्वाशु चरः सर्वं स्वभ तथ्यमभ्यधात् // 97 // / सान्वय अन्वयः इति उक्त्वा विष्णुना भू शिखया आसनात् उत्खातः इव, सः चरः आशु गत्वा, स्वभत्रै सर्वं तथ्यं अभ्यधात्. 97 भाषांतर अर्थः-एम कहीने विष्णुए भृकुटिनी शिखाथी जाणे आसनपरथी उखेडी नाख्यो होय नही! तेम ते दूते तुरत जइने पोता॥ 29 // ना स्वामिने सघळी सत्य हकीकत कही संभळावी. // 97 // // 29 // क्रोधकोयत्रसत्कालस्तत्कालमथ तारकः / रिपुप्राणप्रयाणाय प्रयाणकमकारयत // 98 // अन्वयः-अथ क्रोध कार्य त्रसत् कालः तारकः रिपु प्राण प्रयाणाय प्रयाणकं अकारयत्. // 98 // | अर्थः-पछी क्रोध तथा क्रूरताथी यमने पण डरावनारा ते तारक प्रतिवासुदेवे शत्रुना प्राणोनो नाश करवामाटे (त्यांथी) प्रयाण कराव्यु.॥९८॥ जिताम्भोधरसंभारभम्भारवनवश्रवात् / मनोमयूराः शूराणामखण्डं ताण्डवं व्यधुः // 99 // अन्वयः-जित अंभोधर संभार भंभा रव नव श्रवात् शूराणां मनः मयूराः अखंडं तांडवं व्यधुः. // 99 // अर्थः-जितेल छे मेघनी गर्जना जेणे एवा भेरीना नवा नादना श्रवणथी शूरवीरोनां हृदयरूपी मयूरो अखंडपणे नृत्य करवा लाग्या. अभूच्चतुर्भिः पूर चतुरङ्गचमूद्गमः / चतुर्विधायुधोद्दामश्चतुर्भुजजयेच्छया // 100 // अन्वयः-चतुर्भुज जय इच्छया चतुर्भिः पूर्वी रैः चतुर्विध आयुध उद्दामः चतुरंग चमू उद्गमः अभूत् / / 100 // P.P.AC-Gurramanun M.S. un Gun Aaradhia Trust
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं // 30 // | अर्थः-पछी चार भुजाओवाळा ते विष्णुने जीतवानी इच्छाथी नगरना चार दरवाजाओमांथी चार प्रकारना शस्त्रोवडे प्रचंड |6| सान्वय बनेलां चतुरंगी सैन्यनी उत्पत्ति थइ. // 10 // | भाषांतर - मिलद्भिर्मन्त्रिधात्रीशदेशाधीशादिसैनिकैः / तच्चमूर्ववृधे यान्ती नदी नद्यन्तरैरिव // 1 // - __ अन्वयः-मिलद्भिः मंत्रि धात्री ईश देश अधीश आदि सैनिकैः, नद्यतरैः नदी इव, यांती तत् चमूः वधे. // 1 // // 30 // दा अर्थः-तेमां आवी मलता मंत्रीओ, राजाओ, अने मंडलीको आदिकोना सुभटोवडे, बीजी नदीओथी जेम (मुख्य) नदी, तेम चालती एवी तेनी सेना वृद्धि पामवा लागी. // 1 // प्रयाणैरप्रमाणैश्च सावेशः प्रतिकेशवः / द्रागलडिष्ट मार्गार्धमलडितपराक्रमः // 2 // __ अन्वयः-च स आवेशः, अलंधित पराक्रमः प्रतिकेशवः अप्रमाणैः प्रयाणैः द्राक् मार्ग अर्धे अलंघिष्ट. // 2 // अर्थः-पछी आवेशमा आवेलो, अने नथी उलंघायेलं पराक्रम जेनुं एवा ते प्रतिवासुदेवे प्रमाणरहित प्रयाणोवडे तुरत अर्ध मार्गनुं उल्लंघन कयु.॥२॥ इतश्च तादृगुत्साहसाहसाभोगभूषितः / हरिरप्येत्य मार्गाधं रुद्धवान्मार्गमग्रतः // 3 // अन्वयः-इतश्च तादृक् उत्साह साहस आभोग भूषितः, हरिः अपि मार्ग अर्ध एत्य अग्रतः मार्ग रुद्धवान्. // 3 // अर्थः-एवामां तेवाज उत्साह अने साहसथी अलंकृत थयेला विष्णुए पण अर्धे मार्गे आवीने अगाडीना मार्गने रोकी दोधो. P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषांतर // 31 // द्विपृष्ट / / ततः प्रततसंग्रामगुणग्रामग्रहोन्मुखाः / यमश्रुतिसुखां वातां प्रतेनुरुभये भटाः // 4 // चरित्रं ) अन्वयः-ततः प्रतत संग्राम गुण ग्राम ग्रह उन्मुखाः उभये भटाः यम श्रुति सुखां वार्ता प्रतेनुः // 4 // अर्थः—पछी विस्तीर्ण संग्रामना गुणग्राम करवाने तत्पर थयेला वन्ने सैन्योना सुभटो यमना कर्णोने जेथी सुख उपजे एवी // 31 // वार्ता करवा लाग्या.॥४॥ एकैकजन्तुग्रासेनातृप्तमालस्यशायिनम् / यमं जागरयामासुर्युद्धतूर्यस्वना घनाः // 5 // ___ अन्वयः-घनाः युद्ध तूर्य स्वनाः एक एक जंतु ग्रासेन अतृप्त, आलस्य शायिनं यमं जागरयामासुः // 5 // अर्थः-युद्धना वाजित्रोना गंभीर नादो, एकेका पाणीना भोजनथी तृप्त नही थयेला, अने आळसमां मृतेला यमराजने जगाडवा लाग्या.॥५॥ देहैः प्रहतिसस्ने है रोमाञ्चोच्छ्वासवारितान् / सत्राहाञ्जगृहः कष्टं भटाः स्वामिजयेच्छया // 6 // अन्वयः-भटाः स्वामि जय इच्छया, रोमांच उच्छ्वास वारितान् सन्नाहान्, प्रहति स स्नेहः देहः कष्टं जगृहः॥६॥ __ अर्थः-पछी सुभटोए (पोतपोताना) स्वामिना विजयनी इच्छाथी, रोमांचोना उद्गमथी अटकायेला बखतरोने, संग्राममां प्रि तिवाळां (पोतानां) शरीरोपर मुश्केलीथी चडाववा लाग्या. // 6 // 13 इष्टोऽत्र मृत्युरागच्छन्परिरब्धं चिरेप्सितः / पराङ्मुखा भन्मे मेति नागृह्णन्केऽपि कञ्चुकान् // 7 // P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gu Anda TT
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं // 32 // CREARRORRECTE अन्वयः-अत्र इष्टः, चिर इप्सितः, परिरब्धं आगच्छन् मृत्युः मा मा परांमुखः भूत, इति के अपि कंचुकान् न अगृह्णन्. || सान्वय अर्थः-अहीं व्हालुं तथा घणा काळथी इच्छेलु, भेटवाने आवतुं मरण पार्छ न बळी जाय तो ठीक, एम विचारीने केटलाक सु | भाषांतर भटोए तो बख्तरो पण पेहेर्या नही. // 7 // ततः पारापतयूतकारा इव घनत्वराः / उभयेऽप्यमिलन्वीरा वपुर्नीरागचेतसः // 8 // // 32 // अन्वयः-ततः पारापत द्यूतकाराः इव घन त्वराः उभये अपि वीराः, वपुः नीराग चेतसः अमिलन्. // 8 // अर्थः-पछी पारेवां अने जुगारीओनीपेठे अति उतावळथी बन्ने सैन्योना सुभटो हृदयथी पण शरीरनी दरकार राख्याविना | (सामसामा) आवी मळ्या. // 8 // असयोऽन्तर्वसद्भर्तृप्रतापज्वलिता इव / परस्पराभिपातेन स्फुलिङ्गान्मुमुचुर्मुहुः // 9 // ___ अन्वयः-अंतः वसत् भर्तृ प्रताप ज्वलिताः इव, असयः परस्पर अभिपातेन मुहुः स्फुलिंगान् मुमुचुः // 9 // अर्थः-हृदयमां वसता स्वामिना प्रतापथी जाणे सळगी उठी होय नही! तेम तलवारो परस्पर अथडावाथी वारंवार तणखाओने झरवा लागी. // 9 // द्विषत्तेजोऽग्निमेघेषु गजेषु मदवर्षिषु / खद्योतकल्पैरद्योति स्फुलिङ्गैर्दन्तघातजैः // 10 // ___ अन्वयः-द्विषत् तेजः अग्नि मेघेषु गजेषु मद वर्षिषु खद्योत कल्पैः दंत घात जैः स्फुलिंगः अयोति. // 10 // PAHADRAGANAGAR PPA Jun Gun Arda Trust
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________________ सान्वय चरित्रं // 33 // अर्थः-शत्रुओना तेजरूपी अग्निथी उत्पन्न थयेलां वादळांओसरखा हाथीओ मदनो वरसाद वरसावते छते, पतंगीयांओसरखा, दांतोना घातोथी उत्पन्न थयेला तणखाओ दीपवा लाग्या. // 10 // | भाषांतर सायकाः शाकिनीमन्त्रा इव स्यन्दनशालिनाम् / अदृष्टा एव वध्याङ्गप्रविष्टा रुधिरं पपुः // 11 // | . अन्वयः-स्पंदन शालिनां सायकाः शाकिनी मंत्राः इव, अदृष्टाः एव वध्य अंग प्रविष्टाः रुधिरं पपुः // 11 // // 33 // अर्थः-रथोवडे मनोहर ( रथोमां बेठेला ) सुभटोनां बाणो शाकिनीओना मंत्रोनीपेठे अदृश्यपणेज शत्रुओना शरीरोमां दाखल थइने रुधिर पीवा लाग्या. // 11 // वाहवद्भिर्मणिश्रेणिसन्नाहातिवेणिभीः / नाबोधि रुधिरं निर्यतादृक्शल्यप्रहारजम् // 12 // ____ अन्वयः-मणि श्रेणि सन्नाह द्युति वेणिभिः वाहवद्भिः, तादृक शल्य प्रहार जं नियंत रुधिरं न अवोधि. // 12 // अर्थः-मणिओनी श्रेणिओवाळां बख्तरोनी कांतिओनी हारवाळा घोडेस्वारोए तेवा प्रकारना भालांओना प्रहारथी उत्पन्न थये- | लां, अने (शरीरमाथी बहार) निकळतां रुधिरने जाणी पण शक्या नही. // 12 // सन्नाहशस्त्रदण्डास्थिखण्डानां त्रुटतां खनैः / नतां घोषैश्च घोरोऽभून्मृत्योरपि भिये क्षणः // 13 // __ अन्वयः-त्रुटतां सन्नाह शस्त्र दंड अस्थि खंडानां स्वनैः, च नतां घोपैः घोरः क्षणः मृत्योः अपि मिये अभूत् // 13 // अर्थः-त्रुटी पडतां बख्तरो, शस्त्रो, दंडो तथा हाडकाओना टुकडाओना शब्दोथी, तथा घायल थता सुभटोना आर्तनादोथी प्रचंड ||2|| P.P.AC.Gunramour M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषांतर *e // 34 // द्विपृष्ट || बनेलो ते रणसंग्राम यमराजने पण भयानक थइ पड्यो. // 13 // चरित्रं प्रकम्पितासयो हस्ता मौलयः सिंहनादिनः / अमर्षिणां द्विषत्खड्गोरिक्षप्ताःखेऽत्रासयन्सुरान् // 14 // ___अन्वयः-द्विषत् खड्ग उत्क्षिप्ताः अमर्पिणां प्रकंपित असयः हस्ताः, सिंह नादिनः मौलयः खे सुरान् अत्रासयन्. // 14 // // 34 // अर्थः-शत्रुओना खड्गोवडे उंचे उडेला शूरवीरोना, कंपती तलवारोवाळा हाथ, तथा सिंहनाद करनारां मस्तको आकाशमां रल हेला देवोने पण त्रास पमाडवा लाग्या. // 14 // युध्यमानमहावीरः क्षीणवीरगणः क्षणम् / व्यक्तोऽजनि रणः कामं कालकान्तादृगुत्सवः // 15 // ___ अन्वयः-युध्यमान महावीरः, क्षीण वीर गणः, काल कांता दृग उत्सवः, क्षणं कामं व्यक्तः रणः अजनि. // 15 // अर्धः-युद्ध करता छ महान् सुभटो जेमां, नाश पाम्या छे वीरोना समूहो जेमां, तथा यमनी स्त्रीनी (चंडिकानी) आंखोने आनंद आपनारो, क्षणवारसुधी सारीरीते (जोरथी) प्रगटपणे संग्राम थयो. // 15 // क्षीणास्त्रो बाहुमेव स्वमस्त्रीकृत्य द्विषत्कृतम् / चक्रे कश्चन पीठाब्जमागताया जयश्रियः // 16 // ____ अन्वयः-क्षीण अखः कश्चन स्वं बाहुं एव अस्वीकृत्य ओगतायाः जयश्रियः द्विपत् कृतं पीठ अब्ज चक्रे. // 16 // अर्थः-खूटी गयेलां शस्त्रोवाळा कोइक सुभटे पोताना हाथनेज शस्त्ररूप करीने, आवेली जयलक्ष्मीने (बेसवामाटे) शत्रुए आपे|| ली पीठनेज कमलरूप करी. // 16 // * ARRISHRA MARRESERVEhEOS PPA G MS Jun Bun Arda Trust
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________________ सान्वय | भाषांतर चरित्र द्विपृष्ट || छिन्नायुधभुजामौलिः कश्चिदुत्पत्य कोपतः / ऊरुसंदंशबन्धेन द्विषमाशु व्यसुं व्यधात् // 17 // ___ अन्वयः-छिन्न आयुध भुजा मौलिः कश्चित् कोपतः उत्पत्य ऊरु संदंश बंधेन द्विषं आशु व्यसुं व्यधात्. // 17 // अर्थः-शस्त्रथी छेदाइ गया छे हाथ तथा मस्तक जेना एवा कोइक सुभटे क्रोधथी उछळीने, शत्रने (पोताना ) के साथकोरूपी // 35 // साणसामां दाबीने तुरत पाणरहित कर्यो. // 17 // कोऽप्यभ्युत्थापयन्नङ्गान्याजिकण्डूभरच्छिदे / प्रहारान्दृढयामास रिपोर्मन्दप्रहारिणः // 18 // अन्वयः-कः अपि आजि कंडू भर च्छिदे अंगानि अभ्युत्थापयन् मंद महारिणः रिपोः प्रहारान् दृढयामास.॥१८॥ अर्थः–कोइक सुभटे तो संग्रामनी खरजनो समूह मटाडवामाटे, (पोतानां) अंगो आगळ धरीने, धीमेथी प्रहार करता शत्रुना | महारोने मजबूत बनाव्या. // 18 // दृक्पातेनैव निर्भग्ने परवीरगणेऽपरः / अपूर्णयुद्धाभिप्रायोऽभजत्प्रायोपवेशनम् // 19 // अन्वयः-दृक् पातेन एव पर वीर गणे निर्भग्ने अपरः, अपूर्णयुद्ध भभिप्रायः प्राय उपवेशनं अभजत्. // 19 // अर्थः-फक्त (पोताना) दृष्टिपातथीज शत्रुना सुभटोनो समूह नाशी जवाथी कोइक सुभटने तो संग्रामनी इच्छा पूर्ण न थवाथी बेसीज रहेQ पडयु. // 19 // GANGANAGARUNCATEGRA P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्रं भाषांतर HOR // 36 // // 36 // | तुल्यं हक्कां प्रहारं च। दत्वा हक्काच्युतायुधे / द्विषि द्विखण्डिते कोऽपि स्वं जघानानुतापतः // 20 // अन्वयः-कः अपि हक्कां च प्रहारं तुल्यं दत्वा, हक्का च्युत आयुधे द्विषि द्वि खंडिते अनुतापतः स्वं जघान. // 20 // अर्थः-कोइक सुभटे तो एकसरखी हांकल तथा प्रहार देइने, हांकलथी खरी पडेलां हथीयारवाळो शत्रु होते छते, पश्चात्तापथी पोते आपघात कर्यो. // 20 // खाङ्गे प्रहारमिच्छन्तौ दृढं कौचिन्महाभटौ / क्रुधान्यतोऽन्यतो यातौ दयामन्दप्रहारिणौ // 21 // __ अन्वयः-स्व अंगे दृढं प्रहारं इच्छंतौ कौचित् महाभटौ दया मंद प्रहारिणौ क्रुधा अन्यतः अन्यतः यातो. // 21 // अर्थः-पोत पोताना शरीरपर गाढ प्रहारने इच्छता एवा कोइक बे महासुभटो, दयाथी मंद प्रहार करताथका क्रोधथी बीजी बीजी जगोए चाल्या गया. // 21 // . प्रतिघातमकुर्वन्तो दत्तघातेषु शत्रुषु / पश्यन्तः सदृशं वीरं चिरं केऽप्यभ्रमन्भटाः // 22 // अन्वयः-दत्तं घातेषु शत्रुषु प्रतिघात अकुर्वतः, सदृशं वीरं पश्यंतः के अपि भटाः चिरं अभ्रमन्. // 22 // अर्थः-घा करनारा शत्रुओपर सामो घा नहीं करता, अने पोतासरखा शूरवीरने शोधताथका केटलाक सुभटो घणा काळमधी भमवा लाग्या. // 22 // SENS P.P.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Anak Trust
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________________ सान्वय भाषांतर हिपृष्ट | द्विषि प्रहारिण्यभ्यासादगानाशं चकार यः / वोरास्तमप्यमन्यन्त कातरं जातरहंसः // 23 // चरित्रं अन्वयः-प्रहारिणि द्विपि यः अभ्यासात् अंग नाशं चकार, तं अपि जात रंहसः वीराः कातरं अमन्यंत // 23 // अर्थः-शत्रु प्रहार करते छते जेणे अभ्यासथी (पोतानांज) शरीरनो नाश कर्षो छे, तेने पण शूरवीर सुभटो कायर मानवा लाग्या. / / 37 // अबिभ्यत्सुभटेभ्यस्तच्छस्त्र शस्त्रेण योऽच्छिनत् / मृत्युभोतो न वोरेषु सोऽपि रेखामवाप्तवान् // 24 // अन्वयः-सुभटेभ्यः अविभ्यत् यः तत् शस्त्र शस्त्रेण अच्छिनत्, सः अपि मृत्यु भीतः वोरेषु रेखां न अवाप्तवान् // 24 // अर्थः-सुभटोथी नही डरनारा एवा जे सुभटे तेनां शस्त्रने शस्त्रयो छेदी नाख्युं, ते पण मृत्युथो वीकण मनातो थको शुरवीरोनी गणनामां आवी शक्यो नही. // 24 // एवं तरन्तो युद्धाब्धिं दोामेवोभये भटाः / सकौतुकमलोक्यन्त दृक्पातेन जयश्रिया // 25 // अन्वयः--एवं दोयी एव युद्ध अब्धिं तरंतः उभये भटाः, जय श्रिया दृक् पातेन अलोक्यंत. // 25 // अर्थः-ए रीते बन्ने हाथथीज संग्रामरूपी महासागरने तरनारा ते वने सैन्योना मुमटोने जा लक्ष्मीए (फक्त) दृष्टिपातथी जोपा. आरुह्याथ रथं तल्पमिवाभीष्टं जयश्रियः / तत्कण्ठमिव वैकुण्ठः पाञ्चजन्यं मुदाग्रहीत् // 26 // अन्वयः-अथ जय श्रीयः अभीष्टं तल्पं इव रथं आरुह्य वैकुंठः तत्कंठं इव पांचजन्यं मुदा अग्रहीत / / 26 // |DI अर्थः-पछी जयलक्ष्मीनी व्हाली शय्या सरखा रथपर चडीने विष्णुए तेणीना कंठसरखा पांचजन्य शंखने हर्पथी ग्रहण कर्यो. ॐ- 15ॐॐॐॐॐ P.P.AC.Gurramasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ k सान्वय भाषांतर चरित्रं // 38 // // 38 // द्विपृष्ट / / अस्त्राधिदैवतान्यस्त्रशय्यासुप्तानि सत्वरम् / शौरिर्जागरयामास पाञ्चजन्यं प्रणादयन् // 27 // . . . __ अन्वयः-शौरिः पांचजन्यं प्रणादयन् अस्त्र शय्या सुप्तानि अस्त्र अधिदैवतानि सत्वरं जागरयामास. // 27 // अर्थः-पछी ते विष्णुए ते पांचजन्य शंखने वगाडतां थकां शस्त्रोरूपी शय्यामां सुतेला शस्त्रोना अधिष्टायक देवोने एकदम जगाड्या. तेन शङ्खस्य घोषेण सैन्यानि प्रतिशाणिः / तृणानि पवनेनेवोड्डाययामासिरेऽग्रतः // 28 // __ अन्वयः-शंखस्य तेन घोषेण प्रतिशाङ्गिणः सैन्यानि पवनेन तृणानि इव अग्रतः उड्डाययामासिरे // 28 // अर्थः-शंखना ते नादथी प्रतिवासुदेवनां सैन्यो, पवनथी घासनी पेठे अगाडीना भागमां उडवा लाग्यां. // 28 // संक्रुद्धस्तद्ध्वनेरद्दशब्दादिव मृगाधिपः / शैलशृङ्गमिवारोहद्रथं प्रतिरथाङ्गभृत् // 29 // अन्वयः-अब्द शब्दात मृग अधिपः शैल शृंगं इव, तत् ध्वनेः संक्रुद्धः प्रतिरथांगभृत रथं आरोहत्. // 29 // अर्थः-पछी मेघनी गर्जनाथी (क्रोध पामेलो) सिंह जेम पर्वतना शिखरपर चडे, तेम ते शखना नादथी क्रोध पामेलो ते तारक प्रतिविष्णु पण रथपर चड्यो, // 29 // जयलक्ष्मीहठाकृष्टिसिद्धमन्त्राक्षरैरिव / सैन्यानि चापटङ्कारैः स्थिरयन्स हरिं ययो // 30 // अन्वयः--जय लक्ष्मी हठ आकृष्टि सिद्ध मंत्र अक्षरैः इव, चाप टंकारैः सैन्यानि स्थिरयन् सः हरिं ययौ. // 30 // toCATERGESANS-DEOS ॐर P.P.AC.Gurramanur M.S. un G A T
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________________ द्विपृष्ट / सान्वय भाषांतर चरित्रं // 39 // / / 39 // Connornano अर्थः-पछी जयलक्ष्मीने बलात्कारे खेंची लावनारा सिद्ध मंत्राक्षरोसरखा धनुपना टंकारनादोथी (पोतानां ) सैन्योने स्थिर | करतो थको ते प्रतिवासुदेव वासुदेवनी सामे गयो. // 30 // क्रुद्धौ दृग्युद्धवाग्युद्धपूर्वं सर्वायुधैः क्रमात् / परस्परेण संरब्धो प्रारब्धो यो द्रुमेव तौ // 31 // अन्वयः क्रुदौ संरब्धौ तौ दृग्युद्ध वाग्युद्ध पूर्व, क्रमात् स आयुधैः परस्परेण योधुं एव पारयोः // 31 // अर्थ.-पछी क्रोध पामीने तैयार थयेला एवा तेओ वने दृष्टियुद, तथा वचनयुद्धपूर्वक अनुक्रने सर्व शस्त्रोथी परस्पर युद्धज करवा लाग्या. // 31 // शिलीमुखा मिथश्छिन्नाः क्षोणीगतमुखास्तयोः / कबन्धैरिव पश्चाननृतुर्युद्धमूर्धनि // 32 // ___ अन्वयः-मिथः छिन्नाः, क्षोणी गत मुखाः तयोः शिलीमुखाः कांधैः इव पश्चाधैः युद्ध मूर्धनि ननृतुः // 32 // अर्थः-परस्पर कपाइ गयेलां, तथा जमीनमा खंची गयेलां मुखोवाळां, तेओ वन्नेनां वाणो कवंधोनी पेठे (वहार रहेला) उपरना अर्ध भागोवडे युद्धना मस्तकपर (संग्रामना मेदानमां) नाचवा लाग्यां. // 32 // छिन्नमध्या अपि शरा बहुवेगबलोद्धताः / तयोर्लक्ष्यं ययुः केऽपि कोपना इव पन्नगाः // 33 // __ अन्वयः-छिन्न मध्याः अपि तयोः के अपि शराः, बहु वेगवल उद्धताः, कोपनाः पन्नगाः इव लक्ष्यं ययुः. // 33 // अर्थः-छेदाइ गया छे मध्य भागो जेना, एवां पण तेओनां केटलांक वाणो, अति वेगथी उछळताथका क्रोध पामेला सोनी पेठे NAGARCANAGAR P.P.AC.Gurramasur M.S. Jun Gun Annada Trust
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्रं भाषांतर // 40 // // 40 // RRRRUAROSACSA देखावा लाग्यां. (अथवा लक्ष्यते जवा लाग्या.)॥३३॥ कुधारुणमुखौ श्यामौ बाणपञ्जरमध्यगौ / जग्मतुः केलिकीरत्वं वाग्मिनो तो जयश्रियः // 34 // अन्वयः-क्रोध अरुण मुखौ, श्यामो, वाण पंजर मध्य गौ, वाग्मिनौ तौ जय श्रियः केलि कीरत्वं जग्मतुः // 34 // अर्थः-क्रोधथी लाल मुखवाळा, श्याम कांतिवाळा, तथा वाणोरूपी पांजरांमां रहेला, अने वाचाल एवा तेओ बन्ने जयलक्ष्मीना क्रीडा करवाना शुकपणाने पाम्या. // 34 // तुल्योद्यमबलौ तुल्यकृतिप्रतिकृतिक्रमौ / तो तुल्यलक्षणौ वीक्ष्य भन्नाशोऽभूत्पराजयः॥ 35 // __ अन्वयः-तुल्य उयम बलौ, तुल्य कृति प्रतिकृति क्रमौ, तुल्य लक्षणौ तौ वीक्ष्य पराजयः भग्न आशः अभूत् // 35 // . 4 अर्थः-सरखा उद्यम अने बलबाळा, सरखा कार्य अने प्रतिकार्थना अनुक्रमवाळा, तथा सरखां लक्षणोवाळा तेओ वन्नेने जोइने 8 & पराजय तो निराश थइ गयो, // 35 // स्वयं जयश्रियैकैकबाहुनालिहिताविव / केन केन महास्त्रेण चक्रतुर्विक्रमं न तौ // 36 // अन्वयः-जय श्रिया एक एक बाहुना आलिंगितौ इव , तौ केन केन महास्त्रेण विक्रमं न चक्रतुः // 36 // अर्थ:-जयलक्ष्मीए (पोताना) एकेक हाथथी जाणे पाडेला होय नही. एवा तेओ वने कयां कयां महान् शस्त्रथी प.तार्नु पराक्रम न फोरववा लाग्या? // 36 // SACARECRPORARE P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्रं द्विपृष्ट ||| अस्त्रान्तरेण मत्वाथ दुर्जयं विजयानुजम् / दुनिरोक्षतरं चक्रे करं चक्रेण तारकः // 37 // सान्वय __ अन्वयः-अथ अस्व अंतरेण विजय अनुजं दुर्जयं मत्वा तारकः चक्रेण करं दुनिरीक्षतरं चक्रे. // 37 // | भाषांतर अर्थः-पछी वीजां शस्त्रोथी विजयना न्हाना भाइ द्विपृष्टवासुदेवने दुर्जय मानीने ते तारकपतिवासुदेवे चक्रवडे करीने (पोताना) // 41 // हाथने अति कष्टथी जोइ शकाय एवो कर्यो, ( अर्थात् हाथमां तेजस्वी चक्र धारण कर्यु.) // 37 // 4 // 41 // जीवितव्यमिवार्कस्य रहस्यमिव विद्युताम् / चक्रं चित्तमिवाग्नेस्तज्ज्वलत्कः प्रेक्ष्य नात्रसत् // 38 // . अन्वयः-अस्य जीवितव्यं इव, विद्युतां रहस्यं इव, अग्नेः चित्तं इव, तत् ज्वलत् चक्रं प्रेक्ष्य कः न अत्रसत् ? // 38 // अर्थ:-सूर्यनां जीवनसरखां, विजकीओना सारसरखां, तथा अग्निना हृदयसरखां ते जाज्वल्यमान चक्रने जोइने कोण त्रास पाम्युं नहीं? // 38 // तादृक्प्रभावभृच्चकं न किंचिदिति चिन्तयन् / पीतवान्पीतवासास्तदृक्ताराकान्तिवारिदैः // 39 // अन्वयः-ताहक प्रभाव भृत् चक्रं न किंचित, इति चिंतयन् पीत वासाः दृक् तारा कांति वारिदैः तत् पीतवान्, // 39 // | अर्थः-तेवां माहात्म्यवाळु आ चक्र तो कंइज वीसातमां नथी, एम चिंतवता ते पीतांवर ( वासुदेव पोतानी ) आंखोनी कीकीP| ओनां तेजरूपी वादळाओवडे तेने पी गया. // 39 // ||5|| चक्रेण जितमेवेति मन्यमानस्तु तारकः / तर्जयन्निव दृष्टयैव प्रहसन्हरिमाह सः // 40 // PPA Gun MS
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________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्र भाषांतर // 42 // // 42 // अन्वयः-चक्रेण जितं एव, इति मन्यमानः सः तारकः तु, दृष्ट्या एव तजयन् इव, प्रहसन् हरिं आह.॥४०॥ अर्थः-आ चक्रथी मारी जीत थइज छे, एम मानतो ते तारक तो दृष्टिथीज जाणे तिरस्कार करतो होय नही ! तेम हांसी करतोथको विष्णुने कहेवा लाग्यो के, // 40 // चिरसेवकसूनुमें दुर्मेधा इति वध्यसे / मदाज्ञां श्रय भो डिम्भ भुंव भोगान्ट्रियस्व मा // 41 // __ अन्वयः-मे चिर सेवक सूनुः दुर्मेधाः इति वध्यसे, भो डिभ! मदाज्ञां श्रय ? भोगान् मुंश्व ? मा म्रियस्व ? // 41 // अर्थः-मारा घणा काळना सेवकनो पुत्र थइने तुं वृद्धि निवडेलो छे, माटे तारो वध करवानो छे, माटे हे गभरु ! (हजु पण) तुं मारी आज्ञा स्वीकार? अने भोगो भोगव ? (नाहक) न मार्यो जा? // 41 // हरिराह त्वदस्त्राणां प्रमाणं ददृशे मया / मुश्च चक्रमपीदानों पश्याम्यस्याप्यहं महः // 42 // ___ अन्वयः-हरिः आह, त्वद् अस्त्राणां प्रमाणं मया ददृशे, इदानीं चक्रं अपि मुंच ? अस्य अपि महः अहं पश्यामि. // 42 // अर्थः-त्यारे विष्णुए कह्यु के, तारां शस्त्रोनुं प्रमाण में जोयु छे, हवे आ चक्रने पण मूक ? के जेथी तेना तेजने (पण) हुं जोउं. इत्युक्त्या कुपितश्चक्रं भ्रमयित्वा रयेण खे / तं प्रति त्रस्तचन्द्रार्कतारकं तारकोऽमुचत् // 43 // ___ अन्वयः-इति उक्त्या कुपितः तारकः त्रस्त चंद्र अर्ज तारकं चक्रं रयेण खे भ्रमयित्वा तंपति अमुचत् // 43 // अर्थः-एम कहेवाथी क्रोध पामेला ते तारके, चंद्र, मूर्य तथा ताराओने पण त्रास आपनारां ते चक्रने वेगथी आकाशमां भमा- | P.P.ALGunratnamurMS.
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________________ सान्वय भाषांतर / / 43 // द्विपृष्ट / वीने तेनापर मूक्यु. // 43 // . स्नेहाज्जयश्रिया कर्णकुण्डलेनेव केशवः / नाभ्या हृदि हतस्तेन चक्रेण सुखमूर्छितः // 14 // चरित्रं अन्वयः-जय श्रिया स्नेहात् कर्णकुंडलेन इव, तेन चक्रेण नाभ्या हृदि हतः केशवः सुख मूर्छितः. // 44 // // 43 // अर्थः-जयलक्ष्मीए स्नेहथी जाणे कर्णना कुंडलसरखा ते चक्रे धरीवडे छातीमा हणेला ते विष्णु सुखमूर्छा पाम्या. // 44 // अतिज्वलयतेवाथ तत्प्रतापहुताशनम् / वीजितो व्यजनीकृत्य वासोऽन्तं विजयेन सः // 45 // अन्वयः-अथ तत प्रताप हताशनं अतिज्वलयता इव, विजयेन वासः अंतं व्यजनीकत्य सः वीजितः // 45 // अर्थः-पछी ते विष्णुना प्रतापरूपी अग्निने जाणे अत्यंत जाज्वल्यमान करता होय नही ! तेम विजयबलदेवे वस्त्रना छेडाने वींझणारूप करीने तेने पवन नाख्यो. // 45 // तदेव चक्रमुद्ब्रम्य मूर्छान्ते तं हरिर्जगौ। मुञ्चाग्रभागं मुञ्चामि जीवन्तं मुंव भो भुवम् // 46 // अन्वयः-मूळ अंते तत् एव चक्रं उद्धृम्य हरिः तं जगौ, भोः अग्र भागं मुंच? जीवंत मुंचामि, भुवं मुंश्व ? // 46 // अर्थः-पछी मूर्छाने अंते तेज चक्रने भमावीने विष्णुए तारकने का के, अरे! तुं (मारी) आगळथी खसी जा? तने जीवतो मुकुं छु, माटे पृथ्वी (तारुं राज्य) भोगव? // 46 // [B] क्रुधा रक्तभ्रमञ्चक्षुस्तारकस्तारकस्ततः / ऊचे तं दन्तपेषोत्थस्फुलिङ्गावलिनीगिरम् // 47 // RSSISTRA Jun G rada PP. Ac Gunnatronun MS.
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________________ हिपृष्ट सान्वय चरित्रं भाषांतर // 44 // // 44 // अन्वयः-ततः क्रुधा रक्त भ्रमत् चक्षुः तारकः तारकः तं दंत पेप उत्थ स्फुलिंग आवलिनी गिरं ऊचे. // 47 // अर्थ:-पछी कोधथी लाल थयेली आंखोमां भमती कीकीओवाळो ते तारकप्रतिवासुदेव तेनापते दांतो कचकचाववाथी उत्पन्न थ|| येला तणखाओनी श्रेणिसरखी वाणी बोलबा लाग्यो के, // 47 // अरे रे मुश्च मुश्च द्राग्ममैवेदमनेन हि / हस्तात्तेन पुनर्यत्नान्मुक्तेन त्वच्छिरो हरे // 48 // ___ अन्वयः-अरेरे! द्राग् मम एव इदं मुंच मुंच ? हि पुनः हस्त आत्तेन यत्नाव मुक्तेन अनेन त्वत् शिरः हरे. // 48 // अर्ध:-अरेरे! (तुं ) तुरत मारापरज ते चक्र मूक? मूक? केमके फरीने हाथमां लइ चींधीने मूकेलां एज चक्रथी तारां मस्त| कनुं हुं हरण करुं. // 48 // इति वाचार्दितः शाी चक्रमुज्रम्य मूर्धनि / द्रागमुञ्चत तच्छिन्नमपश्यच्च द्विषच्छिरः // 19 // | अन्वयः-इति वाचा अर्दितः शाङ्गीं चक्रं मूर्धनि उद्ध्म्य द्राग् अमुंचत, च तत् छिवं द्विपत् शिरः अपर त. // 49 // अर्थः-ए रीतनां वचनथी पीडित थयेला विष्णुए ते चक्रने मस्तकपर भमावीने तुरत मूक्युं, अने तेथी छेदायेलां शत्रुनां मस्तकने | तेणे जोयु.॥४९॥ चिरं प्रतिहरिः प्रीतः संभुज्य विजयश्रियम् // सुष्वाप वीरशय्यायां यशश्चीरावगुण्ठनः // 50 // USTORECALLEDGE P.P.AC.Gunvamatur M.S. un Gun Arda Trust
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________________ सान्वय R चरित्र भाषांतर // 45 // // 45 // RC - अन्वयः-चिरं विजय श्रियं संभुज्य पीतः प्रतिहरिः, यशः चीर अवगुंठनः वीर शय्यायाँ सुष्वाप // 50 // अर्थः-(एरीते ) घणा काळसुधी जयलक्ष्मीने भोगवीने खुशी थयेलो ते प्रतिवासुदेव, यशरूपी वस्त्र ओढीने शूरवीरोनी शय्यामां मूतो. // 50 // खनामशत्रुसंहारसंप्रीतैरिव तारकैः / पुष्पवृष्टिश्रियागामि विष्णुं सेवितुमम्बरात् / / 51 // ___ अन्वयः-स्व नाम शत्रु संहार संप्रीतैः तारकैः इव, अंबरात् पुष्प वृष्टि श्रिया विष्णुं सेवितुं आगामिः // 51 // अर्थ:-पोताना नामवाळा शत्रुना विनाशथी खुशी थयेला जाणे ताराओ आव्या होय नही ! तेम आकाशमाथी पुष्पवृष्टिनी लक्ष्मी विष्णुनी सेवा करवाने आवी. // 51 // | जिगाय गायनोद्गीतगुणग्रामो रणं हरिः / स केन जीयतां यस्यानुयायी विजयः स्वयम् // 52 // - अन्वयः-गायन उद्गीत गुण ग्रामः हरिः रणं जिगाय, स्वयं विजयः यस्य अनुयायी, सः केन जीयतां? // 52 // अर्थः-गीतोथी गवायेला छे गुणग्रामो जेना, एवा ते विष्णुए रणसंग्राममां विजय मेळव्यो, विजय ( बलदेव ) पोते जेना अनुयायी छे, ते विष्णुने कोण जीती शके ? // 52 // . चक्रं च राजचक्रं च तारकस्य तदद्भुतम् / लग्नं हस्ते च पादे च किं करोमीति शाङ्गिणः // 53 // अन्वयः-तारकस्य चक्रं च राजचक्रं च, किं करोमि ? इति शाङ्गिणः हस्ते च पादे च लग्नं, तद् अद्भुतं // 53 // RECAUSA P.P.AC.Gurramesun M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय चरित्रं भाषांतर // 46 // द्विपृष्ट र अर्थः-ते तारकर्नु चक्र, अने राजाओनो समूह, हवे हुं शुं करूं ? एम विचारता विष्णुना हाथमां अने पगमां आवी पड्यां, ए आश्चर्य छे ! // 53 // भरतार्धजयारम्भससंरम्भहृदो हरेः / चक्रमेवाभवजेयदेशमागोंपदेशकम् // 54 // // 46 // अन्वयः-भरत अर्थ जय आरंभ ससंभ हृदः हरेः, चक्रं एव जेय देश माग उपदेश अभवत् // 54 // अर्थः-अर्थ भरतना विजयना आरंभनी उत्सुकतावाळु छे हृदय जेजें, एवा ते विष्णुने ते चक्रज जीतवाना देशोनो मार्ग देखाडनारुं थयु.॥५४॥ दक्षिणं भरताधं स सार्धं सर्वैर्धराधवैः / तयैव यात्रया जैत्रः साधयामास माधवः // 55 // / अन्वयः-जैत्रः सः माधवः तया एव यात्रया सर्वैः धरा धवैः सार्धे दक्षिणं भरत अर्ध साधयामास. // 55 // अर्थः-विजय पामेला ते विष्णुए तेज प्रयाणथी सर्व राजाओनी साथे दक्षिण भरतार्धने जीती लीधो. // 55 // जनवन्मागधाधीशं वरदामेश्वरं च सः। प्रभासप्रभुमप्येतान्देवान्सेवागिरोऽकरोत् // 56 // अन्वयः-च सः मागध अधीशं, च वरदाम ईश्वरं, प्रभास प्रभुं अपि, एतान् देवान् जनवत् सेवा गिरः अकरोत्. // 56 // अर्थः-पछी तेणे मागधतीर्थना स्वामीने, तथा वरदामतीर्थना स्वामीने, अने प्रभासतीर्थना स्वामीने, एम ते देवोने पण माण| सनीपेठे सेवानां वचनो बोलनारा कर्या, (अर्थात् तेओने पोताना सेवको कर्या.) // 56 // ALEGACADRAGARHGAR
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________________ द्विपृष्ट सान्वय A चरित्रं भाषांतर 147|| // 47 // आगमन्मगधान्यात्राविनिवृत्तोऽच्युतस्ततः / तत्र व्यलोकयत्कोटिनरोत्पाट्यां महाशिलाम् // 57 // अन्वयः-ततः यात्रा विनिवृत्तः अच्युतः मगधान् आगमत्, तत्र कोटि नर उत्पाट्यां महाशिलां व्यलोकयत् / / 57 // अर्थः-पछी ते प्रयाणयात्राथी पाछा फरेला विष्णु मगधदेशमां आव्या, अने त्यां तेमणे क्रोड माणसो उपाडे एवी ( एक) म्होटी शीला जोइ. // 57 // दूरावलोककुतुको नरः करमिवाच्युतः / लीलयोत्पाटयामास तां ललाटतटावधि // 58 // अन्वयः-दर अवलोक कुतुकी नरः करं इव, अच्युतः, तां ललाट तट अवधि लीलया उत्पाटयामास. // 58 // अर्थः-दूर जोवानी इच्छावाळो मनुष्य जेम (पोतानो)हाथ ललाटने अडाडे छे, तेम ते विष्णुए ते शीलाने छेक पोताना ललाटसुधी क्रीडामात्रमांज उपाडी. // 58 // स्थापयित्वा यथास्थानं तामथाङ्गरथाङ्गभृत् / उत्तोरणपुरागारद्वारिका द्वारिकां ययो // 59 // ___अन्वयः-अथ अंग तां यथास्थानं स्थापयित्वा रथांगभृत् उत्तोरण पुर आगार द्वारिका द्वारिका ययौ. // 59 // अर्थः-पछी आनंदथी ते शिलाने तेनां योग्य स्थानके पाछी मूकीने ते विष्णु नगरनां घरोना दरवाजाओपर ज्यां तोरणो लट| कावेलां छे, एवी द्वारिकानगरीमां गया. // 59 // 18 हरिः सिंहासनेऽध्यास्य जनकेनाग्रजेन च / सर्वैरुवीधवेश्वार्थचक्रित्वे सोऽभ्यषिच्यत // 60 // NDERLOROSGUST P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषांतर चरित्रं // 48 // // 48 // अन्वयः-जनकेन च अग्रजेन, च सर्वैः उर्वीधवैः सिंहासने अवास्य सः अर्धचक्रित्वे अभ्यपिच्यत. // 63 // अर्थः-पछी पिताए, म्होटा भाइए (बलदेवे) तथा सर्व राजाओए मळीने, सिंहासनपर बेसाडीने ते विष्णुनो अर्धचक्रीपणानी राज्यगादीपर अभिषेक कर्पो. // 63 // नीति वितत्य पृथ्वीं स पृथ्वी पृथ्वीपुरन्दरः / अपालयद्वनीपाल इव बालद्रुमावलीम् // 6 // अन्वयः-वनीपालः बाल द्रुम आवलीं इव सः पृथ्वीपुरंदरः पृथ्वीं नीति वितत्य पृथ्वीं अपालयत् // 64 // अर्थः-बगीचानो रक्षक माली जेम वृक्षोनां छोडवाओनी श्रेणिवें रक्षण करे छे, तेम ते पृथ्वीन्द्रे विशाल नीतिनो विस्तार करीने | पृथ्वीनुं रक्षण कयु. // 64 // // इति श्री द्विपृष्टवासुदेवचरित्रं समाप्तं // आ चरित्र श्रीवासुपूज्यचरित्र नामनामहाकाव्यमांथी | स्वपरना श्रेयने माटे तेना अन्वय तथा गुजरातो भाषांतर करो जामनगर निवासी पंडितश्रावक हीरा| लाल हंसराजे पोताना श्रीजैनभास्करोदय प्रीन्टोंग प्रेसमां छापी प्रसिद्ध कयुं छे // श्रीरस्तु // // समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् // . 404 PARGANGAN-GANGAROO PP AC Cars
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________________ O 08132232221212121218101213888 8 019191212121212121212121212100 8 il gla zileggarega arh 0 022032221220022100 Weisessma2020212121810121210 9000