________________ सान्वय भाषांतर // 10 // द्विपृष्ट | तदैव दैवमप्याशु दुर्बलं गणयन्बलात् / चक्रे प्रयाणं राजासौ रजसावरितांम्बरम् // 30 // __ अन्वयः-बलात् दैवं अपि आशु दुर्बलं गणयन् असौ राजा तदा एव रजसा आवरित अंवरं प्रयाणं चक्रे. // 30 // अर्थः-पछी बलथी दैवने पण तुरत दुर्बल गणतो एवो ते राजा ते समये धूलिथी आकाशने आच्छादित करनारुं (त्यांथी) प्रयाण करवा लाग्यो. // 30 // पर्वतोऽपि चमूचारचूर्णीभृताध्वपर्वतः / प्रतिप्रयाणमकरोडैर्याब्धिमकरो रयात् // 31 // अन्वयः-चमू चार चूर्णीभूत अध्व पर्वतः, धैर्य अब्धि मकरः पर्वतः अपि रयात् प्रतिप्रयाणं अकरोत् // 31 // अर्थ:-पछी सैन्यना प्रयाणथी चूरेचूरा थइ गया छे पर्वतो जेनाथी, अने धैर्परूपी महासागरमा मगरसरखा ते पर्वतराजाए पण वेगथी तेनी सामे प्रयाण कर्यु. // 31 // चलद्भिः केतुचीराप्रैस्तर्जयन्तौ मिथोऽप्यथ / यो मुत्सङ्गितोत्साहौ तौ सैन्याब्धी समीयतुः // 32 // अन्वयः-अथ चलद्भिः केतु चीर अप्रैः मिथः अपि तर्जयंती, उत्संगित उत्साहौ तौ सैन्य अब्धी योध्धुं समीयतुः // 32 // अर्थः-पछी उडती धजाओना वस्त्रोना अग्र भागोथी परस्पर तिरस्कार करता, अने अति उत्साहमां आवेला, ते बन्ने सैन्योरूपी समुद्रो युद्ध माटे आवी पहोंच्यां // 32 // USSAGESSAALOECORE