________________ सान्वय R चरित्र भाषांतर // 45 // // 45 // RC - अन्वयः-चिरं विजय श्रियं संभुज्य पीतः प्रतिहरिः, यशः चीर अवगुंठनः वीर शय्यायाँ सुष्वाप // 50 // अर्थः-(एरीते ) घणा काळसुधी जयलक्ष्मीने भोगवीने खुशी थयेलो ते प्रतिवासुदेव, यशरूपी वस्त्र ओढीने शूरवीरोनी शय्यामां मूतो. // 50 // खनामशत्रुसंहारसंप्रीतैरिव तारकैः / पुष्पवृष्टिश्रियागामि विष्णुं सेवितुमम्बरात् / / 51 // ___ अन्वयः-स्व नाम शत्रु संहार संप्रीतैः तारकैः इव, अंबरात् पुष्प वृष्टि श्रिया विष्णुं सेवितुं आगामिः // 51 // अर्थ:-पोताना नामवाळा शत्रुना विनाशथी खुशी थयेला जाणे ताराओ आव्या होय नही ! तेम आकाशमाथी पुष्पवृष्टिनी लक्ष्मी विष्णुनी सेवा करवाने आवी. // 51 // | जिगाय गायनोद्गीतगुणग्रामो रणं हरिः / स केन जीयतां यस्यानुयायी विजयः स्वयम् // 52 // - अन्वयः-गायन उद्गीत गुण ग्रामः हरिः रणं जिगाय, स्वयं विजयः यस्य अनुयायी, सः केन जीयतां? // 52 // अर्थः-गीतोथी गवायेला छे गुणग्रामो जेना, एवा ते विष्णुए रणसंग्राममां विजय मेळव्यो, विजय ( बलदेव ) पोते जेना अनुयायी छे, ते विष्णुने कोण जीती शके ? // 52 // . चक्रं च राजचक्रं च तारकस्य तदद्भुतम् / लग्नं हस्ते च पादे च किं करोमीति शाङ्गिणः // 53 // अन्वयः-तारकस्य चक्रं च राजचक्रं च, किं करोमि ? इति शाङ्गिणः हस्ते च पादे च लग्नं, तद् अद्भुतं // 53 // RECAUSA P.P.AC.Gurramesun M.S. un Gun Aaradhak Trust