________________ द्विपृष्ट चरित्रं // 8 // N550% / जे मारी भूमि, ते तमारी पण भूमि छे. // 22 // सान्वय एवं सौहार्दसंबन्धभासमानकभावयोः / नैव श्रियि क्रियायां वा विभेदो भृशमावयोः // 23 // भाषांतर अन्वयः-एवं सौहार्द संबंध भासमान एक भावयोः आवयोः श्रियि क्रियायां वा भृशं विभेदः न एव. // 23 // अर्थः-एरीते मित्राइना संबंधथी शोभती औक्यतावाळा आपण बन्ने वच्चे लक्ष्मी अथवा कार्यना संबंधमां पण विलकुल जू-18| // 8 // दाइ नथीज. // 23 // भेदं यदि न देहेऽपि धत्से तच्छेमुषीप्रिय / मह्यं प्रेषय वेगेन गणिकां गुणमञ्जरीम् // 24 // ___ अन्वयः-(हे) तत् शेमुपी प्रिय ! यदि देहे अपि भेदं न धत्से, मह्यं वेगेन गुणमंजरीं गणिकां प्रेपय ? // 24 // अर्थ:-तेवी रीतनीज बुद्धिथी प्रिय एवा हे पर्वतमित्र! जो (आपण बन्नेनां) शरीरमां पण तमो जूदाइ न राखता हो तो, मने | (जरा पण) विलंबविना ते गुणमंजरी वेश्याने मोकली आपो ? // 24 // इत्यस्य वचसा दीप्तः पवनेनेव पावकः। ततान पर्वतस्तीवामक्षर ___ अन्वयः-इति अस्य वचसा, पवनेन पावकः इव, पर्वतः स्फुलिंगवत् तीवां अक्षर आलिं ततान. // 25 // अर्थः-एवीरीतनां तेनां वचनथी वायुथी जेम अग्नि, तेम ते पर्वतराजा तणखाओसरखी तीन अक्षरोनी श्रेणि विस्तारवा लाग्यो. D] साधु सख्यं चिरादद्य दर्शितं विन्ध्यशक्तिना। याचिता जीवितव्यं मे यदसौ गुणमञ्जरी // 26 // BHAGRUTHEATRA- DAG