________________ सान्वय भाषांतर चरित्रं // 13 // // 13 // अन्वयः-तेजः अग्नि ज्वालयन् स्वयंपाक व्रती कालः इव, सः अवैः पशून इवं वैरि वीरान् खंडशः कुर्बग्रेजे. // 41 // अर्थ:-तेजरूपी अग्निने बालता स्वयंपाक व्रतवाळा कालनीपेठे ते पर्वतराजा शस्त्रोवडे पशुओनीपेठे शत्रु ओना सुभटोना टुकडेal टुकडा करतोथको शोभवा लाग्यो. // 41 // कुर्वन्संकीर्णकीनाशवदनं कदनं द्विषाम् / अधावत ततः क्रुद्धो युद्धोव्यां विन्ध्यराडपि // 42 // अन्वयः-ततः संकीर्ण कीनाश वदनं द्विपां कदनं कुर्वन् क्रुद्धः विध्यराट् अपि युद्ध उा अधावत. // 42 // अर्थः-पछी जेथी यमराजना मुखमां पण संकडामण थाय, एवो शत्रुओनो संहार करतोथको क्रोध पामेलो विध्यराजा पण युद्धभूमिमां दोडी आव्यो. // 42 // मिथः प्रमथिताशेषबलौ प्रबलदोर्बलौ / तर्जयन्तौ श्रृंवैवैतौ गजन्तावभिजग्मतुः // 43 // ___ अन्वयः-प्रमथित अशेष वलौ, प्रबल दोर्बलौ, भुवा एव मिथः तर्जयतौ एतौ गर्जतौ अभिजग्मतुः // 43 // अर्थः-कचरी नाखेल छे सर्व सैन्य जेओए एवा, प्रचंड भुजवलवाळा, तथा भृकुटिथीज परस्पर एक बोजानो तिरस्कार करनारा, ते बन्ने राजाओ गर्जना करताथका सामसामे आवी गया. // 44 // रथसारथिरथ्यानां मियो मन्थममन्थरम् / प्रथयित्वा स्थितौ पृथ्व्यां पृथू पृथ्वीधरौ यथा // 44 // ___ अन्वयः-यथा पृथू पृथ्वीधरौ, (तथा तौ) मिथः रथ सारथि रथ्यानां अमंथरं मंथं प्रथयिखा पृथ्व्यां स्थितो. // 45 // P.P.ALGunratnasuMS Jun Gun Arda Trust