Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 45
________________ हिपृष्ट सान्वय चरित्रं भाषांतर // 44 // // 44 // अन्वयः-ततः क्रुधा रक्त भ्रमत् चक्षुः तारकः तारकः तं दंत पेप उत्थ स्फुलिंग आवलिनी गिरं ऊचे. // 47 // अर्थ:-पछी कोधथी लाल थयेली आंखोमां भमती कीकीओवाळो ते तारकप्रतिवासुदेव तेनापते दांतो कचकचाववाथी उत्पन्न थ|| येला तणखाओनी श्रेणिसरखी वाणी बोलबा लाग्यो के, // 47 // अरे रे मुश्च मुश्च द्राग्ममैवेदमनेन हि / हस्तात्तेन पुनर्यत्नान्मुक्तेन त्वच्छिरो हरे // 48 // ___ अन्वयः-अरेरे! द्राग् मम एव इदं मुंच मुंच ? हि पुनः हस्त आत्तेन यत्नाव मुक्तेन अनेन त्वत् शिरः हरे. // 48 // अर्ध:-अरेरे! (तुं ) तुरत मारापरज ते चक्र मूक? मूक? केमके फरीने हाथमां लइ चींधीने मूकेलां एज चक्रथी तारां मस्त| कनुं हुं हरण करुं. // 48 // इति वाचार्दितः शाी चक्रमुज्रम्य मूर्धनि / द्रागमुञ्चत तच्छिन्नमपश्यच्च द्विषच्छिरः // 19 // | अन्वयः-इति वाचा अर्दितः शाङ्गीं चक्रं मूर्धनि उद्ध्म्य द्राग् अमुंचत, च तत् छिवं द्विपत् शिरः अपर त. // 49 // अर्थः-ए रीतनां वचनथी पीडित थयेला विष्णुए ते चक्रने मस्तकपर भमावीने तुरत मूक्युं, अने तेथी छेदायेलां शत्रुनां मस्तकने | तेणे जोयु.॥४९॥ चिरं प्रतिहरिः प्रीतः संभुज्य विजयश्रियम् // सुष्वाप वीरशय्यायां यशश्चीरावगुण्ठनः // 50 // USTORECALLEDGE P.P.AC.Gunvamatur M.S. un Gun Arda Trust

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