Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 44
________________ सान्वय भाषांतर / / 43 // द्विपृष्ट / वीने तेनापर मूक्यु. // 43 // . स्नेहाज्जयश्रिया कर्णकुण्डलेनेव केशवः / नाभ्या हृदि हतस्तेन चक्रेण सुखमूर्छितः // 14 // चरित्रं अन्वयः-जय श्रिया स्नेहात् कर्णकुंडलेन इव, तेन चक्रेण नाभ्या हृदि हतः केशवः सुख मूर्छितः. // 44 // // 43 // अर्थः-जयलक्ष्मीए स्नेहथी जाणे कर्णना कुंडलसरखा ते चक्रे धरीवडे छातीमा हणेला ते विष्णु सुखमूर्छा पाम्या. // 44 // अतिज्वलयतेवाथ तत्प्रतापहुताशनम् / वीजितो व्यजनीकृत्य वासोऽन्तं विजयेन सः // 45 // अन्वयः-अथ तत प्रताप हताशनं अतिज्वलयता इव, विजयेन वासः अंतं व्यजनीकत्य सः वीजितः // 45 // अर्थः-पछी ते विष्णुना प्रतापरूपी अग्निने जाणे अत्यंत जाज्वल्यमान करता होय नही ! तेम विजयबलदेवे वस्त्रना छेडाने वींझणारूप करीने तेने पवन नाख्यो. // 45 // तदेव चक्रमुद्ब्रम्य मूर्छान्ते तं हरिर्जगौ। मुञ्चाग्रभागं मुञ्चामि जीवन्तं मुंव भो भुवम् // 46 // अन्वयः-मूळ अंते तत् एव चक्रं उद्धृम्य हरिः तं जगौ, भोः अग्र भागं मुंच? जीवंत मुंचामि, भुवं मुंश्व ? // 46 // अर्थः-पछी मूर्छाने अंते तेज चक्रने भमावीने विष्णुए तारकने का के, अरे! तुं (मारी) आगळथी खसी जा? तने जीवतो मुकुं छु, माटे पृथ्वी (तारुं राज्य) भोगव? // 46 // [B] क्रुधा रक्तभ्रमञ्चक्षुस्तारकस्तारकस्ततः / ऊचे तं दन्तपेषोत्थस्फुलिङ्गावलिनीगिरम् // 47 // RSSISTRA Jun G rada PP. Ac Gunnatronun MS.

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