Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 42
________________ चरित्रं द्विपृष्ट ||| अस्त्रान्तरेण मत्वाथ दुर्जयं विजयानुजम् / दुनिरोक्षतरं चक्रे करं चक्रेण तारकः // 37 // सान्वय __ अन्वयः-अथ अस्व अंतरेण विजय अनुजं दुर्जयं मत्वा तारकः चक्रेण करं दुनिरीक्षतरं चक्रे. // 37 // | भाषांतर अर्थः-पछी वीजां शस्त्रोथी विजयना न्हाना भाइ द्विपृष्टवासुदेवने दुर्जय मानीने ते तारकपतिवासुदेवे चक्रवडे करीने (पोताना) // 41 // हाथने अति कष्टथी जोइ शकाय एवो कर्यो, ( अर्थात् हाथमां तेजस्वी चक्र धारण कर्यु.) // 37 // 4 // 41 // जीवितव्यमिवार्कस्य रहस्यमिव विद्युताम् / चक्रं चित्तमिवाग्नेस्तज्ज्वलत्कः प्रेक्ष्य नात्रसत् // 38 // . अन्वयः-अस्य जीवितव्यं इव, विद्युतां रहस्यं इव, अग्नेः चित्तं इव, तत् ज्वलत् चक्रं प्रेक्ष्य कः न अत्रसत् ? // 38 // अर्थ:-सूर्यनां जीवनसरखां, विजकीओना सारसरखां, तथा अग्निना हृदयसरखां ते जाज्वल्यमान चक्रने जोइने कोण त्रास पाम्युं नहीं? // 38 // तादृक्प्रभावभृच्चकं न किंचिदिति चिन्तयन् / पीतवान्पीतवासास्तदृक्ताराकान्तिवारिदैः // 39 // अन्वयः-ताहक प्रभाव भृत् चक्रं न किंचित, इति चिंतयन् पीत वासाः दृक् तारा कांति वारिदैः तत् पीतवान्, // 39 // | अर्थः-तेवां माहात्म्यवाळु आ चक्र तो कंइज वीसातमां नथी, एम चिंतवता ते पीतांवर ( वासुदेव पोतानी ) आंखोनी कीकीP| ओनां तेजरूपी वादळाओवडे तेने पी गया. // 39 // ||5|| चक्रेण जितमेवेति मन्यमानस्तु तारकः / तर्जयन्निव दृष्टयैव प्रहसन्हरिमाह सः // 40 // PPA Gun MS

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