Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 43
________________ द्विपृष्ट सान्वय चरित्र भाषांतर // 42 // // 42 // अन्वयः-चक्रेण जितं एव, इति मन्यमानः सः तारकः तु, दृष्ट्या एव तजयन् इव, प्रहसन् हरिं आह.॥४०॥ अर्थः-आ चक्रथी मारी जीत थइज छे, एम मानतो ते तारक तो दृष्टिथीज जाणे तिरस्कार करतो होय नही ! तेम हांसी करतोथको विष्णुने कहेवा लाग्यो के, // 40 // चिरसेवकसूनुमें दुर्मेधा इति वध्यसे / मदाज्ञां श्रय भो डिम्भ भुंव भोगान्ट्रियस्व मा // 41 // __ अन्वयः-मे चिर सेवक सूनुः दुर्मेधाः इति वध्यसे, भो डिभ! मदाज्ञां श्रय ? भोगान् मुंश्व ? मा म्रियस्व ? // 41 // अर्थः-मारा घणा काळना सेवकनो पुत्र थइने तुं वृद्धि निवडेलो छे, माटे तारो वध करवानो छे, माटे हे गभरु ! (हजु पण) तुं मारी आज्ञा स्वीकार? अने भोगो भोगव ? (नाहक) न मार्यो जा? // 41 // हरिराह त्वदस्त्राणां प्रमाणं ददृशे मया / मुश्च चक्रमपीदानों पश्याम्यस्याप्यहं महः // 42 // ___ अन्वयः-हरिः आह, त्वद् अस्त्राणां प्रमाणं मया ददृशे, इदानीं चक्रं अपि मुंच ? अस्य अपि महः अहं पश्यामि. // 42 // अर्थः-त्यारे विष्णुए कह्यु के, तारां शस्त्रोनुं प्रमाण में जोयु छे, हवे आ चक्रने पण मूक ? के जेथी तेना तेजने (पण) हुं जोउं. इत्युक्त्या कुपितश्चक्रं भ्रमयित्वा रयेण खे / तं प्रति त्रस्तचन्द्रार्कतारकं तारकोऽमुचत् // 43 // ___ अन्वयः-इति उक्त्या कुपितः तारकः त्रस्त चंद्र अर्ज तारकं चक्रं रयेण खे भ्रमयित्वा तंपति अमुचत् // 43 // अर्थः-एम कहेवाथी क्रोध पामेला ते तारके, चंद्र, मूर्य तथा ताराओने पण त्रास आपनारां ते चक्रने वेगथी आकाशमां भमा- | P.P.ALGunratnamurMS.

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