Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 38
________________ सान्वय भाषांतर हिपृष्ट | द्विषि प्रहारिण्यभ्यासादगानाशं चकार यः / वोरास्तमप्यमन्यन्त कातरं जातरहंसः // 23 // चरित्रं अन्वयः-प्रहारिणि द्विपि यः अभ्यासात् अंग नाशं चकार, तं अपि जात रंहसः वीराः कातरं अमन्यंत // 23 // अर्थः-शत्रु प्रहार करते छते जेणे अभ्यासथी (पोतानांज) शरीरनो नाश कर्षो छे, तेने पण शूरवीर सुभटो कायर मानवा लाग्या. / / 37 // अबिभ्यत्सुभटेभ्यस्तच्छस्त्र शस्त्रेण योऽच्छिनत् / मृत्युभोतो न वोरेषु सोऽपि रेखामवाप्तवान् // 24 // अन्वयः-सुभटेभ्यः अविभ्यत् यः तत् शस्त्र शस्त्रेण अच्छिनत्, सः अपि मृत्यु भीतः वोरेषु रेखां न अवाप्तवान् // 24 // अर्थः-सुभटोथी नही डरनारा एवा जे सुभटे तेनां शस्त्रने शस्त्रयो छेदी नाख्युं, ते पण मृत्युथो वीकण मनातो थको शुरवीरोनी गणनामां आवी शक्यो नही. // 24 // एवं तरन्तो युद्धाब्धिं दोामेवोभये भटाः / सकौतुकमलोक्यन्त दृक्पातेन जयश्रिया // 25 // अन्वयः--एवं दोयी एव युद्ध अब्धिं तरंतः उभये भटाः, जय श्रिया दृक् पातेन अलोक्यंत. // 25 // अर्थः-ए रीते बन्ने हाथथीज संग्रामरूपी महासागरने तरनारा ते वने सैन्योना मुमटोने जा लक्ष्मीए (फक्त) दृष्टिपातथी जोपा. आरुह्याथ रथं तल्पमिवाभीष्टं जयश्रियः / तत्कण्ठमिव वैकुण्ठः पाञ्चजन्यं मुदाग्रहीत् // 26 // अन्वयः-अथ जय श्रीयः अभीष्टं तल्पं इव रथं आरुह्य वैकुंठः तत्कंठं इव पांचजन्यं मुदा अग्रहीत / / 26 // |DI अर्थः-पछी जयलक्ष्मीनी व्हाली शय्या सरखा रथपर चडीने विष्णुए तेणीना कंठसरखा पांचजन्य शंखने हर्पथी ग्रहण कर्यो. ॐ- 15ॐॐॐॐॐ P.P.AC.Gurramasur M.S. un Gun Aaradhak Trust

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