Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ सान्वय विष्ट चति भाषांतर // 28 // 28 / PRASHISRUASERRORE | जाणे बांधता होय नही ! तेम बोलवा लाग्या के, / / 93 // कुलक्रमागते राज्ये वयं स्मः स च विद्यते / स चेन्न सेवकोऽस्माकं तत्किं तत्सेवका वयम् // 94 // ___ अन्वयः-कुल क्रम आगते राज्ये व स्मः, च सः विद्यते, सः चेत् अस्माकं सेवकः न, तत् वयं तत् सेवकाः किं? // 94 // ___ अर्थः–कुलपरंपराथी आवेलुं राज्य अमो भोगवीये छीये, अने ते पण भोगवे छे, अने जो ते अमारो सेवक नथी, तो अमो तेना शाना सेवको होइ शकीये? // 94 // सोऽस्माकं पालको भूत्वा मुढो रत्नानि याचते / यदा प्रत्युत याचिष्ये कस्तं पालयिता तदा // 95 // अन्वयः-सः मूढः अस्माकं पालकः भूत्वा यदा रत्नानि याचते, प्रत्युत याचिष्ये, तदा तं का पालपिता? / / 95 // . अर्थः-ते मृों अमारो रक्षक थईने ज्यारे रत्नोनी मागणी करे छे, परंतु कदाच हुं तेनीपासेथी तेवी मागणी करीश, त्यारे तेनुं रक्षण कोण करशे? // 95 // माय स्थिते हरौ क्रोष्टा भरतार्धपतिः क्व सः / गच्छ तच्छिरसा साधु रत्नान्यादातुमेम्यहम् // 96 // / अन्वयः-मयि हरौ स्थिते सः क्रोटा भरत अर्थ पतिः क? गच्छ? अहं तत शिरसा साध रत्नानि आदातुं एमि, // 96 // . अर्थः-हुँ सिंह (पक्षे-विष्णु ) वेठां ते शीयालसरखो भरतार्धनो स्वामी (पक्षे-प्रतिविष्णु ) शुं वीसातमा छे. माटे तुं चाल्यो हुं तेनां मस्तकसहित रत्नो लेवाने आQ छं. // 96 // KIRANGALORECAREER P.P.AC.Gunratnasur.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50