Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ द्विष्ट चरित्रं // 27 // | अर्थः-पछी ते मंत्रीना वचनमां प्रीति धारण करनारा ते राजाए मोकलेलो दूत सभामां जइने, पासे बेठेला वन्ने पुत्रोवाळा ते !|| सान्वय ब्रह्माराजाने कहेवा लाग्यो के, // 9 // भाषांतर भूप त्वां तारको वक्ति भक्तिमान्सेवकोऽसि मे / तत्पाल्योऽसि ममैव त्वं किं ते हस्तिहयादिना // 11 // BI अन्वयः-(हे) भूप! त्वां तारकः वक्ति, वं मे भक्तिमान् सेवकः असि, तत् मम एव पाल्यः असि, ते हस्ति हय आदिना किं? 18 // 27 // अर्थ:-हे राजन् ! तने तारक राजा एम कहे छे के, तुं मारो भक्तिवंत सेवक छो, अने तेथी मारेज तारुं रक्षण करवानुं छे, माटे तारे हाथी घोडाआदिकनी शी जरुर छ ? // 91 // यच्छ तत्सर्वमस्मभ्यं यन्न लभ्यं तवास्ति यत् / यद्वस्तु भरतार्धे स्याद् भरतार्धपतेर्हि तत् // 92 // ___. अन्वयः-तत् सर्व अस्मभ्यं यच्छ ? यत् तव लभ्यं न अस्ति, हि भरत अर्धे यत् वस्तु स्यात्, तत् भरत अर्धपतेः. // 92 // अर्थः-माटे ते सघळं अमोने आपी दीओ? तमारे कंइं पण राखवातुं नथी, कारणके आ भरतार्धमां जे कई वस्तु छे, ते सघकी भरताना स्वामीनी छे. // 92 // जल्पन्तमित्यमुं कोपस्वल्पकल्पान्तपावकः / दूतं भ्रतन्तुतेजोभिर्वघ्नन्निव जगौ हरिः // 93 // ___ अन्वयः-इति जल्पतं अमुं, दूतं कोप स्वल्प कल्पांत पावकः हरिः 5 तंतु तेजोभिः वघ्नन् इव जगौ. // 93 // | अर्थः-एरीते बोलता एवा ते दूतने, क्रोधथी कल्पांत कालना अग्निने पण स्वल्प करनारा वासुदेव, भृकुटिना तंतुओना तेजथी ||3 P.P.AC.Gunramaaur M.S. Jun Gun Annada Trust

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