Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 27
________________ सान्वय द्विपृष्ट चरित्रं भाषांतर // 26 // निदेशवर्तिनं चैनं मानयोग्यं निगृह्णतः / परिवारेऽपि पुनाग विरागस्ते भविष्यति // 87 // अन्वयः-हे पुनाग ! निदेश वतिनं, च मानयोग्य एनं निगृहातः ते परिवारे अपि विरागः भविष्यति. // 87 // II..."| अर्थ:-हे पुरुषोत्तम! आज्ञामा रहेला, अने सन्मानयोग्य एवा ते राजाने मारवाथी आपना परिवारमा पण विखवाद थशे. तदुत्पादयितुं दोषं दूतस्तं प्रति युज्यताम् / मृत्युरप्यङ्गिनं हन्ति नान्नदोषादिना विना // 88. // अन्वयः-तत् दोषं उत्पादयितुं तंपति दूतः युज्यता ? मृत्युः अपि अन्न दोप आदिना विना अंगिनं न हंति. // 88 // अर्थ:-माटे तेनापर आरोप मकवामाटे तेनीपासे इतने मोकलवो जोइये, केमके मृत्यु पण अनाजना दोषआदिकविना पाणीनेमारतो नथी. // 88 // दूतेनाश्वेभरत्नानि याच्योऽसौ चेन्न दास्यति / तदोषी दोषवान्सवों विभौ हि च्छलवीक्षके // 89 // __ अन्वयः-दूतेन अश्व इभ रत्नानि असौ याच्यः, चेत् न दास्यति, तत् दोषी, हि छल वीक्षके विभौ सर्वः दोषवान्. // 89 // अर्थः-दूतमारफते घोडा, हाथी तथा रत्नोनी तेनी पासे मागणी करवी, जो न आपे, तो तेने गुन्हेगार जाणवो, केमके छल | जोनारा स्वामीपासे सर्व कोइ गुन्हेगार छे. // 89 // राज्ञाथ तदगिरि प्रीतिं वहता प्रहितश्चरः / पार्श्वस्थितसुतद्वन्द्वं ब्रह्माणं स्माह संसदि // 90 // ___ अन्वयः-अथ तगिरि प्रीतिं वहता राज्ञा प्रहितः चरः, संसदि पार्श्व स्थित सुत द्वंद्वं ब्रह्माणं स्माह. // 90 // SCUOLA PROSLAGSISES CURREVEA%ARA P.P.AC.Gunratnasur M.S. un Gun Aaradhak Trust

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