Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ द्विपृष्ट चरित्रं // 24 // NROERREARSARAN 6 अन्वयः-सः कालः गतः, संपति तारकस्य तेजः क अस्तु ? यत् एतौ शूरौ उदिती, इति तयोः सेवकाः आहुः // 80 // || सान्वयं अर्थः-ते समय हवे चाल्यो गयो छे, हवे ते तारकनुं तेज क्या रह्यु छ ? केमके आ बन्ने सूर्यो ( शूरवीरो) उदय पाम्या छे, भाषांतर एम तेओ बन्नेना सेवको कहेवा लाग्या छे. // 8 // अखर्वदोलौ सर्वशस्त्रज्ञो गर्वपर्वतौ / त्वां प्रति प्रतिभातस्तौ न शुभौ शोभनं कुरु // 81 // / / 24 // अन्वयः-अखर्व दोर्बलौ, सर्व शस्त्रज्ञौ, गर्व पर्वतौ तौ त्वां प्रति प्रतिभातः, शुभौ न, शोभनं कुरु ? / / 81 // अर्थः-न अटकावी शकाय एवा भुजबलवाला, सर्व शस्त्रकला जाणनारा, तथा गर्वथी पर्वतसरखा, एवा तेओ बन्ने तमारा सामोबडीया थइने जे उभा छे, ते ठीक नथी, माटे योग्य (उपाय) करो? // 81 // इति श्रुत्वोद्धतक्रोधो यमयोधोध्धुरस्वरः / ऊचेऽर्धचक्री सेनान्यं सेनान्यश्चितसागरः // 8 // ' अन्वयः-इति श्रुत्वा उद्धत क्रोधः, यम योध उधुर स्वरः, सेना न्यंचित सागरः अर्धचक्री सेनान्यं ऊचे. // 82 // अर्थः–एम सांभळीने, क्रोधातुर थयेलो, यमना योधासरखा उद्धत नादवाळो, तथा सैन्यथी महासागरने पण भरी देनारो ते पतिवासुदेव (पोताना) सेनापतिने कहेवा लाग्यो के, // 82 // सपुत्रद्वारिकाधीशवधप्रधनसंधया / प्रपञ्चय चमूवीचीींचीकृतकुलाचलाः // 83 // अन्वय, सपुत्र द्वारिका अधीश वध प्रधन संधया, नीचीकृत कुल अचलाः चमूवीचीः प्रपंचय? // 83 // KARNAGAVRSARA CTEREOGA PPAGS

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50