Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सान्वय भापांतर // 23 // द्विपृष्ट तुल्य तैलवाला) एवा तेओ बन्ने विलास करता हता. // 76 / / : चरित्रं / || तौ शस्त्रतोऽधिकं शश्वत्क्रीडयैवार्धचक्रिणः / अशस्त्रमाज्ञाभङ्गाख्यं वधं वध्यस्य चक्रतुः // 77 // अन्वयः-तौ शश्वत् क्रीडया एव वध्यस्य अर्थ चक्रिणः, शस्त्रतः अधिक आज्ञा भंग आख्यं वधं चक्रतुः // 77 // // 23 // अर्थः-तेओ बन्ने हमेशां क्रीडामात्रमांज वधकरवालायक प्रतिवासुदेवना, शस्त्रथी पण अधिक, आज्ञाभंगनामनो वध करवा लाग्या. परिज्ञाय तयोर्दूरादाज्ञातिक्रमविक्रमं / स्पृशो गत्वा त्वरातारास्तारकं प्रत्यदोऽवदन् // 78 // अन्वयः-स्पृशः दूरात् तयोः आज्ञा अतिक्रम विक्रमं परिज्ञाय, त्वराताराः तार कंपति गत्वा अदः अवदन्, // 78 / / अर्थः-(त्यारे) गुप्त चरोए दूरथीज तेओ बन्नेना आज्ञाना उल्लंघनरूप पराक्रमने जाणीने, एकदम जइने ते तारकनामना प्रतिवासुदेवने ते हकीकत जणावी के, // 78 // देव त्वत्सेवकस्यापि दारको द्वारिकापतेः / आज्ञां तव न मन्येते धुयौँ रश्मिमिवोद्धतौ // 79 // ___ अन्वयः-(हे) देव! त्वत् सेवकस्य अपि द्वारिकापतेः दारको, उद्धतौ धुर्यो रश्मिं इव तव आज्ञा न मन्येते. // 79 // अर्थः-हे स्वामी ? आपना सेवक एवा पण द्वारिकाधीशना वन्ने पुत्रो, उद्धत वळदो जेम रासने गणकारता नथी, तेम आपनी आज्ञा मानता नथी. // 79 // गतः स कालस्तेजोऽस्तु तारकस्य व संप्रति / शूरौ यदुदितावेतावित्याहुः सेवकास्तयोः // 8 // KARAOSALUSOARER Jun Sun And Trust

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