Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 30
________________ चरित्रं द्विपृष्ट 6 इत्युक्त्वा विष्णुनोत्खात इव भूशिखयासनात् / स गत्वाशु चरः सर्वं स्वभ तथ्यमभ्यधात् // 97 // / सान्वय अन्वयः इति उक्त्वा विष्णुना भू शिखया आसनात् उत्खातः इव, सः चरः आशु गत्वा, स्वभत्रै सर्वं तथ्यं अभ्यधात्. 97 भाषांतर अर्थः-एम कहीने विष्णुए भृकुटिनी शिखाथी जाणे आसनपरथी उखेडी नाख्यो होय नही! तेम ते दूते तुरत जइने पोता॥ 29 // ना स्वामिने सघळी सत्य हकीकत कही संभळावी. // 97 // // 29 // क्रोधकोयत्रसत्कालस्तत्कालमथ तारकः / रिपुप्राणप्रयाणाय प्रयाणकमकारयत // 98 // अन्वयः-अथ क्रोध कार्य त्रसत् कालः तारकः रिपु प्राण प्रयाणाय प्रयाणकं अकारयत्. // 98 // | अर्थः-पछी क्रोध तथा क्रूरताथी यमने पण डरावनारा ते तारक प्रतिवासुदेवे शत्रुना प्राणोनो नाश करवामाटे (त्यांथी) प्रयाण कराव्यु.॥९८॥ जिताम्भोधरसंभारभम्भारवनवश्रवात् / मनोमयूराः शूराणामखण्डं ताण्डवं व्यधुः // 99 // अन्वयः-जित अंभोधर संभार भंभा रव नव श्रवात् शूराणां मनः मयूराः अखंडं तांडवं व्यधुः. // 99 // अर्थः-जितेल छे मेघनी गर्जना जेणे एवा भेरीना नवा नादना श्रवणथी शूरवीरोनां हृदयरूपी मयूरो अखंडपणे नृत्य करवा लाग्या. अभूच्चतुर्भिः पूर चतुरङ्गचमूद्गमः / चतुर्विधायुधोद्दामश्चतुर्भुजजयेच्छया // 100 // अन्वयः-चतुर्भुज जय इच्छया चतुर्भिः पूर्वी रैः चतुर्विध आयुध उद्दामः चतुरंग चमू उद्गमः अभूत् / / 100 // P.P.AC-Gurramanun M.S. un Gun Aaradhia Trust

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