Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सान्वय चरित्रं भाषांतर // 14 // द्विपृष्ट / / अर्थः-पछी वे महान् पर्वतोनीपेठे तेओ बन्ने परस्पर रथ, सारथि तथा घोडाओनो घणो कच्चरघाण वाळीने जमीन पर ! आवीने उभा. // 44 // रथान्तरपरिस्पन्दावमन्दानन्दविक्रमो। युयुधाते क्रुधा तेजस्तेजयन्ती जयाय तौ॥ 45 // // 14 // अन्वयः-रथ अंतर परिस्पंदौ, अमंद आनंद विक्रमौ, ऋषा तेजः तेजयंतौ तौ जयाय युयुधाते. // 45 // अर्थ.-बीजा रथमां बेठेला, तथा अति आनंदयुक्त पराक्रमवाळा, अने क्रोधथी तेजने वधारता एवा तेओ बन्ने विजय माटे || लडवा // 45 // युक्तं पर्वतको विन्ध्यशक्तिना युधि निर्जितः / चित्रं पलायमानोऽपि स जिगाय प्रभञ्जनम् // 46 // अन्वयः-विंध्यशक्तिना युधि पर्वतकः निर्जितः युक्तं, चित्रं पलायमानः अपि सः प्रभंजनं जिगाय. // 46 / / अर्थः-विध्यशक्ति राजाए युद्धमां ते पर्वतने जे जीत्यो, ते युक्तज छे, परंतु आश्चर्यनी विना तो एछे के, (त्यांथी) नाशता एवा तेणे वायुने पण जीती लीधोः // 46 // जगृहेऽथ महाकुम्भिकुम्भकान्तकुचोज्ज्वला / तस्य श्रीरिव सा विन्ध्यशक्तिना गुणमञ्जरी // 47 // -- अन्वयः-अथ महाकुंभि कुंभकांत कुच उज्ज्वला तस्य श्रीः इव सा गुणमंजरी विध्यशक्तिना जगृहे. // 47 / अर्थः-पछी महान् हाथीना कुंभस्थलसरखी मनोहर स्तनोथी शाभिती एवी ते राजानी लक्ष्मीसरखी ते गुण जरीने ते विध्यश UNIA 515 P.P.AC.Gunvatmatur M.S. un Gun Anda Trust

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