Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 18
________________ द्विपृष्ट चरित्रं सान्वय भाषांतर // 17 // // 17 // USARSHANSAR / / अर्थः-छेवटे ( पोताना ) पितानी प्रतापलक्ष्मीना कुंडलसरखं चक्र मेळघीने तेणे प्रतिवासुदेव थइने पृथ्वीपरना त्रण खंडोने जीती लीधा. // 55 // . इतश्चास्ति चतुर्वर्गश्रीनिरर्गलनागरा / मध्येऽब्धि स्वर्गसौभाग्यदारिका द्वारिका पुरी // 56 // अन्वयः-इतश्च मध्ये अब्धि चतुर्वर्ग श्री निरर्मल नागरा, स्वर्ग सौभाग्य दारिका द्वारिकापुरी अस्ति. // 56 // अर्थः-हवे महासागरनी अंदर चारे वर्गोनी लक्ष्माथी भरपूर नागरिकोवाकी, तथा स्वर्गनी शोभानो पण तिस्कार करनारी द्वारिकानामनी नगरी छे. // 56 // यपरैरपराभूता सुराष्ट्रमुखमण्डनम् / पश्चिमाम्भोधिनीरेभनराश्वेरेव वेष्टयते // 57 // अन्वयः-परैः अपराभूता, सुराष्ट्र मुख मंडनं या पश्चिम अंभोधि नीर इभ नर अश्वैः एव वेष्टयते. / / 57 // अर्थः-शत्रुओथी पराभव न पामेली, तथा सौरष्ट्रदेशना मुखने शोभावनारी, एवी जे नगरीने पश्चिम महासागरमां वसनाराज जलचर हाथीओ, मनुष्यो तथा घोडाओ वींटीने रहेला छे. / / 57 // अगोचरचरित्रश्रीब्रह्मविद्वचसामपि / ब्रह्मचारी परस्त्रीषु ब्रह्माभूदिह भूपतिः // 58 // ___अन्वयः-ब्रह्म विद् वचसां अपि अगोचर चरित्र श्रीः, पर स्त्रीपु ब्रह्मचारी ब्रह्मा इह भूपतिः अभूत् // 58 // अर्थः-ब्रह्मने जाणनारा योगीओनां वचनोने पण अगोचर छे आचरणनी लक्ष्मी जेनी, तथा परस्त्रीपते ब्रह्मचर्यने धारण करनारो PPA Gunnan MS Jun Sun Aaradhak Trust

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