Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram Author(s): Vardhamansuri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 4
________________ सान्वय || भाषांतर // 3 // करतुं हतुं. // 5 // | गम्भीरनीरभ्रमतो यत्प्रतापभरातुराः / उपेत्य यत्कृपाणान्तर्नृपाणां ततयोऽपतन् // 6 // ___ अन्वयः-यत्प्रताप भर आतुराः नृपाणां ततपः, यत् कृपाणांतः गंभीर नीर भ्रमतः उपेत्य अपतन्. // 6 // अर्थः-जेना प्रतापना समूहथी पीडित थयेली राजाओनी श्रेणिओ, जेनी तलवारनी अंदर जलनी भ्रांतिथी आवीने पडती हती. रणनश्यदरिश्रेणित्वराभरतिरस्कृतैः / व्यराजि वाजिभिर्यस्य ह्रियेव विनमन्मुखैः // 7 // __ अन्वयः-रण नश्यत् अरिश्रेणि त्वरा भर तिरस्कृतैः, हिया इव विनमत् मुखैः यस्य वाजिभिः व्यराजि. // 7 // अर्थः-रणसंग्राममांथी नाशी जता शत्रुओना वेगना समूहथी तिरस्कार पामेला, अने तेथी जाणे लज्जावडे नमी जता मखोबाळा जेना घोडाओ शोभता हता. // 7 // अमुं कदाचिदास्थानिस्थितं वेत्रिनिवेदितः / समुपेत्य चरः कश्चिन्नरनाथमजिज्ञपत् // 8 // अन्वयः-कदाचित् आस्थानी स्थितं अमुं नरनाथं वेत्रि निवेदितः कश्चित् चरः समुपेत्य अजिज्ञपत्. // 8 // अर्थ:-फोइक दिवसे सभामां बेठेला ते राजाने छडीदारे निवेदन करेलो कोइक दत पासे आवीने कडेवा लाग्यो के टा इहैव भरतार्थेऽस्ति नाथ जानासि विश्रुतम् / जातं भूपुण्यपाकेन साकेतमिति पत्तनम् // 9 // PERMAHARA Jun Sun Aaradhak Trust PP.AC.Gunvamaaur M.S.Page Navigation
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