Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram Author(s): Vardhamansuri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 3
________________ सान्वय भाषांतर // 2 // द्विपृष्ट 6 अखण्डसुकृतः खण्डमिलायाः परिपालयन् / मित्राणामप्यमित्राणामप्यानन्दमदत्त सः // 2 // चरित्रं ___ अन्वयः-अखंड सुकृतः सः फलायाः खंड परिपालयन् मित्राणां अपि, अमित्राणां अपि आनंदं अदत्त. // 2 // अर्थः-अखंड पुण्यशाली एवो ते राजा, पृथ्वीखंडनु पालन करतोथको मित्रोने तथा शत्रुओने पण आनंद आपवा लाग्यो. // 2 // समये व्रतमादाय मुनेः श्रमणसिंहतः / तप्त्वा तीनं तपः प्राप स विमानमनुत्तरम् // 3 // ___ अन्वयः-समये श्रमणसिंहतः मुनेः व्रतं आदाय, तीनं तपः तप्त्वा सः अनुत्तरं विमानं प्राप. // 3 // अर्थः-समय आव्ये श्रमणसिंह नामना मुनिपासे चारित्र लेइने, तथा आकरो तप तपीने ते अनुत्तरविमानमा गयो. // 3 // इतश्च निश्चलश्रीकं जम्बूद्वीपविभूषणे / दक्षिणे भरतार्थेऽस्मिन्नस्ति विन्ध्यपुरं पुरम् // 4 // __ अन्वयः-इतश्च जंबीद्वीप विभूषणे अस्मिन् दक्षिणे भरतार्थे निश्चल श्रीकं विंध्यपुरं पुरं अस्ति. // 4 // अर्थः-हवे जंबूद्वीपना आभूषणसरखा आ दक्षिण भरतार्धमा निश्चल लक्ष्मीवाळु विंध्यपुरनामनगर छे. // 4 // अवन्ध्यशक्तिस्तत्राभूद्विन्ध्यशक्तिरिति प्रभुः / चापं यस्मिन्विशद्विश्वजयश्रीद्वारतां दधौ // 5 // - अन्वयः-तत्र अवंध्य शक्तिः विंध्यशक्तिः इति प्रभुः अभूत. यस्मिन् विशत् जय श्री द्वारतां चापं दधौ. // 5 // अर्थः-त्यां सफल शक्तिवाळो विध्यशक्तिनामे राजा हतो, के जेनुं धनुष प्रवेश करती विजयलक्ष्मीना दरवाजापणाने धारण %ANASSCRTA Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AL Gunranasur M.S.Page Navigation
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